भारत के पहले हाईकोर्ट की स्थापना 1862 में हुई थी। लेकिन भारतीय उच्च न्यायालय को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिलने में 130 साल का वक्त लग गया। 130 वर्षों का इंतजार 5 अगस्त, 1991 को खत्म हुआ, जब लीला सेठ हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस बनीं।

भारतीय हाईकोर्ट की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश होने के अलावा भी लीला सेठ के नाम कई रिकॉर्ड हैं। जैसे वह 50 के दशक में लंदन बार की परीक्षा पास करने वाली पहली महिला थीं। वह दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला वकील थीं।

लीला सेठ एक अद्भुत न्यायविद थीं। लेकिन कानून की पढ़ाई उन्होंने अपनी रुचि की वजह से नहीं बल्कि किसी और वजह से की थी।    

क्यों की थी कानून की पढ़ाई?

लीला सेठ का जन्म 20 अक्टूबर, 1930 को लखनऊ में हुआ था। लीला सेठ की स्कूली पढ़ाई दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) के लोरेंटो कॉन्वेंट से हुई। माता-पिता दोनों प्रगतिशील विचारों के थे। लीला सेठ 11 साल की थीं, तभी रेलवे में कार्यरत उनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद परिवार को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। यही वजह रही कि लीला ने बहुत पहले ही काम करना शुरू कर दिया।

लीला को रेलवे में स्टेनोग्राफर का काम मिल गया। कोलकाता में इसी काम को करते हुए उनकी मुलाकात, प्रेम सेठ से हुई। वह फुटवियर कंपनी बाटा (BATA) में कार्यरत थे। मार्च 1951 में प्रेम और लीला ने विवाह कर लिया। लीला ने जून 1952 में बेटे (विक्रम सेठ) को जन्म दिया। शादी के कुछ साल बाद बाटा कंपनी ने प्रेम की पोस्टिंग लंदन में कर दी। मई 1954 में पति-पत्नी लंदन शिफ्ट हो गए। अप्रैल 1957 में लीला सेठ ने दूसरे बेटे शांतुम सेठ को जन्म दिया।

दूसरे बेटे के जन्म के बाद लीला सेठ अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू करना चाहती थीं। लेकिन दो छोटे बच्चों की मां के लिए यह चुनौतीपूर्ण था। लीला सेठ की स्थिति उनके एकेडमिक ऑप्शन को सीमित कर रही थी। अंतत: उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया। इस विषय को चुनने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि उन्हें इसके लिए नियमित रूप से क्लास जाने की जरूरत नहीं थी।

उन्होंने खुद बाद में कहा, “मुझे लॉ में कोई विशेष रुचि नहीं थी। लेकिन इसके लिए मुझे रेगुलर क्लास करने की जरूरत नहीं थी, इसलिए मैंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया।” जाहिर है गोद में बच्चे को लेकर क्लास जाना लीला सेठ के लिए आसान नहीं होता। 1957 में लीला सेठ ने लंदन बार की परीक्षा में टॉप किया। अगले दिन लंदन के एक अखबार ने हेडलाइन लगाया- ‘Mother-in-Law’ साथ में थी लीला सेठ की एक तस्वीर भी छपी थी, जिसमें उन्होंने अपने नवजात बेटे को गोद में लिया था।

पटना में शुरू की प्रैक्टिस

1957 में ही प्रेम सेठ को बाटा कंपनी ने पटना बुला लिया। लीला सेठ ने पटना में सचिन चौधरी के चेंबर में काम करना शुरू किया। 1959 में उन्होंने पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। तब वह उस हाईकोर्ट में एकलौती महिला हुआ करती थीं। पटना हाईकोर्ट में लीला सेठ ने 10 वर्ष प्रैक्टिस किया, जो उनके लिए चुनौतीपूर्ण था। तब महिला वकीलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता था, इसलिए उन्हें कई बार भेदभाव का सामना करना पड़ा। उनसे एक वरिष्ठ वकील ने यहां तक पूछ दिया था कि शादी-शुदा होने के बावजूद वह काम क्यों करती हैं?

जब फीस के रूप में मिला घी का डिब्बा

शुरुआत में लीला सेठ टैक्स से जुड़े केस खूब लड़ा करती थीं। लेकिन उनका पहला यादगार मामला एक क्रिमिनल केस बना। यह एक ट्रेन लोको पायलट का केस था, जो जेल जाने और नौकरी खोने की कगार पर था। दरअसल, ट्रेन के गार्ड और लोको पायलट पर यह आरोप था कि उन्होंने ट्रेन के ऊपर बैठे लोगों का ध्यान नहीं रखा और लापरवाही से ट्रेन को सुरंग में घुसा दिया, जिससे लोगों की मौत हो गई।

लीला सेठ को यह साबित करना था कि इस मामले में लोको पायलट की गलती नहीं थी। उन्होंने कड़ी मेहनत की। तकनीकी पहलुओं पर काम किया, जैसे ट्रेन ड्राइवर छत बैठे लोगों की आवाज सुन सकता है या नहीं, आदि। अंततः वह केस जीत गईं।

आभारी लोको पायलट जो केवल एक दिन की कानून फीस वहन कर सकता था, वह व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलने आया और घर का बना घी उपहार में दिया।

कॉलेज के दिनों में हनुमान बनी थीं लीला सेठ

दार्जिलिंग से स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए लीला सेठ लॉरेटो कॉलेज के बोर्डिंग स्कूल (कलकत्ता) चली गईं। कॉलेज के कार्यक्रमों में अक्सर शेक्सपियर के नाटकों या ईसा के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन होता था। लेकिन आजादी के बाद कॉलेज प्रशासन ने तय किया कि किसी भारतीय कथा का भी मंचन हो। ऐसे में रामलीला करने की योजना बनी। लेकिन समस्या यह थी कि कोई लड़की हनुमान नहीं बनना चाहती थी। पेंगुइन बुक्स से प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘घर और अदालत’ में जस्टिस लीला सेठ लिखती हैं कि “आखिरकार हनुमान के बिना रामायण कैसे हो सकता है? ऐसे में मैंने यह भूमिका निभाने के लिए हामी भर दी और मुझे इसमें बहुत मज़ा भी आया।” महात्मा गांधी की हत्या के दौरान लीला सेठ के कॉलज में किस तरह की बहस हुई थी, यह विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें: