जी-20 के 18वें शिखर सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली में हो रहा है। प्रगति मैदान में बने ‘भारत मंडपम’ में 9-10 सितंबर को सम्मेलन की अहम बैठकें होनी हैं। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले नेताओं के आने का सिलसिला शुरू हो चुका है।

रोटेशनल सिस्टम के तहत हर साल जी-20  के किसी सदस्य देश को सम्मेलन की मेजबानी का मौका मिलता है। इस बार यह मौका भारत के पास है। भारत की मेजबानी में सम्मेलन भव्य और सफल हो, इसके लिए केंद्र सरकार भरपूर प्रयास कर रही है।

दिल्ली पहले भी इस तरह के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की साक्षी बनी है। साल 1983 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने सातवें गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन (Non-Aligned Movement (NAM) Summit) की मेजबानी की थी। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।

कैसी थी इंदिरा गांधी की तैयारी?

सातवां गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन 7 से 12 मार्च तक चला था। सम्मेलन का महासचिव नटवर सिंह को बनाया गया था। NAM Summit-1983 में करीब 4,000 विदेशी मेहमान भारत आए थे। इसमें अलग-अलग देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, 100 देशों के विदेश मंत्री और अन्य प्रमुख राजनेता थे। विदेशी मेहमान भारत की अच्छी छवि लेकर लौटे यह सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल जगमोहन की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था।

इस कमेटी ने NAM Summit-1983 को ध्यान में रखते हुए नगरपालिका की मदद से दिल्ली के कायाकल्प की शुरुआत की। दिल्ली के विभिन्न प्रमुख जगहों का सौंदर्यीकरण किया गया। सड़कों को सुंदर और सुगम बनाने के लिए मरम्मत का काम कराया गया। स्ट्रीट लाइट्स को दुरुस्त कराए गए। अलग-अलग देशों के हेड ऑफ स्टेट, हेड ऑफ गवर्नमेंट और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के ठहरने के लिए दिल्ली के चार फाइव स्टार होटल को चुना गया था। होटल के साथ-साथ उसके आस-पास के बाग-बगीचों का भी कमेटी ने जीर्णोद्धार करा दिया था।

सम्मेलन का आयोजन अपनी वास्तुकला के लिए सुप्रसिद्ध विज्ञान भवन में हुआ था, जिसे 1956 के यूनेस्को कॉन्फ्रेंस के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बनवाया था। NAM Summit-1983 को देश-विदेश के 1,700 से अधिक पत्रकारों ने कवर किया था।

भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट

नाराज होकर सम्मेलन छोड़ जाने वाले थे फिलिस्तीनी नेता

दिल्ली में जब NAM Summit-1983 का आयोजन हुआ तो उसके उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता क्यूबा के तत्कालीन राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने की थी, क्योंकि तब वही NAM के अध्यक्ष थे। इसी सम्मेलन में दोपहर के बाद कास्त्रो ने इंदिरा को अध्यक्षता सौंप दी। इसके साथ ही अगले तीन साल के लिए NAM की जिम्मेदारी भारत के कंधों पर आ गई।

सम्मेलन में पहले ही दिन सुबह फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात समेत पांच नेताओं ने भाषण दिया। NAM Summit-1983 के महासचिव नटवर सिंह ने बीबीसी में इस सम्मेलन का संस्मरण लिखा है। उन्होंने बताया है कि कैसे फिलिस्तीनी लिबरेशन अथॉरिटी के नेता सिर्फ इसलिए सम्मेलन छोड़कर जाने को तैयार थे क्योंकि उनसे पहले जॉर्डन के शासक को बोलने का मौका दिया गया था।

जब नटवर सिंह को यह बात पता चली तो उन्होंने आनन-फानन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को फोन मिला लिया। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि यासिर अराफात आज शाम ही दिल्ली छोड़कर जाने वाले हैं। उन्हें लगता है कि उनका अपमान किया गया है। नटवर सिंह ने पीएम को सुझाव दिया कि वो जल्द से जल्द अध्यक्ष फिदेल कास्त्रो को विज्ञान भवन भेजें।

