देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने 16 फरवरी को बताया कि 2024 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले उसके खाते फ्रीज कर दिए गए हैं। हालांकि, अजय माकन की प्रेस कॉन्फ्रेंस के कुछ देर बाद ही इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान कांग्रेस को फौरी राहत देते हुए खातों से फ्रीज हटाने का आदेश मिल गया और सुनवाई की अगली तारीख भी दी गई।
कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने 16 फरवरी को बताया कि 2018-2019 के रिटर्न के मामले में कांग्रेस और यूथ कांग्रेस के खाते फ्रीज किए गए हैं और 210 करोड़ रुपए की रिकवरी मांगी गई है।
उन्होंने बताया कि 2018-19 चुनावी साल था। उसमें कांग्रेस ने 199 करोड़ के खर्च की जानकारी दी थी। कांग्रेस के सांसदों और विधायकों ने 14.40 लाख रुपए अपना एक-एक महीने का वेतन जमा कराए थे। इसी रकम को लेकर यह सरकारी कार्रवाई हुई है।
चुनाव में बहता पानी की तरह पैसा
चुनाव में पैसा पानी की तरह बहता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में खर्च का एक आंकलन सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) ने पेश किया था। इसमें बताया गया था कि उस चुनाव में करीब 55000 करोड़ (प्रति वोटर 700) रुपए खर्च हुए थे। लोकसभा चुनाव में इतना पैसा पहली बार खर्च किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी, 2024 को असंवैधानिक करार देते हुए बैन कर दिया) के जरिए चंदा हासिल करने का कानून लाए जाने के बाद देश में यह पहला चुनाव था।
2019 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा ने सबसे ज्यादा 27500 करोड़ रुपए खर्च किए थे। 9625 करोड़ रुपए के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। बाकी सभी पार्टियों का खर्च 17875 करोड़ रुपए था। 1998 के लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों का कुल खर्च 9000 करोड़ रुपए था।

सीएमएस का आंकलन था कि 2019 में चुनाव लड़ रही पार्टियों ने करीब 15000 करोड़ रुपए मतदाताओं को गैरकानूनी तरीके से बांटे थे। सीएमएस ने छह माध्यमों से जुटाई जानकारियों के विश्लेषण के आधार पर अपना आंकलन जारी किया था। इनमें चुनावी अभियान, मतदाताओं, स्वतंत्र विश्लेषकों, पार्टी नेताओं से बातचीत, उम्मीदवारों के प्रोफाइल का विश्लेषण, मीडिया में आई खबरों और डेमोग्राफिक्स से जुड़े आंकड़ों के आधार पर किया गया विश्लेषण शामिल था।
सीएमएस के हिसाब से इस खर्च में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी (24000 करोड़, यानि 40 प्रतिशत) उम्मीदवारों का था। राजनीतिक दलों के हिस्से 35 प्रतिशत, सरकार/चुनाव आयोग के हिस्से 15 फीसदी और मीडिया पर किया गया खर्च पांच प्रतिशत था।
नियम के मुताबिक तय खर्च से 14 गुना ज्यादा खर्च
चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों का खर्च 4000 रुपए से थोड़ा अधिक ही होना चाहिए था, क्योंकि आयोग की ओर से प्रत्येक उम्मीदवार के लिए खर्च सीमा 50 से 70 लाख रुपए (अलग-अलग राज्यों के हिसाब से) के बीच तय थी और मैदान में 8054 उम्मीदवार थे। लेकिन, सीएमएस के आंकलन के हिसाब से प्रत्येक लोकसभा सीट पर औसतन सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च हुए।
गुप्त दान के बाद गजब बढ़ा खर्चीला चुनावी अभियान
2019 के चुनाव से पहले एनडीए सरकार चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम लेकर आई थी। 2017-18 से 2022-23 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को कुल 11450 करोड़ रुपए चंदा मिला। इसका आधा से भी ज्यादा (57 प्रतिशत, यानी 6566 करोड़ रुपए) बीजेपी को मिले। इस बीच कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड से 1123 करोड़ रुपए मिले थे।
बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा (1093 करोड़) तृणमूल कांग्रेस को मिले थे। ओड़िशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) को 774 करोड़ रुपए, डीएमके को 617 करोड़ रुपए, आम आदमी पार्टी (आप) को 94 करोड़ रुपए, एनसीपी को 64 करोड़ रुपए, जेडीयू को 24 करोड़ व अन्य दलों को 1095 करोड़ रुपए मिले।
सरकारी खर्च भी 10.5 से 3870.3 करोड़ पर पहुंचा
लोकसभा चुनावों पर होने वाला सरकारी खर्च भी लगातार बढ़ा है। यह 1951 के 10.5 करोड़ रुपए से बढ़ कर 2014 में 3870.3 करोड़ पर पहुंच गया था। यानी, करीब 387 गुना ज्यादा। इस दौरान मतदाताओं की संख्या करीब पांच गुना बढ़ी है। देखिए साल-दर-साल किस रफ्तार से बढ़े मतदाता और चुनाव पर होने वाला खर्च:

1952 के चुनाव में 401 सीटों पर 53 पार्टियां, 1874 उम्मीदवार मैदान में थे, जबकि 2019 के चुनाव में 673 पार्टियां लड़ रही थीं और 8054 उम्मीदवार मैदान में थे। 1952 में दो लाख से भी कम मतदान केंद्र बनाए गए थे। 2019 में इनकी संख्या 10.37 लाख थी।
अमीर उम्मीदवारों के जीतने की संभावना अधिक
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के वरिष्ठ फेलो नीलांजन सरकार ने एक शोध में इस बात का पता लगाने की कोशिश की है कि आखिर राजनीतिक पार्टियां धनवान उम्मीदवारों पर क्यों निर्भर रहती हैं? उन्होंने अपने रिसर्च में धन और चुनाव जीतने के बीच संबंध साबित करते हुए पाया कि अधिकतर मामलों में अमीर उम्मीदवार के जीतने की संभावना लगभग 10 प्रतिशत तक अधिक थी। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)