देश की सेवा करने का सपना कई लोगों का होता है, देश के लिए प्राण न्योछावर करने का जज्बा कई दिखाते हैं, इसी वजह से हर साल नेशनल डिफेंस एकेडमी, इंडियन मिलिट्री एकेडमी में सैकड़ों की संख्या में कैडेट्स पहुंचते हैं। उनमें से कई अपनी ट्रेनिंग खत्म कर काबिल अफसर बनते हैं, उनका करियर परवान चढ़ने लगता है। लेकिन कई ऐसे कैडेट्स भी होते हैं जो काबिलियत के मामले में तो किसी से कम नहीं होते, लेकिन ट्रेनिंग के दौरान जख्मी हो जाते हैं। हालत इतनी खराब हो जाती है कि वे फिर कभी सेना में जाने का सपना भी नहीं देख पाते। अब ऐसे ही कैडेट्स की जिंदगी को जनसत्ता के सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने समझने की कोशिश की है।

आंकड़े बताते हैं कि 1985 से अब तक मिलिट्री संस्थानों से करीब 500 कैडेट्स को डिसचार्ज किया गया है, मेडिकल ग्राउंड्स पर ही उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हुआ है। बात अगर अकेले एनडीए की करें तो यहां भी 2021 से जुलाई 2025 तक 20 ऐसे कैडेट्स को डिसचार्ज किया गया जो ट्रेनिंग के दौरान किसी कारण से मेडिकली अनफिट हो गए। अब नियम कहते हैं ऐसे जख्मी कैडेट्स को एक्स सर्विसमेन (ESM) का दर्जा नहीं दिया जा सकता। अगर वो दर्जा उन्हें दिया जाता तो एक्स सर्विसमेन कॉन्ट्रिब्यूटरी हेल्थ स्कीम के तहत उन्हें मिलिट्री अस्पताल में मुफ्त इलाज मिलता।

लेकिन क्योंकि ये कैडट्स ऑफिसर नहीं बन पाए, ऐसे में इन्हें अब सिर्फ महीने के 40 हजार रुपये मिल रहे हैं। अब चुनौती यह है कि इन कैडट्स का मेडिकल बिल तो महीने का 50 हजार तक चला जाता है, कुछ केस में तो आंकड़ा एक लाख भी है, लेकिन उन्हें सहायता सिर्फ 40 हजार तक की मिल पा रही है।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए 26 वर्षीय विक्रांत की मां कहती हैं कि जब तक एक्स सर्विसमैन का दर्जा नहीं मिल जाता, प्राइवेट अस्पतालों में ही इलाज करवाना पड़ता है, फिजियूथेरपिस्ट भी हायर करने पड़ते हैं, परिवार के पास रोज का मोटा बिल आता है। क्या मेरे बच्चों जैसे कैडट्स को ESM का दर्जा नहीं मिलना चाहिए, क्या उन्हें मिलिट्री अस्पताल में इलाज नहीं मिलना चाहिए?

ऐसे ही एक और कैडट शुभम कहते हैं कि अगर हमे एक दिव्यांग पेंशन दे दी जाए, अगर हमे ESM का दर्जा मिल जाए तो हम भी सम्मान के साथ अपनी जिंदगी बिता सकते हैं। एक और कैडट हरिश बता रहे हैं कि मेरी जिंदगी तो खत्म हो चुकी है, लेकिन दूसरे किसी कैडट के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। इस समय परेशान तो किशन की मां भी हैं जो बता रही हैं कि वो अपने बेटे की फिजियोथेरेपी शुरू नहीं करवा पाई हैं। उनका परिवार मिलिट्री बैकग्राउंड का नहीं है, वो टीचर हैं।

ऐसे ही कुछ कैडट्स की कहानी यहां जानते हैं-

विक्रांत राज, उम्र 26 साल

विक्रांत राज एक काबिल अफसर बनने के सारे गुण रखते थे, लेकिन एक चोट ने उन्हें ना सिर्फ देश की सेवा करने से रोक दिया बल्कि उनकी जिंदगी पर भी काफी असर पड़ा। विक्रांत दिसंबर 2016 से जून 2020 तक एनडीए में थे। अब विक्रांत की मां बताती हैं कि बचपन से ही उसमें अफसर वाले सारे गुण दिखते थे, उसे जनरल मैटिरियल कहा जाता था। विक्रांत की मां आगे कहती हैं कि उसका एनडीए में सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन 2018 में एक बॉक्सिंग मैच के दौरान उसे सिर पर चोट लगी थी। वो तुरंत उठ गया, लेकिन फिर बेहोश होकर गिर पड़ा। एक हफ्ते तक वो अस्पताल में भर्ती रहा। एक महीने बाद उसने रोवर्स कैंप में भी हिस्सा लिया, चार से पांच दिनों तक खूब मेहनत की। वो अपने टर्म एग्जाम में भी काफी अच्छा किया।

