अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तीन दशक बाद परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने का आदेश देकर वैश्विक रणनीतिक संतुलन को झकझोर दिया है। इस घोषणा से एक ओर अमेरिका द्वारा नई परमाणु नीति की तैयारी का संकेत मिला है। दूसरी ओर, चीन, रूस और भारत जैसे देशों के सामने भी मुश्किल रणनीतिक विकल्प खड़े हो गए हैं।

तीस साल बाद कवायद

ट्रंप ने अमेरिकी सेना को परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने का आदेश दिया है। दरअसल, ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान ही कुछ समय के लिए इस बारे में विचार किया गया था। अमेरिका का तर्क है कि परमाणु भंडार की विश्वसनीयता और प्रदर्शन को बनाए रखने की आवश्यकता है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का तर्क, ‘यह सुनिश्चित करना अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है कि हमारे पास जो परमाणु भंडार है, वह वास्तव में सही ढंग से काम करे और यह परीक्षण की व्यवस्था का एक हिस्सा है।’ अमेरिका ने 1992 के बाद से कोई परमाणु परीक्षण नहीं किया है।

चिंता कितनी वाजिब

परमाणु हथियार की विश्वसनीयता को लेकर ट्रंप प्रशासन की चिंताएं दूर की कौड़ी लगती हैं, क्योंकि प्रयोगशालाओं (कंप्यूटर-सिम्युलेटेड टेस्टिंग, हाइड्रो-न्यूक्लियर टेस्टिंग और प्रयोगशाला के वातावरण में सब-क्रिटिकल टेस्टिंग) में इसकी उन्नत क्षमता का प्रदर्शन हो चुका है। दरअसल, ट्रंप प्रशासन दुनिया पर रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिश में है। साथ ही, वह अपने नए विकसित कुछ आयुधों का परीक्षण करना चाहता है।

अमेरिका के ऊर्जा विभाग के राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा प्रशासन (एनएनएसए) ने मई 2025 तक पहला ‘बी61-13 ग्रैविटी बम’ विकसित कर लिया। यह नए विकसित बमों में से पहला है। अमेरिका के पास बी61-12 बम हैं, जिनकी सटीकता और विनाशकारी ताकत जबरदस्त है। नया बी61-13 कठोर लक्ष्यों को ज्यादा भेदता है और बड़े इलाके में इसका असर होता है। यह एनएनएसए के द्वारा चलाए जा रहे ‘युद्धाग्र आधुनिकीकरण कार्यक्रम’ के तहत सात नए आयुधों में से एक है।

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परमाणु भंडार का आधुनिकीकरण

अमेरिका में बी61-12 ग्रैविटी बम का आखिरी उत्पादन दिसंबर 2024 में किया गया। यह वो समय था जब दूसरा ट्रंप प्रशासन सत्ता में आ रहा था। इससे साफ है कि अमेरिका के परमाणु भंडार के आधुनिकीकरण को लेकर सभी दलों की सहमति है। दूसरी ओर, चीन सब-क्रिटिकल परीक्षण के माध्यम से कम-से-कम अपने मौजूदा परमाणु आयुधों का परीक्षण करने में काफी सक्रिय रहा है और नए डिजाइन के परीक्षण के लिए अपने लोप नूर परमाणु स्थल को तैयार कर रहा है। भारत में विश्लेषकों का मानना है कि परमाणु परीक्षण पर 30 साल की अमेरिकी रोक को हटाने वाले ट्रंप के नए एलान के बाद चीन और रूस परमाणु परीक्षण करेंगे। दूसरी ओर, लोप नूर में चीन के द्वारा परमाणु परीक्षण की तैयारी के सबूत का इस्तेमाल अमेरिका अपने परमाणु परीक्षण को उचित ठहराने के लिए करेगा।

भारत की दुविधा

भारत के सामने कठिन विकल्प हैं। वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण पर अनिश्चितकालीन रोक लगाई थी। तब अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे। फिर क्लिंटन प्रशासन के दौर में स्ट्रोब टैलबाट और जसवंत सिंह के बीच परमाणु वार्ता हुई, जो जार्ज डब्लू बुश प्रशासन में भी चलती रही और नतीजा 2005 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के रूप में आया। फिर भारत और अमेरिका में 123 समझौते को लेकर बातचीत हुई और 2008 में परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) ने स्पष्ट रूप से छूट दी, जिससे परमाणु र्इंधन, तकनीक और वाणिज्य तक भारत की पहुंच आसान हो गई।

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खतरनाक बी61-12 बम

अमेरिका अपने नए विकसित कुछ आयुधों का परीक्षण करना चाहता है। वहां के राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा प्रशासन (एनएनएसए) ने मई 2025 तक पहला ‘बी61-13 ग्रैविटी बम’ विकसित कर लिया। उसके पास बी61-12 बम हैं, जिनकी सटीकता और विनाशकारी ताकत जबरदस्त है। नया बी61-13 कठोर लक्ष्यों को ज्यादा भेदता है और बड़े इलाके में इसका असर होता है। यह ‘युद्धाग्र आधुनिकीकरण कार्यक्रम’ के तहत सात नए आयुधों में से एक है।

गुंजाइश कम

वर्ष 2005 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता सामने आया। फिर 123 समझौते को लेकर बातचीत हुई और 2008 में परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) ने छूट दी। इस 123 समझौते के तहत भारत के पास अतिरिक्त परीक्षण के लिए बेहद कम गुंजाइश है। भारत नए परमाणु परीक्षण करेगा तो प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

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इस मामले को लेकर पूर्व राजनयिक मोहन कुमार ने कहा है कि मौजूदा कूटनीतिक स्थिति का मतलब यह नहीं है कि भारत को कभी भी परीक्षण रोकने के अपने फैसले पर फिर से विचार नहीं करना चाहिए। बल्कि पूरी तरह रणनीतिक कारणों से इस तरह के बड़े फैसले को टालना बुद्धिमानी होगी, भले ही अमेरिका या चीन कुछ भी करें।

वहीं रिटायर्ड एअर मार्शल अनिल खोसला ने इस परमाणु परीक्षण को लेकर कहा है कि परमाणु परीक्षण ऐसा मसला है, जिसमें भारत को ट्रंप प्रशासन के मनमानेपन से जूझना होगा। ऐसे वक्त में जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापार वार्ता नाजुक दौर में है, भारत को परीक्षण की संभावना को रोकने की गारंटी देने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।