अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार के H1-B वीजा को लेकर लिए गए ताजा फैसले के बाद सबसे ज्यादा हलचल भारत में है। नया फैसला यह है कि H1-B वीजा के तहत विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखने वाली कंपनियों को हर कर्मचारी के लिए 1 लाख डॉलर (88 लाख रुपये) का भुगतान अमेरिका की सरकार को करना होगा।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों ने अमेरिका के इस फैसले को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोल दिया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री बताया है।
अमेरिका के इस फैसले का असर उन कंपनियों पर होगा जो स्किल्ड प्रोफेशनल्स के लिए काफी हद तक भारत और फिर चीन पर निर्भर हैं।
‘मैं फिर कहता हूं, नरेंद्र मोदी कमजोर प्रधानमंत्री हैं’
एक बड़ी चिंता यह खड़ी हो गई है कि ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के बाद क्या भारत में ऐसे लोग जो अमेरिका जाकर काम करने की ख्वाहिश रखते हैं और सपना देखते हैं, क्या उनका यह सपना टूट जाएगा क्योंकि कंपनियां किसी कर्मचारी के लिए इतनी बड़ी राशि का भुगतान करने के लिए शायद तैयार नहीं होगी। यह फैसला 21 सितंबर से लागू होगा। कहा जा रहा है कि अमेरिका के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर ही होगा।
आइए, अमेरिका के इस फैसले को लेकर कुछ बुनियादी बातों को समझने की कोशिश करते हैं।
क्या कहा गया है ऑर्डर में?
H1-B वीजा के लिए अब तक फीस के रूप में डेढ़ हजार डॉलर देने होते थे। ट्रंप की ओर से दस्तखत किए गए ताजा ऑर्डर में कहा गया है कि H1-B वीजा प्रोग्राम का जानबूझकर इस्तेमाल अमेरिकी प्रोफेशनल्स के बजाय कम सैलरी लेने वाले और कम स्किल्ड लोगों को लाने के लिए किया गया है।
अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, इस वीजा कार्यक्रम से सबसे बड़ा फायदा Amazon को होता था उसके बाद Microsoft, Meta, Apple और Google का नंबर है। Infosys, Tata Consultancy Services (TCS), Wipro और Tech Mahindra ने भी पिछले साल H1-B वीजा के जरिए हजारों कर्मचारियों को नौकरियां दी।
H-1B वीज़ा का ‘गलत इस्तेमाल’
ट्रंप के द्वारा दस्तखत किए गए ऑर्डर में कहा गया है कि 2000 से 2019 के बीच अमेरिका में विदेशी STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) प्रोफेशनल्स की संख्या 12 लाख से बढ़कर लगभग 25 लाख हो गई है जबकि इस दौरान कुल STEM सेक्टर की नौकरियों में केवल 44.5% की बढ़ोतरी हुई। कंप्यूटर और गणित से जुड़ी नौकरियों या रोजगार में विदेशी प्रोफेशनल्स की हिस्सेदारी 2000 में 17.7% थी जो 2019 में बढ़कर 26.1% हो गई। इस बढ़ोतरी के पीछे सबसे बड़ी वजह H-1B वीज़ा के ‘गलत इस्तेमाल’ को बताया गया है।
ऑर्डर में कहा गया है कि विशेष रूप से IT फर्मों ने H-1B वीजा सिस्टम में बड़े पैमाने पर हेरफेर किया है। H-1B वीजा प्रोग्राम में IT प्रोफेशनल्स की हिस्सेदारी 2003 में 32% थी, जो पिछले पांच सालों में औसतन 65% से ज्यादा हो गई है।
कंपनियों पर यह आरोप लगाया है कि वे कम लेबर कॉस्ट का फायदा उठाने के लिए कम सैलरी में काम करने वाले विदेशी प्रोफेशनल्स को रखने के लिए अपनी IT डिवीजन को बंद कर देती हैं। इसके बाद अमेरिकी कर्मचारियों को बाहर निकाल देती हैं और IT की नौकरियों को कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारियों को आउटसोर्स कर देती हैं।
हॉवर्ड लुटनिक ने बताया था घोटाला
इस साल की शुरुआत में अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने H-1B वीजा प्रोग्राम को घोटाला बताया था। उन्होंने कहा था कि इससे विदेशी लोग अमेरिकी नौकरियां हासिल कर रहे हैं और अमेरिकी कर्मचारियों को नियुक्त करना सभी अमेरिकी व्यवसायों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
अमेरिका में इमिग्रेशन का मुद्दा बेहद विवादास्पद है लेकिन इस नए फैसले के बाद पूरी बहस अवैध इमिग्रेशन से हटकर H-1B वीजा पर आकर सिमट गई है। एक बड़ा सवाल मन में यह आता है कि H-1B वीजा प्रोग्राम से भारत के लोगों को किस तरह फायदा हुआ है?
अमेरिका की सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2015 से हर साल मंजूर किए जाने वाले सभी H-1B आवेदनों में से 70% से ज्यादा आवेदन भारतीयों के हैं। चीन के लोग दूसरे नंबर पर हैं लेकिन उनका आंकड़ा काफी कम है और यह 2018 से 12-13% के आसपास ही है।
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72 प्रतिशत वीजा भारतीयों को मिले
आंकड़ों से यह भी सामने आया है कि अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच, H-1B वीजा कार्यक्रम के तहत जारी किए गए लगभग 4 लाख वीजा में से 72 प्रतिशत भारतीयों को मिले। इस दौरान अमेरिका में काम कर रही भारत की चार बड़ी IT कंपनियों- Infosys, TCS, HCL और Wipro को अपने कर्मचारियों के लिए करीब 20 हजार H-1B वीजा की मंजूरी मिली।
भारत सरकार के एक सीनियर अफसर के अनुसार, H-1B वीजा प्रोग्राम से सबसे ज्यादा मदद अमेरिकी कंपनियों को ही मिली है क्योंकि उन्हें उतने स्किल्ड प्रोफेशनल अपने देश में नहीं मिलते।
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अमेरिका में कम हो जाएंगे भारत के प्रोफेशनल्स
अमेरिका के इस नए फैसले के बाद अमेरिका के बाजार में भारत के प्रोफेशनल्स का पहुंचना कम हो जाएगा जिससे भारत की IT कंपनियों को अमेरिकी कॉन्ट्रैक्ट भी कम मिलेंगे और इसका सीधा असर उन्हें मिलने वाली इनकम पर होगा।
भारत सरकार के अधिकारी का कहना है कि क्योंकि H-1B वीजा से अमेरिकी कंपनियों को अच्छे और हुनरमंद प्रोफेशनल्स खोजने में मदद मिली है, ऐसे में सवाल यह है कि क्या अमेरिकी प्रोफेशनल भारतीयों की जगह को भर पाएंगे?
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