राजस्थान की बाड़मेर सीट पर लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होगा। भारत के दूसरे सबसे बड़े निर्वाचन क्षेत्र बाड़मेर में निर्दलीय उम्मीदवार और शिव विधायक रवींद्र सिंह भाटी तेजी से अपने चुनाव अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। निर्दलीय उम्मीदवार होने के बावजूद, भाटी के पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा के वादे मतदाताओं को पसंद आ रहे हैं। क्या उनकी लोकप्रियता राजस्थान के जाति-प्रधान राजनीतिक परिदृश्य में वोटों में तब्दील होगी?
26 वर्षीय शिव विधायक रवींद्र सिंह भाटी बाड़मेर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वह राजस्थान की राजनीति में एक उभरता हुआ सितारा हैं, जो छात्र संघ अध्यक्ष, विधायक और अब लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार रहे हैं । दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने तीनों बार निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा है।उन्होंने राजस्थान की द्विध्रुवीय राजनीति में चुनावी पिच पर मुक़ाबला त्रिकोणीय बना दिया है। चुनाव प्रचार के दौरान उनके रोड शो और रैलियों में उमड़ी भीड़ को देखते हुए भाटी केंद्रीय मंत्री और बाड़मेर के भाजपा सांसद कैलाश चौधरी के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए लगते हैं। मुकाबले में तीसरा कोण कांग्रेस उम्मीदवार उम्मेद राम हैं, जो हाल ही में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से कांग्रेस में शामिल हुए हैं।
कैसे लोकप्रिय हुए निर्दलीय रवींद्र भाटी?
अब सवाल यह उठता है कि राजस्थान के जाति-प्रधान राजनीतिक परिदृश्य में रवींद्र एक निर्दलीय उम्मीदवार होते हुए भी कैसे इतने लोकप्रिय हो गए। यह पूछे जाने पर कि क्या निर्दलीय लड़ना मुश्किल है, रवींद्र भाटी ने कहा, “मुश्किल है लेकिन मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूं। यह तो बाड़मेर की जनता लड़ रही है और वे ही इस चुनाव का प्रबंधन कर रहे हैं। वे हर बूथ और हर घर में जा रहे हैं और लोगों से अनुरोध कर रहे हैं कि वे सेब चुनाव चिह्न के बगल वाला बटन दबाएं और अपने छोटे भाई रवींद्र को आशीर्वाद दें।”
चुनाव जीतने के लिए रवींद्र भाटी अपनी राजपूत पहचान के साथ-साथ अपने उदार दृष्टिकोण दोनों को ‘छत्तीस बिरादरी’ या राजस्थान के 36 समुदायों, जिसमें मुस्लिम भी शामिल हैं का पसंदीदा बनने के लिए भुना रहे हैं। भाटी के समर्थक उनके चुनाव चिह्न- सेब वाली शर्ट पहनते हैं।

बाड़मेर में दिख रही रवींद्र भाटी की लहर
आपको क्या लगता है लोग आपकी रैलियों में क्यों उमड़ रहे हैं? 26 साल की उम्र में आप छात्रसंघ अध्यक्ष, विधायक और अब लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार रहे हैं। ‘द इंडियन एक्स्प्रेस’ से बातचीत के दौरान इस सवाल के जवाब में भाटी ने कहा, “यह उनका प्यार है। वे अपने छोटे भाई को आशीर्वाद देने आ रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि उनका भाई उनके बीच से, एक सामान्य परिवार से आया है और उनके दर्द को समझ सकेगा। जब मैं जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष था तब हमने बहुत प्रयास किए, जिसके कारण मुझे अपने भाइयों का भरोसा मिला।”
