National Education Policy Explainer: मोदी सरकार की अगर सबसे महत्वकांक्षी कोई योजना रही है तो वो नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 है। आजाद भारत में ये सिर्फ तीसरा मौका रहा जब शिक्षा के क्षेत्र में इतने बड़े बदलाव की तैयारी की गई हो। इस एक योजना के जरिए शिक्षा के क्षेत्र में बड़े रीफॉर्म करने की बात हुई है, बात चाहे स्कूल की हो या फिर कॉलेज, कई चीजें बदली गई हैं। अब कुछ बदलाव तो जमीन पर दिखने लगे हैं, लेकिन कई अभी भी कागज पर ज्यादा हैं। अब इसके भी अपने कारण हैं- बात चाहे केंद्र बनाम राज्य वाली तकरार की हो या फिर इंस्टीट्यूशनल स्तर पर हुई देरी।

क्या बड़े बदलाव दिखने लगे हैं?

स्कूलों में अब धीरे-धीरे करिकुलम बदलने लगा है। 10+2 वाला सिस्टम अब नए रीफॉम्स से बदला जा रहा है। प्राइमरी से सेकेंड क्लास तक वाले स्ट्रक्चर को Foundational कहा गया है, क्लास तीन से पांच तक वाले स्ट्रक्चर को Preparatory नाम दिया गया है और क्लास छठी से आठवीं तक को मिडिल बताया गया है। इसी तरह 9वीं से 12वीं वाली क्लास को सेकेंड्री कहा गया है। अब इन चार अलग-अलग स्टेज के लिए National Curriculum Framework for School Education (NCFSE) ने अलग-अलग सिलेब्स तैयार किए हैं।

इसी कड़ी में अब दिखने लगा है कि NCERT ने पहली से आठवीं कक्षा तक के लिए नई टेक्स्टबुक शुरू कर दी हैं। ऊदहरण के लिए पहले जो सोशल साइंस का सब्जेक्ट होता था, वहां हिस्ट्री, जीयोग्राफी, पॉलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स की अलग-अलग किताबें रहती थीं। लेकिन नई नीति के तहत इन सभी सबजेक्ट्स को एक किताब के जरिए ही पढ़ाया जाएगा। आगे चलकर क्लास 9 से क्लास 12th तक के लिए नई किताब आने वाली है।

अब सिर्फ किताबों को कम नहीं किया जा रहा है बल्कि अर्ली एजुकेशन पर भी सरकार का खास फोकस दिखाई दे रहा है। सरकार नई शिक्षा नीति साफ कहती है कि 2030 तक प्री-प्राइमरी लर्निंग को युनिवर्सल बनाना ही होगा। वैसे इस दिशा में कदम बढ़ने शुरू हो चुके हैं, स्कूलों में अब NCERT के ‘जादुई पिटारा लर्निंग किट’ डिस्ट्रीब्यूट होने लगे हैं, इसके अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से भी नेशनल ECCE करिकुलम जारी कर दिया गया है।

आगे चलकर क्या बदलाव दिखेंगे?

बताया तो यह भी जा रहा है कि दिल्ली, कर्नाटक और केरल जैसे राज्य बहुत जल्द पढ़ाई की मिनिमम एज को ही पहली कक्षा के लिए 6 साल करने जा रहे हैं। असल में 2023-24 का आंकड़ा कहता है कि पहली क्लास में एनरॉलमेंट कुछ कम हो चुका है, पहले जो आंकड़ा 2.16 करोड़ रहता था, वो घटकर 1.87 करोड़ पर पहुंच चुका है। माना जा रहा है कि कट ऑफ एज की वजह से ही संख्या में यह कमी देखने को मिली है। सरकार की मानें तो सबसे ज्यादा चुनौती आंगनवाड़ी वर्कर्स को ट्रेन करना है, स्कूल में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर देना है।

वैसे सरकार की एक प्राथमिकता इस बात को लेकर भी है कि हर बच्चा कम से कम पढ़ सके और उसे बेसिक मैथ्स की नॉलेज जरूर रहे। इसी चिंता पर चिंतन कर सरकार ने 2021 में NIPUN BHARAT की शुरुआत की थी। इसी कड़ी में सरकार ने जब एक सर्वे किया था तो भाषा के लिए एवरेज स्कोर 64 फीसदी रहा और मैथ्स के लिए वहीं आंकड़ा सिर्फ 60 प्रतिशत तक गया। सरकार भी जानती है कि ये आंकड़े सार्वभौमिक दक्षता (Universal Proficiency) से बहुत कम है।

