केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर पिछले कुछ समय से लगातार खींचतान चल रही है। कानून मंत्री का कहना है कि जजों की नियुक्ति कार्यपालिका (सरकार) का हक है। सरकार की यह भी मांग है कि जजों की नियुक्ति करने के मौजूदा सिस्टम अर्थात कॉलेजियम सिस्टम में सरकार के भी प्रतिनिधि शामिल रहें। कानून मंत्री द्वारा कई बार कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता की कमी का आरोप भी लगाया जा चुका है। दूसरी तरफ, न्यायिक बिरादरी के लोग कॉलेजियम सिस्टम को बेहतर बताते हैं। हालांकि, वे यह भी कहते रहे हैं कि इसे लगातार और बेहतर बनाया जा सकता है।
कॉलेजियम सिस्टम में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल किए जाने की मांग के बारे में न्यायिक बिरादरी के लोगों का मानना है कि प्रत्यक्ष न सही, पर परोक्ष रूप से तो नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार की भागीदारी है ही। सभी फाइलें सरकार से होकर ही गुजरती हैं। ऐसे में कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधि की मांग गैर जरूरी है।
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता ने कहा है कि अगर कॉलेजियम में सरकार चाहती है कि उसका प्रतिनिधि सीधे तौर पर शामिल हो, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा को दिए इंटरव्यू में जस्टिस (रि.) दीपक गुप्ता ने यह बात कही, लेकिन एक शर्त भी जोड़ी।
देखिए जस्टिस (रि.) दीपक गुप्ता का पूरा इंटरव्यू
जस्टिस दीपक गुप्ता ने क्या कहा?
इंटरव्यू में जस्टिस गुप्ता से पूछा गया कि कॉलेजिमय में सरकार भागीदारी चाहती है, इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका में तकरार है। आप कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधि के होने की मांग को कैसे देखते हैं?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “वर्तमान में हमारे पास जो कानून है, जब तक वह बदल नहीं जाता, तब वह वैसे ही चलेगा जैसा सुप्रीम कोर्ट ने परिभाषित किया है। लेकिन मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बाहर चलता हूं। मैं इस बात से असहमत नहीं हूं कि और लोगों भी कॉलेजियम में शामिल हो सकते हैं। सरकार भी शामिल हो सकती है। लेकिन उसके लिए नया कानून लाना पड़ेगा।
वह आगे कहते हैं, “सरकार जो एनजेएसी लेकर आयी थी उसमें एक बड़ी खामी यह थी कि उसमें अंतिम निर्णय सरकार के नुमाइंदों के हाथ में था। अगर अंतिम निर्णय न्यायपालिका के हाथ में ही रहे तो सरकार की बात अक्रॉस द टेबल सुनने में कोई आपत्ति नहीं है। आज की डेट में भी जबकि सरकार सीधे तौर पर कॉलेजियम में नहीं है, प्रत्येक फाइल सरकार के पास जाती है। सरकार उसके ऊपर अपनी टिप्पणियां देती है। 100 में 90 नाम तो आसानी से खारिज हो जाते हैं। मुश्किलें आती हैं 8-10 नामों में।”
‘बैठकर बात कर लें लॉ मिनिस्टर और सीजेआई’
जस्टिस गुप्ता ने कानून मंत्री और सीजेआई की तकरार पर कहा, “कई बार सरकार किसी को नहीं चाहती है (कि वह जज बने)। उन मामलों में चर्चा होने में भी क्या समस्या है? लॉ मिनिस्टर और चीफ जस्टिस बैठकर बात कर लें। मतभेद तब आते हैं, जब हमारे पर्सनल इंट्रेस्ट शामिल होते हैं। अगर सब इंस्टीट्यूशन का ही सोच तो तकरार भी नहीं होगी।”
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अगर अंतिम निर्णय सरकार के हाथ में हो तो..?
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज दीपक गुप्ता इस ऐसे किसी सिस्टम के खिलाफ नजर आए जिसमें जजों की नियुक्ति का अंतिम फैसला सरकार के पास हो। वह कहते हैं, “यह हक सरकार के पास गया तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए सही नहीं होगा, क्योंकि करीब 60 फीसदी केस में सरकार एक पक्ष है। जो मुद्दई है, वही हाकिम तय करेगा तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या रह जाएगी?” (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)