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‘एक-एक जज के पास एक दिन में 60-70 केस, 200-300 पेज की होती है एक फाइल’, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता ने बताया कितना होता है दबाव

कानून मंत्री किरन रिजिजू द्वारा राज्यसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, देशभर की अदालतों में करीब पांच करोड़ केस पेंडिंग हैं।

Deepak Gupta
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता ने जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा को दिए इंटरव्यू में ज्यूडिशियरी के उन पहलुओं पर भी खुलकर अपनी राय रखी है, जिस पर बात करने से अक्सर न्यायिक बिरादरी के लोग बचते हैं। जस्टिस दीपक गुप्ता ने न्यायपालिका पर सरकार के दबाव से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वर्क प्रेशर तक पर साफगोई से अपनी बात रखी है।

क्या न्यायपालिका दबाव में काम करती है?

इस सवाल के जवाब में जस्टिस दीपक गुप्ता ने कुछ जजों को अपवाद बताते हुए कहा, “न्यायपालिका कभी भी दबाव में नहीं आती। न्यायाधीश दबाव में आते हैं। यह अंतर है। हो सकता है कुछ एक जज दवाब में आ जाएं। लेकिन सभी नहीं आते। मैं आपको यह बोल सकता हूं कि 16 साल के दौरान मुझ पर कभी दबाव पड़ा। हाल में चंद्रचूड़ ने भी अपने एक इंटरव्यू में बताया कि उनपर कभी दबाव नहीं पड़ा।”

बता दें कि हाल में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था, “इस महीने के अंत तक मुझे जज बने हुए 23 साल हो जाएंगे। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में एक जज के तौर पर मुझे 23 साल हो जाएगा। मुझसे कभी भी किसी ने भी नहीं कहा कि किसी केस में फैसला कैसे करना है।…”

जहां तक जस्टिस दीपक गुप्ता की बात है तो वह साल 1978 में वकालत कर रहे हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से प्रैक्टिस की शुरू की थी। साल 2004 में उन्होंने हिमाचल उच्च न्यायालय में ही पहली बार जज की कुर्सी संभाली थी। इसके बाद वह त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। 2017 में सुप्रीम कोर्ट का जज बनने से पहले वह करीब एक साल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी रहे। जस्टिस दीपक गुप्ता साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के शेड्यूल में क्या अंतर है?

जस्टिस दीपक गुप्ता के पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ही अदालतों का व्यापक अनुभव है। जब उनसे पूछा गया कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के शेड्यूल में क्या अंतर होता है, वर्क प्रेशर में क्या होता है? तो उन्होंने अपने अनुभवों को याद करते हुए बताया, “हिमाचल हाईकोर्ट मेरा पैरेंट हाईकोर्ट है। वहां काम का दबाव बहुत अधिक नहीं था। वहां जज कम थे, काम भी कम था। त्रिपुरा में काम और भी कम था। वहां तो कुछ हजार ही केस थे। हां! छत्तीसगढ़ में काम बहुत था। वहां मैं चीफ जस्टिस था, तो मैनेजमेंट भी देखना होता था। लेकिन मैं यह कहूंगा कि काम सबसे अधिक दबाव सुप्रीम कोर्ट में रहा।”

जस्टिस गुप्ता आगे कहते हैं, “हर सोमवार और शुक्रवार को एक-एक जज के पास 60-70 केस लगते थे। एक-एक फाइल 200-300 पेज के होते हैं। मैं यह नहीं कहता कि हम सारे पेज पढ़ते हैं। लेकिन आप एक फाइल से 10 या 20 पेज भी पढ़ो तो 1400 से 1800 तक पेज पढ़ने पड़ते हैं। इतना सारा टाइम सिर्फ पढ़ने में जाता है। फिर उसके बाद मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को जो केस सुनते हैं, उसकी जजमेंट लिखनी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट के जजों के ऊपर जितना काम का प्रेशर है, मेरे हिसाब से उतना किसी कोर्ट में नहीं है।”

बता दें कि देशभर की अदालतों में करीब पांच करोड़ केस पेंडिंग हैं। कानून मंत्री किरन रिजिजू ने राज्यसभा में बताया था कि देश की विभिन्न अदालतों में 4.32 करोड़ मामले लंबित हैं। कुल केस में से करीब 69,000 केस सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। देश के 25 उच्च न्यायालयों में 59 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में दस लाख से अधिक मामले लंबित हैं।

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First published on: 26-03-2023 at 23:56 IST
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