VB-G Ram G Bill: केंद्र की सत्ता पर काबिज नरेंद्र मोदी सरकार मनरेगा योजना में बदलाव करने वाली है। इसको लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण (VB-G RAM G) विधेयक पेश किया है। इस नए कानून में ग्रामीण रोजगार कार्यों को “बुवाई और कटाई के खेती के हाई टाइम में प्रतिबंधित करने का प्रावधान है।

राज्य सरकारों द्वारा अग्रिम रूप से अधिसूचित किए जाने वाले किसी भी वित्तीय वर्ष में कुल 60 दिनों की अवधि के लिए ऐसे किसी भी कार्य को शुरू करने या आगे बढ़ाने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव किया गया है। इसका मकसद ये है कि फसलों की बुवाई और कटाई के दौरान खेतीहरों की पर्याप्त उपलब्धता हो।

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शरद पवार की हुई थी आलोचना

साल 2005 का मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) के जगह अब केंद्र सरकार वीबी-जी आरएएम जी विधेयक के जरिए नए वैधानिक मजदूरी कार्यों का कार्यक्रम भी लाना चाहती है। ये वो प्रावधान है, जिसको लेकर पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार भी सहमति जता चुके हैं। उन्होंने यूपीए सरकार में भी ऐसा ही प्रस्ताव दिया था, हालांकि तब इस पर विवाद काफी बढ़ गया था। सरकार के लोगों ने ही उनकी आलोचना भी की थी।

दरअसल, शरद पवार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर मांग की थी कि खेती के काम के हाई टाइम में मनरेगा योजना को कम से कम तीन महीने के लिए रोक दिया जाए। दिलचस्प बात यह है कि नए संशोधन वाले प्रस्ताव में 90 की बजाए केवल 60 दिनों की रोक की बात की गई है।

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क्या कहते हैं आंकड़े?

माना ये जाता है कि मनरेगा योजना के कारण ग्रामीण श्रमिक बाजार में सख्ती आई है और कृषि एवं गैर-कृषि दोनों खेतिहारों की सौदेबाजी शक्ति बढ़ी है। हालांकि, यह मजदूरी में कोई बहुत ज्यादा नहीं दिखती है। नीचे दी गई लिस्ट में वर्ष 2024-25 (अप्रैल-मार्च) तक के दस वर्षों के लिए ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि दर्शाई गई है। यह भारत के 20 राज्यों में फैले 600 नमूना गांवों से लिया गया है। श्रम ब्यूरो द्वारा प्राप्त 25 व्यवसायों के दैनिक मजदूरी दर आंकड़ों पर आधारित है।

मजदूरी में आई है गिरावट

इस लिस्ट में ये देखा जा सकता है कि सभी व्यवसायों में पुरुष श्रमिकों के लिए एक साधारण एवरेज में ग्रामीण मजदूरी में साल-दर-साल वृद्धि 3.6% और 6.4% के बीच रही है। पिछले 10 वर्षों में से चार वर्षों (2015-16, 2019-20, 2021-22 और 2022-23) में ग्रामीण मजदूरी में नाममात्र की वृद्धि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति से पीछे रही है। मतलब ये कि वास्तविक रूप से मजदूरी में गिरावट ही आई है।

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अन्य वर्षों की बात करें तो वास्तविक वेतन वृद्धि केवल 2017-18 में ही 1% से अधिक रही। दिलचस्प बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में से आठ वर्षों में कृषि मजदूरी में वृद्धि समग्र ग्रामीण मजदूरी की तुलना में अधिक रही है। केवल दो वर्षों (2015-16 और 2019-20) में ग्रामीण मजदूरी की वृद्धि दर कृषि मजदूरी की तुलना में अधिक रही।

मजदूरी में खेती क्षेत्र से क्या-क्या हैं शामिल?

श्रम ब्यूरो ने कृषि के अंतर्गत 12 व्यवसायों को वर्गीकृत किया है। इसमें जुताई/खेती, बुवाई/रोपण, सिंचाई/सिंचाई, पौध संरक्षण, कटाई/अनाज फटकना/विसर्जन, वाणिज्यिक फसलों की कटाई, बागवानी श्रम, पशुपालन कार्य, फसल/उत्पाद पैकेजिंग, लकड़ी काटना/अनाज काटना, अंतर्देशीय मत्स्य पालन और तटीय/गहरे समुद्र में मत्स्य पालन आदि शामिल हैं।

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अन्य 13 गैर-कृषि व्यवसाय में प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, राजमिस्त्री, बुनकर, लोहार, बढ़ई, ट्रैक्टर/हल्के मोटर वाहन चालक, बीड़ी बनाने वाला, बांस/टोकरी बनाने वाला, हस्तशिल्प कार्यकर्ता, कुली/लोडर, निर्माण मजदूर और सफाईकर्मी आदि शामिल है। आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि कृषि मजदूरी में वृद्धि समग्र ग्रामीण मजदूरी की तुलना में अधिक हुई है। लेकिन इस मामले में भी, नाममात्र मजदूरी में वृद्धि मुद्रास्फीति के लगभग बराबर ही रही है। आंकड़े मजदूरी में किसी महत्वपूर्ण उछाल की ओर संकेत नहीं करते हैं। कम से कम मोदी सरकार के कार्यकाल के पिछले 10 वर्षों में तो बिल्कुल भी नहीं।

ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी में बढ़ोतरी धीमी क्यों रही है?

इसका एक कारण ग्रामीण भारत में महिलाओं की बढ़ती श्रम बल सहभागिता दर (एलएफपीआर) हो सकती है। एलएफपीआर से मतलब 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की जनसंख्या के उस प्रतिशत से है, जो किसी विशेष वर्ष के अपेक्षाकृत लंबे समय तक या तो कार्यरत है या सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं।

वित्त मंत्रालय के 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में ग्रामीण महिला एलएफपीआर में आई तीव्र वृद्धि का मुख्य कारण मोदी सरकार की उज्ज्वला, हर घर जल, सौभाग्य और स्वच्छ भारत जैसी योजनाओं को बताया गया था। सर्वेक्षण में दावा किया गया कि इन प्रमुख कार्यक्रमों ने न केवल घरों में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन, बिजली, पाइप से पीने के पानी और शौचालयों की उपलब्धता को काफी हद तक बढ़ाया है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं का वह समय और मेहनत भी बचाई है जो जलाऊ लकड़ी और गोबर इकट्ठा करने या पानी लाने में खर्च होती थी।

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एलपीजी सिलेंडरों या इलेक्ट्रिक मिक्सर ग्राइंडर का उपयोग करके खाना पकाने की गति बढ़ने से उन्हें अपनी ऊर्जा को घरेलू कामों में ही लगाने के बजाय अधिक उत्पादक बाहरी रोजगार की ओर लगाने में मदद मिली है। महिलाओं के समय की बचत और श्रम आपूर्ति वक्र (LFPR) में वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत के ग्रामीण कार्यबल का कुल आकार भी बढ़ गया है।

सरल शब्दों में कहें तो मनरेगा के कारण खेतों में श्रम की व्यापक कमी होने के प्रमाण शायद काफी कमजोर हैं। वास्तव में ग्रामीण श्रम बल में अधिक महिलाओं के शामिल होने और अपने घरों के पास कृषि गतिविधियों में लगने से एमजीएनआरईजीए द्वारा खेतों से कथित तौर पर ट्रांसफर हुई बड़ी संख्या में महिलाओं की भरपाई हो सकती थी।

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