मोहनदास करमचंद गांधी को पहली बार महात्मा किसने कहा इसे लेकर मतभेद है। ज्यादातर लोगों का ऐसा मानना है कि गांधी को महात्मा की उपाधि रविंद्रनाथ टैगोर ने दी थी। जाहिर है गांधी को ये उपाधि सत्य और अहिंसा के आचरण को आत्मसात करने की वजह से दी गई थी। देश की जनता ने भी गांधी को महात्मा माना क्योंकि उन्होंने भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसक आन्दोलन चलाया। एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री तो गांधी से इतना चिढ़ता था कि उन्हें अपमानित करने के लिए अधनंगा फकीर कह दिया था। गांधी भी अंग्रेजों की नाक में दम करने से बाज नहीं आते थे। हालांकि अंग्रेजों के लिए गांधी के मन में इतनी कड़वाहट हमेशा से नहीं थी। भारत की आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने वाले गांधी कभी खुद को अंग्रेजों की अनुशासित प्रजा में से एक मानते थे।
दक्षिण अफ्रीका में गांधी : अंग्रेजी शासन के प्रति गांधी की कटिबद्धता सबसे अधिक दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान रही। लंदन के इनर टेम्पल में वकील के रूप में प्रशिक्षित होने के बाद गांधी दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे। ये मई 1983 की बात है। तब गांधी की उम्र चौबीस वर्ष थी। गांधी को एक अमीर मुस्लिम व्यापारी ने कानूनी सलाहकार की नौकरी दी थी। अफ्रीका पहुंचने के कुछ माह बाद ही वो चर्चित घटना हुई, जिसमें गांधी को ट्रेन से धक्के मारकर उतार दिया गया था। तब गांधी ब्रिटिश प्रजा के रूप में बराबरी की मांग करते थे। उनका तर्क था कि रानी विक्टोरिया ने अपनी सभी प्रजा को एक समान मानने की उद्घोषणा की है इसलिए उनका बराबरी के बर्ताव का हक बनता है।
तब गांधी खुद को अफ्रीका के काले लोगों के साथ जोड़कर देखे जाने के खिलाफ थे। उन्होंने अंग्रेजों को पत्र लिखकर यह समझाने की कोशिश की थी कि अंग्रेज और भारतीय दोनों ही इंडो-आर्यन साझा प्रजाति से उत्पन्न हैं, इसलिए उनके साथ काफिरों (काले अफ्रीकी मूल निवासियों के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) जैसा व्यवहार न किया जाए।
जब अंग्रेजों के लिए युद्ध में शामिल हुए गांधी : 1899 में अंग्रेजों ने दक्षिण अफ्रीका में बसे डच नागरिकों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। यह दक्षिण अफ्रीका का माल लूटने के लिए छेड़ा गया युद्ध था जिसे एंग्लो-बोअर युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में हजारों काले लोगों और भारतीय बंधुआ मजदूरों को बिना उनकी अनुमति के झोंक दिया गया। बुकर पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखिका अरुंधति रॉय अपनी किताब ‘एक था डॉक्टर, एक था संत’ में इस युद्ध का ब्योरा देती हैं, जिसके मुताबिक ये एक बेहद ही क्रूर युद्ध था। ब्रिटिश फौज ने बेरहमी से इंसानों का पशुओं का कत्लेआम किया। खेतों को जलाया। हजारों महिलाओं और बच्चों को यातना शिविर में डाल दिया गया। गांधी और उनके ग्रुप को लगा कि ब्रिटिश प्रजा होने के नाते उनका कर्तव्य बनता है कि वो युद्ध में किसी भी तरह से अंग्रेजों की मदद करें। अपनी सेवा दें। इसे लेकर गांधी ने ब्रिटिश राज को अपना प्रस्ताव दिया। उन्हें एम्बुलेंस दस्ते में शामिल कर लिया गया।
महारानी से चॉकलेट का उपहार चाहते थे गांधी : युद्ध में ब्रिटिश फौज की नृशंसता के सामने कोई टिक ना पाया। अंग्रेजों की जीत हुई। युद्ध के बाद घोषणा हुई कि सैनिकों को महारानी की तरफ से चॉकलेट मिलेगा। ये सैनिकों की बहादुरी के लिए महारानी की तरफ से एक पुरस्कार था। गांधी को जब ये पता चला तो उन्होंने औपनिवेशिक सचिव को पत्र लिखकर इस उपहार वितरण में एम्बुलेंस कोर के सदस्यों को भी शामिल करने की मांग की। वे स्वेच्छा से किए अपने अवैतनिक कार्य के लिए उपहार चाहते थे। अरुंधति रॉय की किताब में गांधी के पत्र के शब्द दर्ज हैं। वो लिखते हैं, ”इसकी वे बहुत सराहना करेंगे और एक खजाने के रूप में सहेज के रखेंगे, यदि महारानी की दी हुई चॉकलेट भारतीय नेताओं में भी वितरित की जाएगी।” हालांकि नियमों का हवाला देकर गांधी को महारानी का चॉकलेट नहीं दिया गया।