विक्रांत की मां आगे बताती हैं कि अपनी सफलताओं से वो काफी खुश था, ऐसे में उसने अक्टूबर में एक फुटबॉल मैच में भी हिस्सा लिया। मैच के दौरान एक फुटबॉल उसके सिर पर लगी, वहीं चोट लगी जहां बॉक्सिंग के दौरान सिर पर लगी थी। वो गिर पड़ा और ब्रेन सर्जरी हुई। लेकिन वो ठीक नहीं हो पाया और कोमा में चला गया। मेरा 6 फीट का बेटा जो कभी 70 किलो का हुआ करता था, कुछ ही हफ्तों में उसका वजन 35-40 किलो पर पहुंच गया।

विक्रांत की मां भावुक होकर कहती हैं कि आज भी अगर वो कई मिलिट्री या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी फिल्म देखता है तो वो खुद भी सहयोग करना चाहता है। एक दिन उसने अजित डोभाल को स्पीच देते हुए देखा था, सीधे पूछा कि रॉ कैसे ज्वाइन कर सकते हैं। एक मां के लिए यह कितना दर्दनाक हो जाता है।

शुभम गुप्ता, उम्र 33 साल

शुभम गुप्ता जून 2010 से जून 2014 तक एनडीए का हिस्सा रहे, लेकिन 2012 में एक स्पाइनल इंजरी ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए शुभम कहते हैं कि अप्रैल 2012 में मैं अपने फोर्थ टर्म में था, लेकिन तब पूल में एक डीप डाइव लेते हुए मुझे स्पाइनल कॉर्ड में इंजरी हो गई। मैं काफी मुश्किल से बचा, लेकिन मैंने अपनी गर्दन फ्रैक्चर कर ली थी। गर्दन के नीचे से मैं पैरालाइज्ड हो चुका था। मेरी कुल आठ सर्जरी हुईं, दो महीने तो मैं वेंटिलेटर पर भी रहा।

शुभम अपनी बात आगे रखते हुए कहते हैं कि मेरी चोट ने मुझे शारीरिक के साथ-साथ मानसिक तनाव भी दिया था। मैं अपने हाथों से एक पानी का ग्लास तक नहीं उठा पाता। मेरे रोज के फिजियोथेरेपी सेशन होते हैं, रोज के काम के लिए दो हेल्पर्स रखे हुए हैं। अब शुभम के मुताबिक क्योंकि वे देश की सेवा नहीं कर पा रहे हैं, उन्होंने अपना रुझान एस्ट्रोलॉजी की तरफ शिफ्ट किया है।

कार्तिक शर्मा, उम्र 27 साल

कार्तिक शर्मा जून 2015 से नवंबर 2021 तक एनडीए में सक्रिय रहे थे। वे सैनिक स्कूल सुजानपुर तिरा के पूर्व छात्र भी रह चुके हैं। कार्तिक हमेशा से ही एयरफोर्स का हिस्सा बनना चाहते थे, उन्हें एक फाइटर पायलट बनना था। लेकिन आज वे फाइटर प्लेन में नहीं बल्कि एक ऑटोमैटिक व्हीलचेयर पर बैठे हुए हैं, उनके लिंब्स काफी कमजोर हो चुके हैं, रोजमरा के कामों के लिए अटेंडेंट की जरूरत पड़ रही है। कार्तिक के मुताबिक 2016 में ट्रेनिंग के दौरान वे चोटिल हो गए थे, पुणे के कमांड अस्पताल में उनका इलाज भी एक महीने तक चला। लेकिन फिर उन्हें निमोनिया हो गया और तब से उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई।

कार्तिक कहते हैं कि निमोनिया के बाद मुझे आर एंड आर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। फिर 2021 में मुझे पांच साल बाद खिरकी के मिलिट्री अस्पताल से भी छुट्टी दे दी गई। अब रिकॉर्ड्स बताते हैं कि तमाम चुनौतियों के बावजूद भी कार्तिक ने जीने का जज्बा नहीं छोड़ा। उन्होंने पैरा टेबल टेनिस के इवेंट में दो बार हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने पढ़ाई पर भी ध्यान दिया और पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट हुए। इस समय वे IGNOU से पॉलिटिकल साइंस में ही मास्टर्स की डिग्री हासिल कर रहे हैं।

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