पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में अपने राजनीतिक और निजी जीवन से जुड़े कई किस्से साझा किए हैं। उसमें से ही एक किस्सा उन्होंने अपने जनता पार्टी के अध्यक्ष होने के दिनों का साझा किया है।
किताब में चंद्रशेखर लिखते हैं, “मुझे याद नहीं है कि जनता पार्टी की किसी मीटिंग में कभी कोई झगड़ा हुआ हो। हालांकि, एक अप्रिय प्रसंग जरूर हुआ है। पार्टी की बैठक चल रही थी। राजनारायण जी ने कुछ कहा, जिस पर मैंने उन्हें टोका।”
जब चंद्रशेखर को कहा गया- मैं आपको अध्यक्ष नहीं मानता
आगे वह लिखते हैं, “राजनारायण बोले- आप चुप रहिए, मैं आपको अध्यक्ष नहीं मानता। मैंने उनसे कहा कि आप अपने शब्द वापस लीजिए लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे। फिर मैंने कहा कि अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मुझे दो मिनट नहीं लगेंगे और आपको यहां से बाहर जाना पड़ेगा। अगर आप खुद नहीं गए तो चपरासी से बाहर निकलवा दूंगा। उस मीटिंग में मोरारजी, चरण सिंह भी थे। किसी ने राजनारायण जी की तरफदारी नहीं की। चौधरी चरण सिंह ने उनसे शब्द वापस लेने के लिए कहा । राजनारायण जी को अपने शब्द वापस लेने पड़े। उनसे मेरी नोक-झोंक चलती रहती थी पर उनका मेरे प्रति जो लगाव था वह हमेशा बना रहा।”
जब शेखावत सरकार में मंत्री बनाने पर फंसा पेंच
ऐसे ही किताब में एक किस्सा राजस्थान की भैरो सिंह शेखावत सरकार में मंत्री बनाने का है। चंद्रशेखर लिखते हैं, “दौलत राम सारण उन दिनों लोकसभा सदस्य थे। वह राज्य मंत्रिमंडल में कुछ कारण से पहली बार शपथ लेने नहीं गए। मैंने उनको समझाया भी था। एक दिन सुबह-सुबह कुम्भाराम आर्य और भैरो सिंह शेखावत दोनों बिना बताए मेरे पास आ गए। मैंने पूछा कि क्या बात है ? कुम्भाराम आर्य कहने लगे, भैरो सिंह आजकल हर बात के लिए मुझसे कहते हैं।”
मुझे लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है। मैंने फिर पूछा कि चौधरी साहब बात क्या है ? जिस पर उन्होंने कहा कि कुछ खास नहीं दौलतराम सारण को मंत्रिमंडल में लेने की बात है। जब वो लोग चलने लगे तो भैरो सिंह शेखावत ने मुझसे कहा कि जनता पार्टी संसदीय बोर्ड का फैसला है कि कोई एम पी राज्य मंत्रिमंडल में नहीं जाएगा। इस आधार पर मोरारजी भाई एतराज करेंगे इसलिए आप उनसे इजाजत दिला दीजिए।

किताब में लिखा है, “बात न बिगड़े यह सोचकर मैंने मोरारजी भाई से बात की। उन्हें बताया कि भैरो सिंह शेखावत दौलत राम सारण को मंत्रिमंडल में लेना चाह रहे हैं। जिस पर मोरारजी देसाई ने कहा कि बात हो गई है। उनको मंत्रिमंडल में लेने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसी नोंक-झोंक जनता पार्टी में चलती थी।”
सुषमा स्वराज को मंत्री नहीं बनाना चाहते थे देवीलाल
ऐसा ही एक वाकया है जब सुषमा स्वराज को देवीलाल मंत्री नहीं बनाना चाहते थे। वो टालमटोल कर रहे थे। वह सुषमा स्वराज से कहते थे कि राज्य मंत्री बन जाओ। एक दिन मधु लिमए के साथ सुषमा स्वराज आईं। उनको लगता था कि देवीलाल शपथ नहीं दिलाएंगे। जिस पर चंद्रशेखर ने उन्हें आश्वासन दिया कि ऐसा नहीं हो सकता। यह जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड का फैसला है।
किताब में चंद्रशेखर लिखते हैं, “मैंने देवीलाल से बात की तो देवीलाल कहने लगे कि उनसे कहिए, राज्य मंत्री की शपथ ले लें। मधु लिमए का कहना था कि अगर यह बात चौधरी चरण सिंह को मालूम हो गई तो सुषमा का राज्यमंत्री बनने का मौका भी हाथ से निकल जाएगा। मैंने देवीलाल से कहा कि यह संसदीय बोर्ड का फैसला है, जिस पर मैंने दस्तखत किए हैं, आपको उसका आदर करना चाहिए।”

बेइज्जती से बचने के लिए इस्तीफा देने को तैयार थीं सुषमा
चंद्रशेखर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “चौधरी देवीलाल ने कहा कि मंत्री पद की शपथ कैसे दिलवा दें, वह बहुत छोटी है पर उन्होंने सुषमा जी को शपथ दिला दी। सुषमा स्वराज की देवीलाल जी से ज्यादा दिन तक नहीं निभ सकी। दो-तीन महीने बाद ही फिर वे मधु लिमए के साथ आईं और कहने लगीं कि मुख्यमंत्री मुझे बर्खास्त करने वाले हैं। मेरा इस्तीफा ले लीजिए, नहीं तो बेइज्जती होगी। मैंने कहा ऐसा नहीं होगा, बिना पूछे वो ऐसा नहीं कर सकते।”
सुषमा स्वराज के जाने के थोड़ी देर बाद ही एजेंसियों से खबर आई कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने अपने एक मंत्री को फरीदाबाद के मर्चेंट चेम्बर ऑफ कॉमर्स की सभा में बर्खास्त कर दिया। मैं उनके इस अभद्र व्यवहार पर हैरान था। चंद्रशेखर लिखते हैं, “मैंने देवीलाल से बात की। मैंने कहा कि सुना है कि आपने सुषमा स्वराज को बर्खास्त कर दिया? जिस पर देवीलाल कहने लगे, वह किसी काम की नहीं हैं। कोई काम नहीं करतीं, परेशानी पैदा करती हैं। मैंने कहा कि आप उनको वापस लीजिए। उन्होंने सुषमा स्वराज को वापस लेने से इनकार कर दिया और कहा कि अब वे मंत्री नहीं रह सकतीं।”
चौधरी चरण सिंह को सीएम पद से हटाने को तैयार थे चंद्रशेखर
चंद्रशेखर ‘जीवन जैसा जिया’ में लिखते हैं, “मैंने कहा चौधरी साहब अगर आपने सुषमा स्वराज को वापस नहीं लिया तो आप मुख्यमंत्री नहीं रह सकते। मुझे पार्टी अध्यक्ष होने के नाते इस बात का अधिकार है कि आपको पार्टी से निकाल दूं। नोटिस पीरियड 15 दिन का होगा।”
चौधरी देवीलाल ऐसी बात के लिए तैयार नहीं थे। वे तुरंत चौधरी चरण सिंह के पास दिल्ली पहुंचे।
चौधरी चरण सिंह ने मुझसे पूछा कि क्या आपने देवीलाल को बर्खास्त करने की धमकी दी है ? मैंने कहा हां, देवीलाल ने अपने एक मंत्री को सार्वजनिक सभा में बर्खास्त कर दिया। चौधरी चरण सिंह ने पूछा कि क्या आपसे सलाह ली गयी थी ? मैंने कहा, नहीं। उन्होंने पूछा- क्या गवर्नर को चिट्ठी भेजी है?”

कैसे हुई सुषमा स्वराज और चौधरी देवीलाल में सुलह?
चंद्रशेखर लिखते हैं, मैंने बताया कि जहां तक मेरी जानकारी है उन्होंने राज्यपाल से भी बात नहीं की है। मैंने उन्हें यह भी बताया कि सीएम ने अपने मंत्री को फरीदाबाद की मर्चेंट चेम्बर ऑफ कॉमर्स की मीटिंग में बर्खास्त किया है। बस इतना सुनते ही चौधरी चरण सिंह बोले- इसे तुरंत पार्टी से निकालो। यह पार्टी में रहने लायक नहीं है। चौधरी देवीलाल थोड़ी देर बाद मेरे पास आए। मैंने कहा कि चौधरी साहब, सुषमा आपकी बेटी के समान है। फिर सुषमा को बुलाकर समझाया, दोनों को अपने यहां बुलाकर चाय पिलाई और इस तरह दोनों के बीच सुलह हुई और सुषमा मंत्रिमंडल में बनी रहीं।