ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन पाकिस्तान में बने रूह अफजा को कई नियमों का उल्लंघन कर भारत में बेच रहा था। ‘हमदर्द प्रयोगशालाओं (वक्फ), पाकिस्तान’ के बनाए गए रूह अफजा पर अमेजन निर्माता के नाम के अलावा कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करा रहा था।

अमेजन इंडिया पर उपलब्ध ‘विजिट द हमदर्द स्टोर’ के लिंक पर करने पर यूजर ‘हमदर्द लेबोरेटरीज इंडिया’ पर पहुंच जा रहा था। यानी पाकिस्तानी प्रोडक्ट को इंडियन कंपनी के साथ लिंक कर बेचा जा रहा था।

इस तरह यह मामला ‘रूह अफजा’ के ट्रेडमार्क से भी जुड़ गया था। जब भारत में रूह अफजा बनाने वाली कंपनी को इसकी भनक लगी तो मामला कोर्ट में पहुंच गया। हमदर्द नेशनल फाउंडेशन (इंडिया) और हमदर्द दवाखाना ने अमेजन इंडिया लिमिटेड और मैसर्स गोल्डन लीफ के खिलाफ मुकदमा दायर दिया।

7 सितंबर को मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अमेजन को 48 घंटे के भीतर रूह अफजा को अपनी लिस्टिंग से हटाने का निर्देश दिया। साथ ही चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा भी दाखिल करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी।

लू से बचने की दवा रूह अफजा

रूह अफजा को आज दूध या ठंडे पानी में मिलाकर शरबत की तरह पिया जाता है। फिरनी और फालूदा जैसे स्वीट डेजर्ट में भी इसका इस्तेमाल होता है। कुछ अति प्रयोगधर्मी ख़ानसामा इसका इस्तेमाल कई और व्यंजनों में भी कर लेते हैं। हालांकि इस सिरप को एक दवा के रूप में ईजाद किया गया था। फार्मूले की खोज हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने की थी।  

हाफिज अब्दुल मजीद हमदर्द नामक एक छोटा यूनानी क्लिनिक चलाते थे। यूनानी चिकित्सा पद्धति ग्रीक-अरबी उपचार की एक एक प्राचीन परंपरा जो मध्य पूर्व और कुछ दक्षिण एशियाई देशों में लोकप्रिय है। यूनानी को भारत सरकार का आयुष मंत्रालय वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित मानता है।

साल 1906 की बात है। दिल्ली में भीषण गर्मी पड़ थी। मजीद ने हीट स्ट्रोक (लू लगने) थकान और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए अलग-अलग सामग्री को मिलाकर कुछ बनाना शुरु किया। एक साल बाद (1907) में जो तैयार हुआ, उसे आज हम रूह अफजा के नाम से जानते हैं। यह तब शीतल पेय या शरबत नहीं था। इसे एक दवा के रूप में बनाया गया था। मजीद इसे दवा की खुराक की तरह दिया करते थे। रूह अफजा लोगों को लू और गर्मी से राहत देने में कामयाब रहा। मजीद का दवाखाना रूह अफजा के लिए ही जाना जाने लगा और देखते ही देखते वह दवा से शरबत बन गया।

34 साल की उम्र में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद का निधन हो गया। उनकी पत्नी राबिया बेगम ने हमदर्द को एक ट्रस्ट घोषित किया, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से चैरिटी के जरिए यूनानी दवाओं पर शोध करना था।

1947: देश और रूह अफजा का विभाजन

हकीम हाफिज अब्दुल मजीद और उनकी पत्नी रबिया बेगम के दो बेटे थे। अब्दुल हमीद और मोहम्मद सईद। दोनों हकीम मजीद के साथ काम करके खुद भी हकीम बन गए थे। पिता की मौत बाद बेटों ने व्यवसाय संभाल लिया था। साल 1947 में भारत को विभाजन की त्रासदी के साथ अंग्रेजों से आजादी मिली। बंटवारे की आंच से रूह अफजा भी न बचा।

बड़े बेटे हकीम अब्दुल हमीद ने तय किया की वह अपनी मां के साथ भारत में ही रहेगा। जबकि छोटे बेटे हकीम मोहम्मद सईद ने पाकिस्तान जाना चुना। उन्होंने कराची में रूह अफजा बनाना शुरू किया। कंपनी को नाम दिया – हमदर्द लेबोरेटरीज (वक्फ)। आज वह पाकिस्तान का बड़ा ब्रांड है।

भारत में रूह अफजा बनाने वाली कंपनी को हमदर्द नेशनल फाउंडेशन के नाम से जानते हैं। हमदर्द इंडिया रूह अफजा के नाम से बेचे जाने वाले उत्पादों की बिक्री से सालाना 200 करोड़ रुपये से अधिक कमाता है।

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1971: बांग्लादेश के साथ बना एक नया हमदर्द

1971 में पाकिस्तान से अलग होकर नया देश बांग्लादेश बना। वहां एक अलग हमदर्द ट्रस्ट की स्थापना की गई। 2021 में प्रकाशित न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि तीनों व्यवसाय एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से परिवार के सदस्यों या हर्बलिस्ट हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के दोस्तों द्वारा चलाए जा रहा है।