प्रधानमंत्री मोदी के ‘रेवड़ी कल्चर’ वाले बयान के बाद अलग-अलग मंचों से यह याद दिलाया जाने लगा है कि भारत एक वेलफेयर स्टेट है, इसलिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने प्रत्येक नागरिक के कल्याण की दिशा में हर संभव कदम बढाए। चर्चा 16 जुलाई को एक सार्वजनिक संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी के साथ शुरू हुई कि ‘मुफ्त रेवड़ी’ बांटकर वोट हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

पीएम मोदी ने कहा, “यह रेवड़ी संस्कृति देश के विकास के लिए बहुत खतरनाक है।” प्रधानमंत्री ने ‘रेवडी’ शब्द का इस्तेमाल एक रूपक के रूप में किया, जिसका अर्थ यह है कि राजनीतिक दल मतदाताओं को रिश्वत देने के लिए मुफ्त सेवा और सब्सिडी देते हैं, ताकि अपने पक्ष में वोटों को प्रभावित कर सकें।

पीएम के बयान के बाद इस मुद्दे से जुड़े जनहित याचिका को स्वीकार कर सुप्रीम कोर्ट भी इस बहस में शामिल हो गया है। याचिका का तर्क है कि चुनावों से पहले “मुफ्त उपहार” का वादा करना या वितरित करना मतदाताओं को रिश्वत देने के समान है। अब कोर्ट को यह तय करना है कि क्या रिश्वत है और क्या नहीं है? किसे मुफ्त उपहार माना जाएगा और किसे सामाजिक कल्याण योजना? कोर्ट के फैसले से कथित रेवड़ी कल्चर और वेलफेयर स्कीम के बीच की रेखा तय होनी है।

केंद्र सरकार जनहित याचिका के समर्थन में है। अगस्त की शुरुआत में सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने कहा था, “मुफ्त वितरण अनिवार्य रूप से भविष्य को आर्थिक आपदा की ओर ले जाता है और मतदाता भी एक सूचित, बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में निर्णय लेने के अपने अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाता।”

क्या भारत एक वेलफेयर स्टेट है?

भारतीय संविधान में निहित देश के नीति निर्देशक सिद्धांतों से पता चलता है कि भारत एक वेलफेयर स्टेट है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय और स्वतंत्रता समानता की बात भी भारत के वेलफेयर स्टेट होने की तरफ ही इशारा करता है। हाल में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा आयोजित ‘इंडियाज इलेक्टोरल डेमोक्रेसी @ 75’ कार्यक्रम में भाजपा, कांग्रेस और आप समेत कई राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं ने एक स्वर में स्वीकार किया कि भारत एक कल्याणकारी राज्य (Welfare State) है।

वेलफेयर स्कीम: राज्य बनाम केंद्र

राज्य सरकारों ने इस वर्ष 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी की घोषणा की है। वहीं दूसरी तरफ पिछले पांच वित्त वर्ष में 10 लाख करोड़ का लोन माफ किया गया है, जिसकी जानकारी खुद वित्त राज्य मंत्री. डॉ. भागवत किशनराव कराड ने राज्यसभा में दी है।

मार्च 2022 के अंत में शीर्ष 25 विलफुल डिफॉल्टर्स का विवरण साझा करते हुए कराड ने बताया था, गीतांजलि जेम्स लिमिटेड सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग, कॉनकास्ट स्टील एंड पावर, आरईआई एग्रो लिमिटेड और एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड हैं।

फरार हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजलि जेम्स पर बैंकों का 7,110 करोड़ रुपये बकाया है, जबकि एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग पर 5,879 करोड़ रुपये और कॉनकास्ट स्टील एंड पावर लिमिटेड का 4,107 करोड़ रुपये बकाया है। इसके अलावा आरईआई एग्रो लिमिटेड और एबीजी शिपयार्ड ने बैंकों से क्रमश: ₹3,984 करोड़ और ₹3,708 करोड़ की धोखाधड़ी की है।

अन्य विलफुल डिफॉल्टर्स जैसे फ्रॉस्ट इंटरनेशनल लिमिटेड पर ₹3,108 करोड़, विनसम डायमंड्स एंड ज्वैलरी ₹2,671 करोड़, रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड ₹2,481 करोड़, कोस्टल प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ₹2,311 करोड़ और यश केमी ₹2,082 करोड़ बकाया है।

द स्क्रॉल पर प्रकाशित अनिर्बन भट्टाचार्य की एक रिपोर्ट के मुताबिक, टॉप 10 डिफॉल्टरों पर अकेले 37,441 करोड़ रुपये का बकाया है – जो इस वर्ष उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए आवंटित कुल राशि से अधिक है।

कॉरपोरेट टैक्स में कटौती क्या रेवड़ी कल्चर नहीं है?

कंपनियों को कोई छूट या प्रोत्साहन न देने की शर्त के साथ सितंबर 2019 में केंद्र सरकार ने बेस कॉरपोरेट टैक्स की दर 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दी थी। न्यूजलॉन्ड्री पर प्रकाशित विवेक कॉल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध 5,000 से अधिक कंपनियों द्वारा भुगतान किए गए कॉर्पोरेट आयकर में केवल 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जबकि इन कंपनियों के शुद्ध लाभ में 171 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

कॉरपोरेट आयकर की कम दर ने केंद्र सरकार को अधिक टैक्स लगाने पर मजबूर किया है। सूचीबद्ध कॉरपोरेट पर्याप्त करों का भुगतान नहीं कर रहे हैं, जबकि उनका मुनाफा लगातार उछाल मार रहा है।  केंद्र सरकार कॉर्पोरेट आयकर की पिछली दर को आसानी से बहाल कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं करने का फैसला किया। तब सरकार ने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने का फैसला किया।

भट्टाचार्य ने अपनी रिपोर्ट लिखते हैं तथाकथित मुफ्त का विरोध वास्तव में भारत के सबसे गरीब लोगों के कल्याण पर हमला है। इसके बाद भट्टाचार्य अर्थशास्त्री यामिनी अय्यर के हवाले से बताते हैं कि सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा उपायों में पर्याप्त सार्वजनिक निवेश करने या पर्याप्त सैलरी देने वाली नौकरियों को पैदा करने में विफल रही है। उसकी भरपाई के लिए यह मुफ्त सेवाएं प्रदान की जा रही हैं, जो कमजोर लोगों के लिए एक सभ्य जीवन सुनिश्चित का आवश्यक लेकिन अपर्याप्त उपाय है।