अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीछे हटते हुए चीन पर लगाए गए टैरिफ को 90 दिनों के लिए टाल दिया। इससे चीन और अमेरिका के द्वारा जो एक-दूसरे पर बहुत बड़ा टैरिफ लगाया जाना था, वह फिलहाल टल गया है। डोनाल्ड ट्रंप ने एक वक्त में 145% तक टैरिफ लगा दिया था लेकिन बाद में उन्होंने इसे 30% कर दिया था।

ट्रंप को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा था क्योंकि चीन ने भी उसे जवाब देते हुए एक के बाद एक कई चीजों पर टैरिफ बढ़ा दिया था। चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125% टैरिफ लगा दिया था लेकिन बाद में इसे घटाकर 10% कर दिया।

दूसरी ओर, अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है। इसमें से 25% टैरिफ लागू हो गया है और 25% टैरिफ 27 अगस्त के बाद लागू होगा। इसे लेकर भारत के तमाम बाजारों से कई तरह की चिंताएं सामने आई हैं। टैरिफ विवाद के बीच ही दिलचस्प बात यह है कि भारत और अमेरिका के बीच कृषि को लेकर होने वाला व्यापार तेजी से बढ़ रहा है।

बड़ी बात यह है कि चीन ने अमेरिका और ट्रंप को पीछे हटने के लिए कैसे मजबूर किया? आइए, इसे थोड़ा सा समझने की कोशिश करते हैं।

‘भारत पर टैरिफ लगाने से रूस को झटका’

दुर्लभ धातुओं और मैग्नेट का निर्यात कम किया

चीन ने अमेरिका को दुर्लभ धातुओं (rare-earth metals) और मैग्नेट का निर्यात कम कर दिया और इसका सीधा असर अमेरिकी ऑटो, एयरोस्पेस, डिफेंस और सेमीकंडक्टर उद्योग पर पड़ा। इसके अलावा चीन ने अमेरिका से आयात होने वाले कृषि उत्पादों में कटौती कर उस पर दबाव बना दिया।

नीचे दिए गये टेबल से पता चलता है कि चीन को अमेरिका से जो कृषि उपज का निर्यात होता था, वह आधे से भी ज्यादा घट गया है। 2024 के जनवरी-जून में चीन ने अमेरिका से 13.1 अरब डॉलर का कृषि से संबंधित सामान की खरीद की थी लेकिन 2025 के पहले छह महीनों में यह घटकर 6.4 अरब डॉलर रह गयी। 2022 का अगर आप आंकड़ा देखें तो तब यह बहुत ज्यादा यानी 40.7 अरब डॉलर था।

सोयाबीन की खरीद में सबसे ज्यादा गिरावट

टेबल से पता चलता है कि कृषि उत्पादों में सबसे ज्यादा गिरावट सोयाबीन की खरीद में आई। 2022 में चीन ने अमेरिका से 17.9 अरब डॉलर का सोयाबीन खरीदा था जबकि जनवरी से जून 2025 में यह सिर्फ 2.5 अरब डॉलर का रहा। शायद यही वजह थी कि ट्रंप को सोशल मीडिया पर चीन से सोयाबीन खरीद को चौगुना करने की अपील करनी पड़ी।

सोयाबीन के अलावा चीन ने कई और कृषि अमेरिकी उत्पादों की खरीद में भी अच्छी-खासी कमी कर दी है। जैसे- अमेरिकी मक्का, मोटा अनाज (ज्वार और जौ), कपास के अलावा बीफ, पोर्क, पोल्ट्री मीट, बादाम, पिस्ता और अखरोट की भी खरीद कम कर दी।

भारत को लेकर कृषि निर्यात बढ़ा

यह साफ समझ आता है कि चीन ने बाकी चीजों के साथ ही कृषि संबंधी उत्पादों के आयात को भी अमेरिका के खिलाफ हथियार बनाया। अब इसकी तुलना अगर भारत के साथ करें तो जनवरी-जून 2025 में अमेरिका से चीन को होने वाला कृषि निर्यात 51.3% घट गया लेकिन भारत को लेकर यह 49.1% बढ़ गया।

यह भी पता चलता है कि भारत और अमेरिका के बीच कृषि को लेकर होने वाला व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। 2025 में अमेरिका से भारत को और भारत से अमेरिका को जो कृषि निर्यात होता है वह 3.5 अरब डॉलर से बढ़कर 7.5 अरब डॉलर से ज्यादा होने की उम्मीद है।

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यह भी बेहद दिलचस्प है कि भारत ने मेवों के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है और यह अमेरिकी मेवों का सबसे बड़ा बाजार बन गया है। 2024 में इसका निर्यात 1.1 अरब डॉलर से ज्यादा था और जनवरी-जून 2025 में यह सालाना 42.8% की बढ़त के साथ 75.96 करोड़ डॉलर का हो जाएगा।

इसी तरह, भारत के सी-फूड निर्यात में अमेरिका की 35% हिस्सेदारी है लेकिन इसके बीच हकीकत यह भी है कि अमेरिका का प्रशासन भारत पर टैरिफ लाद रहा है लेकिन टैरिफ विवाद के बीच ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साफ कर दिया था कि भारत के लिए उसके पशुपालकों, किसानों और मछुआरों का हित सबसे पहले है और वह किसी भी कीमत पर इससे कोई समझौता नहीं करेगा। 

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