हिंदू धर्म के साहित्य की छपाई और वितरण के लिए प्रसिद्ध ‘गीता प्रेस’ (Gita Press) को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ (Gandhi Peace Prize) देने की घोषणा पर विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस का कहना है कि यह सावरकर और गोडसे को सम्मानित करने जैसा है। भाजपाई खेमा इसे सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को जन-जन तक पहुंचाने के गीता प्रेस के काम का सम्मान बता रहा है। इस बीच, गीता प्रेस ने सोमवार को पुरस्कार लेने की घोषणा करते हुए बताया, “यह सम्मान हमारे लिए हर्ष की बात है। लेकिन, बोर्ड ने यह फैसला लिया है कि सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि को स्वीकार नहीं किया जाएगा।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति के फैसले को जो खेमा सावरकर और गोडसे का सम्मान बता रहा है, वह दलील में एक किताब में लिखी बात का हवाला दे रहा है। यह किताब पत्रकार अक्षय मुकुल की लिखी हुई है। इसका नाम है- ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’। 2015 में लिखी इस किताब में क्या है, यह आगे जानिए:
गांधी हत्या मामले में गिरफ्तार हुए थे गीता प्रेस के फाउंडर
साल 1923 में दो मारवाड़ी व्यापारियों जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस और ‘कल्याण’ पत्रिका की स्थापना की थी। 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे ने गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। अक्षय मुकुल की किताब के मुताबिक, गांधी की हत्या के बाद देश में 25,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें पोद्दार और गोयनका भी शामिल थे। गिरफ्तारी के बाद गांधी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी घनश्यामदास बिड़ला ने पोद्दार और गोयनका की मदद करने से इनकार कर दिया था।
पत्रकार अक्षय मुकुल ने अपनी किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ में लिखा है कि “जब सर बद्रीदास गोयनका गीता प्रेस से संस्थापक का केस लड़ने आगे आए, तो बिड़ला ने उनका भी विरोध किया। बिड़ला की नजरों में दोनों सनातन धर्म का प्रचार नहीं कर रहे थे बल्कि शैतान धर्म का प्रचार कर रहे थे।”
मुकुल इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि गांधी हत्या से जुड़ी इस घटना का जिक्र पोद्दार की प्रशंसनीय आत्मकथाओं की सीरीज में भी नहीं मिलती है। इसका एकमात्र संदर्भ पोद्दार की जीवनी की एक अप्रकाशित पांडुलिपि में है, जिसमें बताया गया है कि पोद्दार 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में थे।
पत्रकार का दावा है कि कल्याण पत्रिका ने गांधी हत्या पर चुप्पी साध ली थी। कल्याण के फरवरी और मार्च 1948 के अंक में गांधी का कोई जिक्र तक नहीं किया गया। जबकि गांधी के लेखन पर कल्याण हमेशा नजर रखता था। पत्रिका में उसपर चर्चा होती थी। हनुमान प्रसाद पोद्दार भी पहले गांधी के करीबी माने जाते थे।
पोद्दार और गांधी
