राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (M. S. Golwalkar) न्यूयार्क टाइम्स के रिपोर्टर लूकस पर सिर्फ इसलिए भड़क गए थे क्योंकि संवादाता ने संघ और जनसंघ को एक बताते हुए सवाल पूछ लिया था। यह 13 मई, 1966 की बात है जब लूकस ने हैदराबाद में गोलवलकर का इंटरव्यू किया था। यह साक्षात्कार श्रीगुरुजी समग्र के खंड-9 में प्रकाशित हुआ है।
लूकस ने बातचीत की शुरुआत में ही कहा कि हम न्यूयार्क टाइम्स के मैगजीन सेक्शन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ (अब भाजपा) को लेकर एक लेख प्रकाशित करना चाहते हैं। गोलवलकर ने लूकस को टोकते हुए कहा, “आप इन दोनों को एक में क्यों मिला रहे हैं? इस तरह तो आप पहले से उत्पन्न किए गए भ्रम को और अधिक बढ़ाएंगे। संघ और जनसंघ अलग-अलग हैं। संघ के स्वयंसेवक किसी भी राजनीतिक दल में जाने के लिए स्वतंत्र हैं।”
तो कांग्रेस में क्यों नहीं दिखते स्वयंसेवक?
गोलवलकर से लूकस का अगला सवाल यही था कि अगर संघ और जनसंघ एक नहीं हैं तो संघ को कार्यकर्ता सिर्फ जनसंघ में ही क्यों दिखते हैं, कांग्रेस में नजर क्यों नहीं आते? जवाब में गोलवलकर ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस ने संघ के स्वयंसेवकों के लिए अपने द्वार बंद कर रखे हैं। परंतु संघ ने कांग्रेसजनों के लिए अपने द्वार बंद नहीं किए हैं। अत: आपको यह प्रश्न कांग्रेस से करना चाहिए।”
‘संघ के संस्थापक कांग्रेसी थे’
लूकस ने लगभग अपने सवाल को दोहराते हुए गोलवलकर से फिर पूछा कि यह तो ठीक है कि आप अपने स्वयंसेवकों को किसी भी राजनीतिक दल में भाग लेने की छूट देते हैं, लेकिन मुझे सूचना है कि वे बड़ी संख्या में जनसंघ में ही पाए जाते हैं। इस पर सरसंघचालक ने कहा, “कांग्रेस ने हम लोगों के लिए अपने द्वार बंद किए, उसके पूर्व हमारे अनेक कार्यकर्ता पक्के कांग्रेसी भी थे। हमारे संस्थापक स्वर्गीय डॉ. हेडगेवार भी कांग्रेस में थे। डॉक्टर जी के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से घनिष्ट संबंध थे। किंतु संघ का कार्य प्रारंभ होने के बाद उन्होंने अपने आपको पूरी तरह संघ कार्य में ही लीन कर दिया और कांग्रेस के काम में समय न दे सके।”
कैसे जनसंघ से अलग है संघ?
गोलवलकर, लूकस से बातचीत में इस बात को स्वीकार करते हैं कि अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में जनसंघ के भीतर अधिक स्वयंसेवक हो सकते हैं। वह इसका कारण बताते हुए कहते हैं, “कांग्रेस ने स्वयंसेवकों का प्रवेश निषिद्ध कर दिया। हिंदू महासभा शक्तिहीन हो गई और कई स्थानों पर तो उसका अस्तित्व ही नहीं है। बावजूद इसके ऐसे स्वयंसेवकों की संख्या अभी बहुत अधिक है जिनका किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं है। अधिकांश स्वयंसेवक किसी भी राजनीतिक दल में कार्य नहीं करते। हमारा कार्य सांस्कृतिक है। हमारी नीति स्पष्ट है। हमारा विश्वास है कि हमारे राष्ट्र की उन्नति तभी हो सकती है, जब समाज संगठित तथा एकता के सूत्र में आबद्ध हो।”
जनसंघ की स्थापना का इतिहास बताते हुए गोलवलकर कहते हैं, “जनसंघ की स्थापना एक प्रदेश स्तरीय राजनीतिक दल के रूप में बंगाल के श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी। जब उनकी इच्छा जनसंघ के कार्य का विस्तार अन्य प्रदेशों में करने की हुई, तब वह इस संबंध में अनेक व्यक्तियों से मिले। मैंने उनके विचारों को सुना और सहायता करने का आश्वासन दिया। मैंने उनसे कहा कि आपको कुछ कार्यकर्ता दूंगा लेकिन शर्त यह है कि जब चाहे वापस बुला लूंगा। ये कार्यकर्ता आपके दल के संगठन को खड़ा करेंगे। यही मार्ग अपनाया गया क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि संघ की किसी राजनीतिक दल का अनुचर बना रहे।”
