CBSE Result 2022: सीबीएसई बोर्ड के 12वीं के परिणाम घोषित हो चुके हैं। लड़कों की तुलना में 3.29 प्रतिशत ज्यादा लड़कियों ने बोर्ड परीक्षा पास की है। पिछले कई सालों के ट्रेंड को रिपीट करते हुए इस बार भी एक लड़की ही टॉपर बनी है। 500 में से 500 नंबर लाकर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की तान्या सिंह ने टॉप किया है। ये किसी एक बोर्ड या क्षेत्र की कहानी नहीं हैं। पिछले कई सालों से स्कूल लेवल की ज्यादातर परीक्षाओं में लड़कियां ही बेहतर परफॉर्म कर रही हैं। अब सवाल उठता है कि स्कूल स्तर पर अपना लोहा मनवाने वाली लड़कियां उच्च शिक्षा और पेशेवर शिक्षा में अपनी आबादी की तुलना में बहुत कम क्यों हैं?
IIT से UPSC तक
IIT से लेकर UPSC तक जैसे शीर्ष संस्थानों में आधी आबादी की हिस्सेदारी एक चौथाई ही नजर आती है। साल 2019 में देश के कुल 23 IIT में लड़कियों की भागीदारी सिर्फ 17.84 प्रतिशत थी। IIT बॉम्बे के उदाहरण से मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है। 2019 में IIT बॉम्बे में कुल 1015 अभ्यार्थियों का एडमिशन हुआ था, जिसमें लड़कियां सिर्फ 199 थीं। इसी साल आईआईटी दिल्ली में मात्र 18.5 प्रतिशत लड़कियों ने दाखिला लिया था।
साल 2020 में IIT JEE Advanced के दोनों पेपर को कुल 43,204 अभ्यर्थियों ने क्वालीफाई किया था। इसमें लड़कियों की संख्या 6,707 थी यानी 15.52 प्रतिशत। साल 2021 में कुल 41,862 अभ्यर्थियों ने IIT JEE Advanced की परीक्षा पास की थी। इसमें लड़कियों की संख्या सिर्फ 6,452 थी।
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में चयनित कुल अभ्यार्थियों की संख्या देखें तो वहां भी लड़कियां की भागीदारी उनकी आबादी की तुलना में बहुत कम नजर आती है। 2020 में कुल चयनित अभ्यर्थियों में लड़कियां सिर्फ 28 प्रतिशत थीं। 2019 में 23 प्रतिशत, 2018 में 24.24 प्रतिशत, 2017 में 24 प्रतिशत, 2016 में 23.33 प्रतिशत लड़कियों का चयन हुआ था।
ग्रेजुएशन के बाद 84% लड़कियां छोड़ देती हैं पढ़ाई!
2016 में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रेजुएशन के बाद 84% लड़कियां आगे की पढ़ाई के लिए नामांकन नहीं लेतीं। मार्च 2015 में प्रकाशित इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड की एक रिपोर्ट की मानें तो 2007 में जहां 39 प्रतिशत लड़कियां ही उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लेती थीं, 2014 तक यह आंकड़ा 46 प्रतिशत पहुंच गया। लेकिन भारत की श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी कम हो गई। 1999 में श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी 34 प्रतिशत थी, जो 2014 में घटकर 27 प्रतिशत रह गई थी। वर्ल्ड बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या 26 प्रतिशत से गिरकर 19 प्रतिशत रह गई है।
क्यों है बुरा हाल?
लड़कियों के पढ़ाई छोड़ने के कई कारणों को अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स और सर्वे में दर्ज किया गया है। लड़कियां मुख्य रूप से घरेलू कामकाज, आर्थिक तंगी, शिक्षा में रुचि की कमी और शादी हो जाने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं। जिन राज्यों में माध्यमिक विद्यालय स्तर पर लड़कियों का ड्रॉप आउट रेट अधिक होता है, उसी राज्य में बाल विवाह मामले भी अधिक सामने आते हैं। दूसरी तरफ श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी कम होने के लिए कोरोना को जिम्मेदार बताया जा रहा है। हालांकि इसके पीछे लैंगिक भेदभाव एक बड़ा कारण है।