पूरे बाड़मेर में भाटी की तस्वीरों वाले बिलबोर्ड और होर्डिंग्स लगे हुए हैं। 17 अप्रैल को उनका रोड शो, जो 1 किलोमीटर का था, दो घंटे से अधिक समय तक चला क्योंकि उनसे मिलने के लिए काफी भीड़ उमड़ पड़ी थी। जैसे ही भाटी अपनी कार से बाहर निकले, उनके समर्थक उनके चारों ओर जमा हो गए और उन्हें लगभग 100 मीटर तक उठाकर कार्यालय तक ले गए। पुरुष और महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक और यहां तक कि बच्चे भी चिलचिलाती गर्मी में उनका इंतज़ार कर रहे थे, जैसे ही उनका काफिला गुज़रा तो कुछ लोग जेसीबी पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाने के लिए खड़े हो गए। भाटी की उम्मीदवारी की न सिर्फ बाड़मेर और जैसलमेर बल्कि जोधपुर और अन्य पड़ोसी जिलों में भी लोग चर्चा कर रहे हैं।
विरोधी भी मान रहे भारी है रवींद्र का पलड़ा
यहां तक कि बीकानेर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष उस्मान गनी ने भी कहा कि भाजपा राजस्थान में कुछ सीटों पर हार रही है। उन्होंने कहा कि बाड़मेर में रवींद्र भाटी नया चेहरा है और मुझे लगता है कि लोग उनके साथ जा रहे हैं। वायरल हो रहे वीडियो में उस्मान ने यह भी कहा था प्रधानमंत्री मोदी को हिंदुस्तान के मुसलमान का अपमान नहीं करना चाहिए, डेवलपमेंट पे फोकस रखना चाहिए। जिसके बाद उस्मान गनी को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया।
अपने विरोधियों पर निजी हमले करने से बचते हैं रवींद्र भाटी
अपनी रैलियों में रवींद्र भाटी अपने विरोधियों पर निजी हमले करने से बचते हैं और सिर्फ यही बताते हैं कि वे बाड़मेर-जैसलमेर की जनता के लिए क्या-क्या करेंगे। वह डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) मुद्दे जैसे सार्वजनिक मुद्दे उठाते हैं। भाटी का आरोप है कि केंद्र और राज्य सरकार ने डीएनपी प्रतिबंधों के नाम पर इन दोनों रेगिस्तानी जिलों के लोगों को विकास से वंचित रखा है। वह क्षेत्र में पानी की समस्या, बेरोजगारी और खराब सड़कों के बारे में भी बोलते हैं। भाटी का कहना है कि दिल्ली से बाड़मेर दिखाई नहीं देता है, बाड़मेर को समझने के लिए किसी को यहीं का होना होगा और यहीं रहना होगा।
रवींद्र भाटी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत
भाटी ने 2019 में जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के पहले स्वतंत्र छात्र संघ नेता बनकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। जल्द ही, भाजपा ने उनसे पार्टी में शामिल होने के लिए संपर्क किया। लेकिन हाल ही में हुए राजस्थान राज्य चुनावों में विधानसभा टिकट से इनकार किए जाने के बाद चीजें खराब हो गईं। रवींद्र भाटी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। आप चार महीने पहले विधायक चुने गए थे, फिर आपको लोकसभा चुनाव लड़ने की जरूरत क्यों महसूस हुई? इसके जवाब में रवींद्र भाटी ने कहा कि मैं जनता के निर्देशों का पालन कर रहा हूं। उन्होंने आदेश दिया कि मुझे चुनाव लड़ना है और मैं लड़ रहा हूं।
छात्र राजनीति से लोकसभा तक की छलांग
विधानसभा चुनाव में सफलता की तरह वह लोकसभा सीट के लिए भी भाजपा से टिकट पाने के इच्छुक थे। लेकिन पार्टी ने अंततः अपने मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को टिकट देने का फैसला किया। भाटी ने द हिंदू से बातचीत के दौरान कहा, “सच तो यह है कि भाजपा ने मुझे कभी गंभीरता से नहीं लिया। मैं पार्टी से कहता रहा कि मैं जीत सकता हूं लेकिन वे मुझसे 20 साल तक पार्टी के लिए काम करने और फिर टिकट मांगने को कहते रहे। मैं अपना समय क्यों बर्बाद करूं जब देश को अब युवा विधायकों और सांसदों की जरूरत है, जो जमीनी मुद्दों से अवगत हैं।”