शुरुआत में हनुमान प्रसाद पोद्दार और महात्मा गांधी के साथ मधुर संबंध थे। बाद में चीजें बदल गईं। अक्षय मुकुल लिखते हैं कि साल 1926 में पोद्दार, जमनालाल बजाज के साथ गांधी के पास कल्याण के लिए उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे। गांधी ने पत्रिका से संबंध में पोद्दार को दो महत्वपूर्ण सलाह दी- विज्ञापन स्वीकार न करें और कभी भी किताबों की समीक्षा न छापें। पोद्दार ने गांधी की इस सलाह को स्वीकार किया। आज भी गीता प्रेस की हिंदी पत्रिका ‘कल्याण’ और अंग्रेज़ी पत्रिका ‘कल्याण कल्पतरु’में विज्ञापन और पुस्तक समीक्षा नहीं छपते।
बाद में जाति और सांप्रदायिक मुद्दों पर गहरी असहमति की कई घटनाओं के बाद गीता प्रेस और गांधी के बीच संबंध तेजी बदले। पोद्दार शुरुआत में हिंदू महासभा से जुड़े थे। अस्पृश्यता पर पोद्दार के विचारों को बदलने के गांधी ने कई प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। गांधी के खिलाफ पोद्दार के कटाक्ष 1948 तक कल्याण के पन्नों पर छपते रहे।गांधी की हत्या के बाद RSS के बचाव में पोद्दार
अक्षय मुकुल लिखते हैं- CID के आर्काइव से यह पता चलता है कि पोद्दार उस आरएसएस के बचाव में सक्रिय रूप से शामिल थे, जिस पर 4 फरवरी, 1948 को गांधी की हत्या में कथित भूमिका के कारण प्रतिबंध लगा दिया गया था। नेहरू सरकार द्वारा आरएसएस से प्रतिबंध हटाने के चार दिन बाद पोद्दार संघ के साप्ताहिक पाञ्चजन्य के तत्कालीन संपादक अटल बिहारी वाजपेयी से गोरखपुर में मिले थे। साथ ही संघ की एक सार्वजनिक बैठक में शामिल भी हुए थे। उस बैठक में अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा पोद्दार ने भी एक छोटा सा भाषण दिया था।
आरएसएस के साथ पोद्दार का जुड़ाव वाजपेयी के साथ इस जनसभा में शामिल होने तक ही सीमित नहीं था। 1949 में गोलवलकर के जेल से रिहा होने के बाद, जब वह बनारस पहुंचे तो उनके स्वागत में आयोजित समारोह की अध्यक्षता पोद्दार ने की थी। सीआईडी ने दावा किया कि 30,000 लोग टाउन हॉल में आरएसएस प्रमुख को सुनने आए थे। गोलवलकर ने प्राचीन हिंदू संस्कृति के पुनरुद्धार, भारत के एकीकरण और हिंदी को राज्य भाषा के रूप में अपनाने पर जोर दिया। गोलवलकर का भाषण तब भी जारी रहा जब ‘समाजवादियों द्वारा प्रायोजित और कम्युनिस्टों द्वारा समर्थित जुलूस में ‘गोलवलकर वापस जाओ’, ‘संघ बापू का हत्यारा है’ जैसे नारे लग रहे थे। गोलवलकर को काले झंडे भी दिखाए गए थे। पुलिस ने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया था।
क्या गीता प्रेस गांधी के विचारों से सहमत था?
गीता प्रेस कई मौकों पर गांधी के विचारों के खिलाफ नजर आया। गांधी दलितों के मंदिर में प्रवेश के लिए आंदोलन चला रहे थे। वहीं गीता प्रेस इसके खिलाफ मुहिम छेड़े हुए था। मुकुल की किताब बताती है कि गीता प्रेस दलितों के मंदिर प्रवेश के विरुद्ध था। कल्याण का स्पष्ट मानना था कि ‘अछूतों’ को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए। अगर कोई ‘नीची जाति’ में पैदा हुआ है तो ये उसके पिछले जन्म के कर्मों का फल है। कल्याण, गांधी के पूना पैक्ट के फैसले से भी नाराज था। अक्षय मुकुल की मानें तो गीता प्रेस वर्ण व्यवस्था का समर्थक रहा है।
गीता प्रेस ‘हिंदू कोड बिल’ को लेकर जवाहरलाल नेहरू और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पर भी हमलावर रहा। कल्याण ने पहले लोकसभा इलेक्शन में नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले प्रभुदत्त ब्रह्मचारी को वोट देने की अपील की थी। साथ ही नेहरू को अधर्मी बताया था।
गीता प्रेस क्या है?
