इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी की शादी को शुरू से ही बेमेल माना गया था। शादी के कुछ साल बाद ही दोनों अलग रहने लगे थे। वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर ने अपनी किताब ‘The Tatas, Freddie Mercury & Other Bawas’ में इस पूरे प्ररकण पर विस्तार से लिखा है।
कपूर का मानना है कि इंदिरा-फिरोज की शादी के बाद भी जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी पर कुछ ज्यादा ही अधिकार बनाए रखा। नेहरू को जब भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया तो उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इंदिरा उनकी ऑफिसियल होस्टेस के रूप में सेवा देने के लिए दिल्ली चलें।
फिरोज ने दिल्ली जाना नहीं चुना। वह लखनऊ में रहे, जहां वे नेशनल हेराल्ड अखबार के निदेशक थे। कूपी कपूर, फिरोज के लिए लिखती हैं कि वह सहज स्वभाव के व्यक्ति थे लेकिन उनमें आत्म गौरव बहुत था। हालांकि कांग्रेस के कुछ लोग उन्हें चरित्र का हल्का व्यक्ति मानते थे। वह अक्सर कॉफी हाउसों में गपशप करते पाए जाते थे। उनकी छवि एक ऐसे पुरुष की थी, जिसका कई महिलाओं के साथ संबंध था।
जब फिरोज लखनऊ से दिल्ली चले गए, तब भी वह अपने सांसद के क्वार्टर में अपनी पत्नी से अलग रहते थे, हालांकि वह हर सुबह प्रधानमंत्री आवास पर नाश्ता करने जरूर जाते थे। वह अपने बेटों के करीब थे। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद इंदिरा के साथ उनका मनमुटाव गहराता गया।
कूमी कपूर लिखती हैं, “…एक समय फिरोज इंदिरा को औपचारिक रूप से तलाक देना चाहते थे ताकि वह लखनऊ के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार की एक खूबसूरत युवा महिला से शादी कर सकें। लेकिन नेहरू ने इस पर रोक लगा दी क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि परिवार का नाम बदनाम हो।”
बेमेल सा रिश्ता
बचपन से इंदिरा शर्मीली, अपने में रहने वाली और एक विवेकशील लड़की थीं। उन्हें इतिहास में अपने परिवार के स्थान के महत्व का एहसास था। दूसरी तरफ फिरोज मिलनसार, नेकदिल, मौज-मस्ती करने वाले और थोड़े लापरवाह व्यक्ति रहे। इंदिरा जब सोलह वर्ष की थीं, तभी से फिरोज उनसे प्रभावित थे। लेकिन इंदिरा के तो कई प्रशंसक और चाहने वाले थे। उन्होंने फिरोज को ज्यादा भाव नहीं दिया। दोनों पढ़ाई के दौरान इंग्लैंड में करीब आए। इंदिरा ऑक्सफोर्ड में थीं। फिरोज लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स।
कुछ करीबी दोस्तों को यह स्पष्ट था कि लंदन में उनकी दोस्ती धीरे-धीरे एक भावुक रोमांस में बदल गई थी, लेकिन इंदिरा ने अपने पिता को इस बारे में एक शब्द भी नहीं बताया। भारत लौटने पर इंदिरा ने अपने पिता को बताया कि वह फ़िरोज़ से शादी करना चाहती हैं। यह सुन पंडित नेहरू हैरान और नाखुश हो गए। टाल-मटोल करने की कोशिश में उन्होंने इंदिरा को महात्मा गांधी से मिलने के लिए कहा।
इंदिरा को दृढ़ निश्चयी देखकर गांधीजी ने आशीर्वाद दिया। यह शादी द्वितीय विश्व युद्ध की उथल-पुथल के बीच, कांग्रेस पार्टी की महत्वपूर्ण बैठकों के बीच हुई थी। जब शादी की तैयारियां चल रही थी, तब कुछ लोगों के इस बात को लेकर आक्रोश में आ गए थे कि दूल्हा और दुल्हन अलग-अलग धर्मों के हैं। तब उत्तर भारत में बहुत कम लोग जानते थे कि पारसी क्या होता है; उन्हें ‘फ़िरोज़’ नाम मुस्लिम लगता था।
इंदिरा गांधी की जीवनी लेखिका कैथरीन फ्रैंक ने लिखा है कि शादी की संभावना ने नेहरू को परेशान कर दिया था क्योंकि फिरोज के पास वंशावली और कनेक्शन का अभाव था। यदि फिरोज बंबई के कुलीन पारसी परिवारों में से एक से आते, तो उनका इतना विरोध नहीं होता। तब तक फिरोज ने अपनी विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी नहीं की थी, उनके पास कोई व्यावसायिक योग्यता नहीं थी और स्थिर आय की कोई संभावना नहीं थी।
दोनों की शादी वैदिक विधि-विधान से हुई थी। शादी में एकमात्र पारसी झलक यह थी कि फिरोज की माँ ने उन्हें खादी शेरवानी के नीचे अपनी कुस्ती पहनने के लिए राजी कर लिया था।
पारसी फिरोज
फिरोज को उनकी मौसी शिरीन (Shirin Commissariat) ने गोद लिया था। शिरीन देश की पहली महिला सर्जनों में से एक थीं। वह इलाहाबाद के लेडी डफ़रिन अस्पताल में काम करती थीं। फिरोज एक मरीन इंजीनियर जहांगीर गांधी और उनकी पत्नी रत्ती के बेटे थे। दोनों गुजरात के मध्यमवर्गीय परिवारों से थे जो बंबई में बस गए। फिरोज दंपति की पांचवीं संतान थे। अविवाहित शिरीन ने अपनी बहन से उनके बेटे फिरोज के पालन-पोषण और शिक्षा की जिम्मेदारी की अनुमति मांगी थी। जहांगीर की असामयिक मृत्यु के बाद, रत्ती और उनके बच्चों ने अपना अधिकांश समय इलाहाबाद में बिताया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान फिरोज नेहरू से बहुत प्रभावित थे। नेहरू के प्रति अपने आकर्षण के कारण, फिरोज ने स्वतंत्रता आंदोलन में उत्साहपूर्वक भाग ने शुरू कर दिया था। इससे उनके पारसी परिवार को बहुत निराशा हो रही थी। उन्होंने महात्मा गांधी और पंडित नेहरू दोनों से शिकायत की थी कि फिरोज उनका भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। शिरीन ने फिरोज को यहां तक धमकी दी कि अगर वह नेहरू के पीछे भागना जारी रखेंगे तो वह इंग्लैंड में उनकी शिक्षा का खर्च नहीं उठाएंगी।