इसके ऊपर आने वाले समय में एक और बड़ा बदलाव आने वाला है, जो भी स्टूडेंट्स अंडरग्रेजुएट डिग्री का प्रोग्राम लेंगे, उनके पास यह आजादी रहेगी कि वे चाहें तो अपने कोर्स को जल्दी खत्म कर लें या फिर उस तय समय से ज्यादा एक्सटेंड कर दें। इसे तकनीकी भाषा में  Academic Bank of Credits (ABC) कहा गया है जहां स्टूडेंट्स सर्टिफिकेट एक साल बाद हासिल कर सकते हैं, दो साल में डिप्लोमा और चाहें तो वे चार साल पढ़ पूरी डिग्री हासिल कर सकते हैं।

एक बड़ा बदलाव जो अब जमीन पर भी दिखने लगा है, वो Common University Entrance Test (CUET) है। पहले तो 12th से पास आउट होने के बाद बच्चों को अलग-अलग कॉलेज के एग्जाम देने पड़ते थे। जिस कॉलेज के लिए आप अप्लाई कर रहे थे, उनका अलग एग्जाम था। लेकिन यहां पर सरकार ने अब एक बड़ा बदलाव कर दिया है। कॉमन एग्जाम बना दिया गया है जो किसी भी अंडरग्रेजुएट कोर्स के लिए जरूरी रहेगा। यानी कि आप किसी भी कॉलेज के लिए अप्लाई करें, एग्जाम कॉमन रहेगा।

वैसे नई शिक्षा नीति के तहत ही एक और बड़ा काम हो रहा है। भारत की कई जो बड़ी यूनिवर्सिटी हैं, उनके कैंपस अब दूसरे देशों में भी खुल रहे हैं। इसी तरह कई दूसरे देशों की यूनिवर्सिटी अब भारत में आ रही हैं। उदाहरण के लिए IIT Madras, IIT Delhi और IIM Ahmedabad के कैंपस Zanzibar, अबु धाबि और दुबई में खुल चुके हैं। इसी तरह University of Southampton का कैंपस भारत आ चुका है। आने वाले समय में 12 दूसरी विदेशी यूनिवर्सिटीज को भी यूजीसी के अप्रूवल मिलने वाला है।

सरकार की गाड़ी कहां फंस रही है?

वैसे एक बड़ा बदलाव तो अगले साल ही दिखने वाला है। 2026 से CBSE 10वीं क्लास के छात्रों को एक बार नहीं दो बार बोर्ड परीक्षा में बैठने का मौका देगी। कर्नाटक तो इसके साथ एक्सपेरिमेंट कर भी चुका है, कई दूसरे शिक्षा बोर्ड भी इसके साथ आगे बढ़ सकते हैं। इसी तरह आने वाले समय में ऐसे रिपोर्ट कार्ड भी दिए जाएंगे जहां सिर्फ स्टूडेंट्स के मार्क्स पर फोकस नहीं होगा बल्कि पीयर और सेल्फ असिस्मेंट को भी जगह दी जाएगी। असल में NCERT के अंदर आने वाली यूनिट PARAKH ही ऐसे प्रोग्रेसिव रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रही है। लेकिन हर स्कूल ने अभी तक ऐसे बदलाव नहीं किए हैं।

अब नई शिक्षा नीति में सबसे ज्यादा विवाद मातृ भाषा को लेकर चल रहा है। नई शिक्षा नीति तो कहती है कि पांचवीं कक्षा तक मदर टंग को ही पढ़ाने का जरिया बनाया जाए। सीबीएससी ने तो कह दिया है कि क्लास सेकेंड से इसे शुरू कर देना चाहिए, वहीं तीसरी से पांचवीं वाले छात्रों को विकल्प देना चाहिए कि उन्हें मदर टंग में पढ़ना है या नहीं। इसी कड़ी में NCERT भी अलग-अलग भाषा में किताब प्रकाशित करने पर विचार कर रही है। वैसे भाषा से ही जुड़ा एक और विवाद चल रहा है। थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला कई राज्यों को स्वीकार नहीं है। इसके तहत किसी भी स्कूल में तीन भाषाएं पढ़ाई जाएं, वहां भी दो भारतीय होनी चाहिए। लेकिन तमिलनाडु क्योंकि लंबे समय से तमिल-इंग्लिश वाला मॉडल फॉलो कर रहा है, उसके लिए नई योजना का सिर्फ एक मतलब है- हिंदी का थोपा जाना।

वैसे एनईपी तो यहां तक कहती है कि मिड डे मील्स के साथ बच्चों को ब्रेकफॉस्ट भी दिया जाए, लेकिन 2021 में वित्त मंत्रालय ने ही इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। इसी तरह अभी तक केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने उन MoUs पर साइन नहीं किए हैं जिसके जरिए राज्यों में PM-SHRI स्कूल्स खुलने थे।