जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और न्यायपालिका में टकराव कोई नई बात नहीं है। सरकार हमेशा से अपने मनपसंद जज की नियुक्ति कराना चाहती है। कई मौके तो ऐसे आए जब सरकार के अड़ियल रवैये के बाद CJI को वीटो का इस्तेमाल करना पड़ा। ऐसा ही वाकया पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़ (Justice Y.V. Chandrachud) के कार्यकाल का है।
क्या है वो किस्सा?
वाईवी चंद्रचूड़ जब चीफ जस्टिस बने तो इंदिरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अप्वॉइंटमेंट के लिए एक ऐसे जज का नाम प्रस्तावित किया, जिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप था। जस्टिस चंद्रचूड़ किसी भी कीमत पर उस जज की नियुक्ति नहीं चाहते थे, लेकिन सरकार अड़ गई थी। पूर्व चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के पोते और चर्चित एडवोकेट अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब Supreme Whispers में लिखते हैं कि CJI ने सरकार को अपनी असहमति के बारे में बताया, लेकिन सरकार का रुख नहीं बदला। आखिरकार उन्हें वीटो का इस्तेमाल करते हुए उस जज की नियुक्ति रोकनी पड़ी थी।
CJI सीकरी को भी लेना पड़ा था वीटो का सहारा
CJI वाईवी चंद्रचूड़ से पहले चीफ जस्टिस एस एम सीकरी (Justice S.M. Sikri) को भी वीटो का इस्तेमाल करना पड़ा था। तब सरकार जस्टिस नागेंद्र सिंह को सुप्रीम कोर्ट का जज बनानी पर अड़ी थी, लेकिन जस्टिस सीकरी इसके खिलाफ थे। सुप्रीम कोर्ट में उनके साथी जज भी जस्टिस नागेंद्र के अप्वाइंटमेंट के पक्ष में नहीं थे। आखिरकार सीजेआई को वीटो के जरिये जस्टिस नागेंद्र की नियुक्ति रोकनी पड़ी थी।
जब आमने-सामने आ गए CJI-सरकार
अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि ऐसे कई मौके आए जब नियुक्ति को लेकर सरकार और चीफ जस्टिस आमने-सामने आ गए। कई बार तो चीफ जस्टिस को सरकार की बात माननी पड़ी। उदाहरण के तौर पर जस्टिस एपमी ठक्कर को ले लें। सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस एमपी ठक्कर को कतई पसंद नहीं करते थे और नहीं चाहते थे कि उनका सुप्रीम कोर्ट में अपॉइंटमेंट हो।
जस्टिस ठक्कर खुलेआम जस्टिस चंद्रचूड़ की आलोचना कर चुके थे और कहते थे कि वह हमेशा श्रमिकों के पक्ष में फैसले देते हैं। एक जजमेंट का उदाहरण देते थे जिसमें एक बैंक कर्मचारी ने बैंक से पैसे चुरा लिए थे और उसके पक्ष में फैसला आया था। इंदिरा गांधी सरकार ने जब पहली बार जस्टिस ठक्कर का नाम सुझाया तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई।
इंदिरा ने 3 बार बढ़ाया था जस्टिस ठक्कर का नाम
अभिनव लिखते हैं कि बाद में जब इंदिरा गांधी ने कम से कम दो-तीन बार जस्टिस चंद्रचूड़ से ठक्कर के नाम की चर्चा की तो वह राजी हो गए। बाद में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि उनके पास वीटो का अधिकार था, लेकिन सरकार ने बहुत चालाकी से उन्हें राजी कर लिया था।