जी-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों का दिल्ली में आगमन शुरू हो चुका है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं के जी-20 के कार्यक्रम में शामिल होने की संभावना कम है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अगले दो दिनों तक छत्तीसगढ़ में रहेंगे। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी यूरोप में हैं। विश्व के किसी भी नेता ने कांग्रेस नेतृत्व के साथ बैठक की मांग नहीं की है, लेकिन ऐसी संभावना है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मिल सकती हैं। हसीना के नेहरू-गांधी परिवार के साथ मधुर व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। शेख हसीना दिल्ली आ चुकी हैं। एयरपोर्ट पर उनका स्वागत रेलवे और कपड़ा राज्य मंत्री दर्शना जरदोश ने किया।

इंदिरा गांधी को ‘मां’ बता चुकी हैं शेख हसीना

यूपीए सरकार ने साल 2010 में शेख हसीना को ‘इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार’ दिया था। भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौजूदगी में शेख हसीना को सम्मानित किया था। पुरस्कार लेने के बाद हसीना ने अपने संबोधन में 1970 के दशक का किस्सा याद किया था।

शेख हसीना ने कहा: “उस समय [1975 में उनके परिवार के नरसंहार के बाद] हमारे पास रहने की कोई सुरक्षित जगह नहीं थी। हमारी सरकार ने हमें अपने वतन लौटने की इजाज़त नहीं दी थी। वह इंदिरा गांधी ही थीं जिन्होंने हमें आश्रय दिया। हमने राजनीतिक शरण ली और छह साल तक दिल्ली में रहे। वह सचमुच हमारी माँ की तरह थीं।”

सोनिया गांधी ने शेख हसीना को कहा था योद्धा

शेख हसीना की बातों को सुनकर सोनिया गांधी ने भी 70 के दशक का एक किस्सा याद किया। सोनिया ने कहा, 10 जनवरी, 1972 को अपने घर बांग्लादेश लौटते समय शेख मुजीबुर्रहमान दिल्ली उतरे थे, तब इंदिरा गांधी ने उनका स्वागत किया था। मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं कि उस वक्त मैं वहीं थी। आज भी मैं उस ऐतिहासिक क्षण के रोमांच को महसूस कर सकती हूं। इंदिरा गांधी का नाम निस्संदेह बांग्लादेश के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। इंदिरा गांधी को अपने पिता से बहुत प्रेरणा मिली। आप भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलीं। आप अपने छात्र जीवन से ही एक योद्धा रही हैं और आपने खून-खराबे देखा है, पीड़ा झेली है और अपने लगभग पूरे परिवार को खो दिया है।”

शेख हसीना, बंगाली राष्ट्रवादी नेता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र बांग्लादेश बना था। सोनिया गांधी ने मुजीबुर्रहमान से जुड़ा जो किस्सा बताया वह शेख के रावलपिंडी से ढाका पहुंचने के बीच के कुछ घंटों का है। दरअसल, मार्च 1971 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहया ख़ाँ ने मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार करवा लिया था। वह नौ महीने तक जेल में रहे। इस बीच पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन हुआ और कमान ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के हाथ में आ गई। उन्होंने सात जनवरी 1972 की रात रावलपिंडी के चकलाला हवाई अड्डे पर शेख को छोड़ दिया। मुजीबुर्रहमान पहले लंदन पहुंचे। वहां दो दिन रुके। उसके बाद ढाका के लिए फ्लाइट लिया और रास्ते में कुछ घंटों के लिए नई दिल्ली में रुके।

शेख हसीना को दिल्ली में क्यों लेना पड़ा था शरण?

शेख मुजीबुर्रहमान को अच्छा नेता और खराब प्रशासक माना जाता है। जब बांग्लादेश की कमान उनके हाथ में थी तो उन्होंने देश के लिए ‘मजबूत सरकार’ बनाने के इरादे से कई ऐसे काम किए जिससे उनकी लोकप्रियता कम हुई। वह आन्तरिक राजनीतिक हलचलों में ही उलझे रहे और देश के आर्थिक विकास पर ध्यान नहीं दे पाए। उन्होंने अन्य राजनीतिक पार्टियों को बर्खास्त करके देश में एक पार्टी व्यवस्था लागू कर दी। इसी तरह, रूस के ‘प्रावदा’ और ‘इज्वेस्तिया’ की तरह उन्होंने देश के चार अखबारों को छोड़कर अन्य सभी अखबारों को बंद करवा दिया। इससे उन्हें अपने विरोधियों की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी। उनका कहना था कि देश को एक मजबूत सरकार की जरूरत थी, न कि हर समय सरकार का ध्यान बंटाते रहने वाली राजनीतिक चुनौतियों की।

उसी दौरान सेना के एक गुट ने मुजीब विरोधी भावनाओं का फायदा उठाने की कोशिश की। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “यह गुट यूं भी पाकिस्तान-समर्थक तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करता था और कराची से सभी सम्बन्ध तोड़ने से खुश नहीं था। 15 अगस्त, 1975 को इसी गुट ने सरकार का तख्ता पलट दिया। मुजीब और उनके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया। इस तख्तापलट के लिए उन छह टैंकों का इस्तेमाल किया गया था जो मिस्र ने बांग्लादेश को उपहार में दिए थे। इस तख्तापलट को सेना प्रमुख जनरल जिया-उर-रहमान का समर्थन प्राप्त था।”

नैयर बताते हैं कि उन्हें मुजीब की हत्या की खबर जेल में मिली थी। तब भारत में इमरजेंसी लागू थी। वैसे भारत ने मुजीब को चेतावनी दे दी थी कि उनपर कातिलाना हमला होने की आशंका है। लेकन मुजीब ने यह सुनकर कहा था, “भला बांग्लादेश में कौन मेरी जान लेना चाहेगा?”

शेख हसीना सरकार ने इंदिरा गांधी को किया था सम्मानित

बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में मदद करने के लिए बांग्लादेश की सरकार ने इंदिरा गांधी को उनकी मृत्यु के 27 वर्ष बाद अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया था। इसे प्रधानमंत्री शेख हसीना के हाथों सोनिया गांधी ने स्वीकार किया था।

जी-20 में विपक्ष की अनदेखी?

शुक्रवार को ब्रसेल्स में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जी-20 सम्मेलन में विपक्ष की अनदेखी का आरोप लगाया। राहुल ने कहा, “उन्होंने विपक्ष के नेता को आमंत्रित नहीं करने का फैसला किया है। यह आपको बताता है कि वे भारत की 60% आबादी के नेता को महत्व नहीं देते हैं। यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में लोगों को सोचना चाहिए। उन्हें ऐसा करने की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है और इसके पीछे किस प्रकार की सोच है।”