यासिर अराफात और इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी ने फिदेल कास्त्रो को फोन पर पूरा मामला समझाया और विज्ञान भवन पहुंचने का आग्रह किया। इंदिरा गांधी भी कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गईं। अब कास्त्रो ने यासिर अराफात को फोन मिलाया और विज्ञान भवन आने को कहा।

नटवर सिंह बताते हैं कि कास्त्रो के फोन करने के कुछ ही देर बाद अराफात विज्ञान भवन पहुंच गए। क्यूबा के राष्ट्रपति ने उनसे पूछा क्या आप इंदिरा गांधी को अपना दोस्त नहीं मानते? अराफात ने तुरंत जवाब- “आप दोस्त होने की बात कह रहे हैं, वो तो मेरी बड़ी बहन हैं। मैं उनके लिए कुछ भी कर सकता हूं।” इसके बाद कास्त्रो थोड़े सख्त लहजे में बोले- फिर छोटे भाई की तरह पेश आइए और सत्र में शामिल होइए।

इसके बाद यासिर अराफात पूरे सम्मेलन में रहे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विज्ञान भवन में राष्ट्राध्यक्षों के अब तक के सबसे बड़े सम्मेलन को संबोधित करते हुए ईरान और इराक से अपने ‘दुखद’ युद्ध को समाप्त करने की भावपूर्ण अपील की थी।

पाकिस्तान ने पत्र लिखकर की थी भारत की तारीफ

सम्मलेन खत्म होने पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर भारत की मेजबानी की तारीफ की थी। 14 अप्रैल, 1983 को जिया ने इंदिरा को लिखा था, “मैं गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अब तक के सबसे बड़े शिखर सम्मेलन की महान सफलता के लिए महामहिम (इंदिरा गांधी) को अपनी व्यक्तिगत बधाई भी देना चाहता हूं। शिखर सम्मेलन का महत्वपूर्ण प्रभाव जितना भारत सरकार द्वारा की गई सावधानीपूर्वक तैयारियों का परिणाम था, उतना ही यह आपके नेतृत्व के व्यक्तिगत गुणों के कारण संभव हुआ… अपनी स्थापना के बाद से गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में उल्लेखनीय प्रगति की है और अब यह दुनिया के सबसे प्रभावशाली मंचों में से एक है। नई दिल्ली सम्मेलन के बाद, गुटनिरपेक्ष देश इस तथ्य पर गर्व कर सकते हैं कि आंदोलन मजबूत हुआ है और अब शांति के लिए पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली शक्ति बन गया है। आंदोलन की मौलिक एकता के संबंध में संदेह और भय दूर हो गए हैं। सम्मेलन की दिशा को बेकार की बहस से दूर रचनात्मक माध्यमों में सफलतापूर्वक ले जाने का श्रेय, जो भविष्य के लिए अधिक संभावनाएं रखता है, काफी हद तक महामहिम के व्यक्तिगत प्रयासों के कारण हुआ है।”

गुटनिरपेक्ष आंदोलन क्या है?

NAM की स्थापना पांच देशों के नेताओं (इंडोनेशिया के सुकर्णो, भारत के जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो, मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर और घाना के क्वामे नक्रूमा) ने की थी। शीत युद्ध का प्रकोप बढ़ने पर NAM में एशिया और अफ्रीका के कई अन्य देश भी शामिल हुए। शीत युद्ध में पूरी दुनिया वैचारिक आधार पर मुख्यतः दो गुटों में बंट गई थी। एक छोर पर साम्यवादी सोवियत संघ था तो दूसरे छोर पर पूंजीवादी अमेरिका।

भारत की तरह ही औपनिवेशिक गुलामी से नए-नए आजाद हुए देश खुद को इस रस्साकशी से बाहर रख, वैश्विक पटल पर अपनी नई पहचान बनाना चाहते थे। इसी आवश्यकता से गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव पड़ी।