क्या वह जल्दी में हैं? इस सवाल पर रवींद्र ने कहा, “मैं विधानसभा में रहना चाहता था और काम करना चाहता था लेकिन लोगों ने कहा कि मुझे लड़ना होगा। मैंने टिकट मांगा और मुझे लटका कर रखा गया। मैंने लगभग 15-20 दिन पहले ही निर्दलीय लड़ने का फैसला किया था।” वह पानी, बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा का वादा कर रहे हैं। इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान जब रवींद्र भाटी से पूछा गया कि अगर आप जीत गए तो क्या आप बीजेपी का समर्थन करेंगे? इस पर उन्होंने कहा कि यह उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। जनता मुझे जो भी आदेश देगी, जो भी मेरे क्षेत्र के लिए अच्छा कर सकता है, मैं उसके साथ रहूंगा।
भाजपा ने लगाया राष्ट्र-विरोधी तत्वों से मिलने का आरोप
भाजपा ने रवींद्र भाटी पर अपने हालिया लंदन दौरे के दौरान राष्ट्र-विरोधी तत्वों से मिलने और अपने चुनाव अभियान के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया है। पार्टी का कहना है कि रवींद्र के पास इतने पैसे कहां से आए कि वह एसयूवी और यहां तक कि हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस पर रवींद्र भाटी का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों जगह सत्ता में होने के कारण पार्टी उन पर हर तरह की जांच करने के लिए स्वतंत्र है। उनका दावा है कि अगर उन्हें दोषी पाया गया तो वह राजनीति छोड़ देंगे।
रवींद्र भाटी ने कहा, “जो लोग मुझे देश-विरोधी कह रहे हैं, उन्हें इसे साबित करना चाहिए। मैंने उन्हें चुनौती दी थी लेकिन वे कभी सामने नहीं आये। पता नहीं वे कहां छुपे हैं। जब भाजपा को मेरी जरूरत थी तब मैं देशभक्त था लेकिन अब जब मैं भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहा हूं तो मैं देशद्रोही हूं।”

बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र
राजस्थान का संसदीय क्षेत्र बाड़मेर देश में दूसरा सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है। इसमें भारत के तीसरे और पांचवें सबसे बड़े जिले, क्रमशः जैसलमेर और बाड़मेर आते हैं। साथ ही यहां आठ विधानसभा क्षेत्र- जैसलमेर, बाड़मेर, शिव, बायतू, पचपदरा, सिवाना, गुढ़ामालानी और चोहटन शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी के कैलाश चौधरी बाड़मेर से मौजूदा सांसद हैं। इस सीट पर 2004 में पहली बार भाजपा का कब्ज़ा हुआ था। कांग्रेस ने 2009 में फिर से इसे जीत लिया लेकिन 2014 और 2019 में कैलाश चौधरी की जीत के बाद यह बीजेपी के पास गई।
बाड़मेर लोकसभा चुनाव 2019 परिणाम
पिछले लोकसभा चुनाव में बाड़मेर से भाजपा उम्मीदवार कैलाश चौधरी ने जीत दर्ज की थी। कैलाश को 8.46 लाख (59.52%) वोट मिले थे। कैलाश ने कांग्रेस उम्मीदवार मनवेन्द्र सिंह को हराया था। मनवेन्द्र को 5.22 लाख (36.75%) वोटों से संतोष करना पड़ा था। इस सीट पर 18, 996 (1.34%) लोगों ने NOTA का बटन भी दबाया था।
बाड़मेर लोकसभा चुनाव 2014 परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 में बाड़मेर से भाजपा उम्मीदवार सोना राम ने जीत दर्ज की थी। सोना राम को 4.88 लाख (40.62%) वोट मिले थे। इस चुनाव में दूसरे स्थान पर पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह थे जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में थे। जसवंत सिंह को 4.01 लाख (33.35%) वोटों से संतोष करना पड़ा था। इस सीट पर 15,889 (1.30%) लोगों ने NOTA का बटन भी दबाया था। तीसरे स्थान पर कांग्रेस उम्मीदवार हरीश चौधरी थे जिन्हें 2.20 लाख वोट मिले थे।