सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता ने कहा है कि जजों की नियुक्ति के मामले में कॉलेजियम का ताजा रुख ऐसा संकेत दे रहा है कि अब सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति की सिफारिशों को मंजूरी देने में सरकार की ओर से देरी को ज्यादा गंभीरता से लेगा। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि अब अनुचित देर होने पर सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई भी कर सकता है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सरकार को लिखा है कि दोबारा नाम भेजे जाने के बावजूद उसे रोकने या नजरअंदाज करने से जजों का वरिष्ठता क्रम गड़बड़ हो जाता है। लिहाजा लंबित नामों को तत्काल मंजूरी दी जाए।
जस्टिस गुप्ता ने जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में कहा- ज्यादातर नाम तो सरकार मंजूर कर ही देती है, लेकिन जहां उसके कुछ निजी हित होते हैं, वहां फाइल अटक जाती है। लेकिन, अब लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट सख्त कदम उठाने की ओर बढ़ रहा है।
कॉलेजियम को लेकर सरकार कहती रही है कि इसमें पारदर्शिता का अभाव है। इस बारे में जस्टिस गुप्ता ने कहा कि जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस डी.वाय. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में पारदर्शिता लगातार बढ़ी है।
उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि एक तरफ सरकार पारदर्शिता की भी मांग करती है और दूसरी तरफ उसकी राय को सार्वजनिक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट पर सवाल भी उठाती है।
जस्टिस (रि.) गुप्ता ने कहा कि पहले की तरह अब यह नहीं होता कि अमुक व्यक्ति को जज बनाने के लिए उपयुक्त पाया गया है। अब कई तरह की जानकारियां बाकायदा दर्ज की जाती हैं, जिससे पता चलता है कि सिफारिश का आधार क्या है और उस पर संबंधित पक्षों का क्या नजरिया है। सारी बातें सरकार के पास भी जाती हैं।
कॉलेजियम में सरकार का प्रतिनिधि शामिल किए जाने की मांग के बारे में जस्टिस गुप्ता ने कहा- मेरी राय में ऐसा होता भी है तो कोई दिक्कत नहीं है। बस, नियुक्ति पर अंतिम फैसला करने का हक न्यायपालिका के पास ही होना चाहिए। यह हक सरकार के पास गया तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए सही नहीं होगा, क्योंकि करीब 60 फीसदी केस में सरकार एक पक्ष है। जो मुद्दई है, वही हाकिम तय करेगा तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या रह जाएगी?
जस्टिस गुप्ता के साथ इंटरव्यू का वीडियो हम जल्द ही अपलोड करेंगे। फिलहाल आप देखिए, इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के एक और पूर्व जज मदन बी. लोकुर ने क्या कहा था
जस्टिस दीपक गुप्ता ने यह राय भी दी कि सरकार को अगर किसी नाम पर आपत्ति है तो सुप्रीम कोर्ट के साथ बात कर मसला सुलझाना चाहिए, न कि फाइल को अटका कर रखना चाहिए।