गीता प्रेस का दावा है कि उनका मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म, हिंदू धर्म के सिद्धांतों को गीता, रामायण, उपनिषद, पुराण, प्रख्यात संतों के प्रवचन और अन्य चरित्र-निर्माण पुस्तकों और पत्रिकाओं को प्रकाशित कर और उन्हें कम कीमत पर अत्यधिक लोगों तक पहुंचाना है। संस्था का प्रबंधन ‘ट्रस्ट बोर्ड’ द्वारा किया जाता है। संस्था न तो चंदा मांगती है और न ही अपने प्रकाशनों में विज्ञापन स्वीकार करती है।
गीता प्रेस में दिन की शुरुआत सुबह की प्रार्थना से होती है। एक व्यक्ति प्रत्येक कार्यकर्ता को कई बार भगवान का नाम याद दिलाने के लिए दिन भर घूमता रहता है। गीता प्रेस के अभिलेखागार में भगवद् गीता की 100 से अधिक व्याख्याओं सहित 3,500 से अधिक पांडुलिपियां हैं।
गीता प्रेस 15 भाषाओं छपी 1850 से अधिक धार्मिक किताबों की करीब 93 करोड़ प्रतियां बेच चुकी है। विशेष रूप से गीता प्रेस ने तुलसीदास की रामचरितमानस की 3.5 करोड़ से अधिक प्रतियां और श्रीमद भगवद गीता की 16 करोड़ से अधिक प्रतियां बेची हैं। इसके अलावा गीता प्रेस अब तक पुराण और उपनिषद की ढाई करोड़ से अधिक प्रतियां और बाल उपयोगी पुस्तकों की 11 करोड़ से अधिक प्रतियां बेची है। गीता प्रेस ने अप्रैल 1923 में 600 रुपये में खरीदे एक हैंड प्रेस से भगवद गीता के अनुवाद की पहली प्रति छापी थी।
गीता प्रेस ने कल्याण के साथ उड़ान भरी
गीता प्रेस की हिंदी पत्रिका कल्याण ने रामायण, गीता, महाभारत, पुराणों और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों के सस्ते लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले संस्करणों के प्रकाशन के साथ-साथ गीता प्रेस को आधुनिक हिंदू धर्म और हिंदू राष्ट्रवाद में सबसे महत्वपूर्ण संस्थानों में से एक बना दिया।
आज गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है और औपनिवेशिक भारत का एकमात्र स्वदेशी प्रकाशन उद्यम है जो 21वीं सदी में फलता-फूलता रहा है। इसकी पुस्तकें अंग्रेजी, उर्दू और नेपाली सहित 15 भाषाओं में प्रकाशित होती हैं। गीता प्रेस के 20 रिटेल आउटलेट। भारत और विदेशों में 2500 से अधिक पुस्तक विक्रेता गीता प्रेस के प्रोडक्ट बेचते हैं।
गांधी शांति पुरस्कार क्या है?
गांधी शांति पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में की गई थी। गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुने गए व्यक्ति या संस्था को एक करोड़ रुपए नकद राशि, एक पट्टिका और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। साथ में कोई एक पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा उत्पाद दिया जाता है। यह पुरस्कार राष्ट्रीयता, पंथ, नस्ल या लिंग आदि के आधार पर भेदभाव किये बिना दिया जाता है। यही वजह है कि गांधी शांति पुरस्कार बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान, नेल्सन मंडेला और ओमान के दिवंगत सुल्तान समेत कई और विदेशी नागरिकों को भई दिया जा चुका है।
कैसे हुआ चयन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने 2021 के गांधी शांति पुरस्कार के लिए सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को चुना है। 18 जून, 2023 को इसकी घोषणा हुई। संस्कृति मंत्रालय ने अपने एक ट्वीट में लिखा है, “माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले निर्णायक मंडल द्वारा वर्ष 2021 के Gandhi Peace Prize के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर का चयन किया गया है। सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा दे रही इस संस्था को पुरस्कार मिलने की शुभकामनाएं।”
संस्कृति मंत्रालय ने भले ही गीता प्रेस को गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली संस्था बताया हो। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो गीता प्रेस को हिंदुत्व पुनरुत्थानवादियों के मिशन को बढ़ावा देने वाला मानता है। बता दें गीता प्रेस छपाई के कारोबार में लगी 100 साल पुरानी संस्था है। इसे कम कीमत पर हिंदू धर्म ग्रंथों को घर-घर पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है।
गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने के फैसले का कांग्रेस विरोध कर रही है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपने एक ट्वीट में लिखा है यह फैसला सावरकर और नाथूराम गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है। वहीं भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जूरी के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है, “भारत के सनातन धर्म के धार्मिक साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ प्राप्त होने पर हृदय से बधाई। स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर मिला यह पुरस्कार गीता प्रेस के धार्मिक साहित्य को एक नई उड़ान देगा। इसके लिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी का हार्दिक आभार।”