आजादी के बाद “गैर-कांग्रेसवाद” का नारा बुलंद करने वाले महान समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया का निधन साल 1967 में 12 अक्टूबर (Ram Manohar Lohia Death Anniversary) को हुआ था। 1967 ही वह ऐतिहासिक साल था, जब कांग्रेस 9 राज्यों की सत्ता से बाहर हो गई थी। इस बदलाव की अगुवाई गठबंधन की राजनीति के जनक कहे जाने वाले डॉ. लोहिया ने की थी।
उन्होंने जिस तरह सरकार की नीतियों की आलोचना की उसकी आज भी मिसाल दी जाती है। उनका एक चर्चित कथन है, ”जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं”। वह नेहरू को पहाड़ कहते थे लेकिन उस पहाड़ से टकराने से बाज़ नहीं आते थे। उनके दिखाए रास्तों को आज लोहियावाद कहा जाता है। उनके संवाद से पैदा विवाद की सराहना और निंदा दोनों हुई। आइए जानते हैं वह कब-कब चर्चा में आए:
PM नेहरू का खर्च बता चौंकाया
साल 1962 की बात है। जवाहरलाल नेहरू फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। सत्तारूढ़ कांग्रेस की तुलना में लोहिया के पास न तो संसाधन था, न कार्यकर्ताओं की वैसी संख्या। लेकिन वह नेहरू को चुनौती देने मैदान में कूद गए थे।
लोहिया के चुनाव प्रचार की टीम का हिस्सा रहे सतीश अग्रवाल के हवाले से बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में डॉ. लोहिया का एक कथन लिखा है। लोहिया ने कहा था, ”मैं पहाड़ से टकराने आया हूं। मैं जानता हूं कि पहाड़ से पार नहीं पा सकता लेकिन उसमें एक दरार भी कर दी तो चुनाव लड़ना सफल हो जाएगा।”
लोहिया फूलपुर से 1962 का चुनाव हार गए थे। लेकिन 1963 में हुए उपचुनाव को जीतकर वह संसद पहुंच गए। दिल्ली में उन्होंने एक राजनीतिक पर्चा लिखा, जिसका शीर्षक था- ‘एक दिन के 25 हजार रुपये’
पर्चा में उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू पर होने वाले एक दिन के खर्चा का ब्योरा दिया और उसकी आलोचना की। उन्होंने लिखा था कि जब देश के 70 फीसदी लोग तीन आना (एक आना 1⁄16 रुपये के बराबर हुआ करता था।) प्रतिदिन पर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं, उन लोगों का प्रधानमंत्री अपने ऊपर राजकीय कोष से 25,000 रुपये खर्च कर रहा है।
नेहरू ने लोकसभा की बहस में लोहिया के आंकड़ों का विरोध किया। उन्होंने योजना आयोग के हवाले से बताया कि देश के 70 फीसदी लोग रोजाना 15 आना कमा रहे हैं। तीन आना बनाम पंद्रह आना की इस बहस से लोहिया खूब चर्चित हुए और नेहरू की जमकर आलोचना हुई। लोहिया ने नेहरू जवाब देते हुए कहा था कि नेहरू जी तीन और 15 आना तो ठीक है लेकिन 25,000 में लाखों आना होते हैं।
इंदिरा को कहा गूंगी गुड़िया
इंदिरा गांधी जनवरी 1966 में पहली प्रधानमंत्री बनी थीं। वह अपने पहले कार्यकाल के दौरान बहुत सहज नहीं थी। वह संसद की बहस से बचने की कोशिश करतीं। इंदिरा गांधी के कई जीवनीकारों ने इस बात को रेखांकित किया है कि प्रधानमंत्री बनने के दो साल बाद तक नर्वसनेस के कारण उनका पेट खराब हो जाता था, सिर में दर्द होने लगता था। उनकी इसी असहजता और चुप्पी को निशाना बनाते हुए समाजवादी नेता डॉ लोहिया ने ‘गूंगी गुड़िया’ की उपाधि दे दी थी।
द्रौपदी को बताया था आदर्श
लोहिया जिन सिद्धांतों की बात करते थे, उसे अपने जीवन में भी उतारते थे। यही वजह है कि उनका निजी जीवन 50-60 के दशक बहुत प्रगतिशील माना गया। वह अरेंज मैरेज के खिलाफ थे और खुद मृत्यु तक लिव इन रिलेशनशिप में रहे। वह कहते थे कि माता-पिता की जिम्मेदारी अपने बेटे या बेटी की शादी कराना नहीं है। उनकी जिम्मेदारी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करना है। वयस्कों को अपने साथी का चुनाव स्वयं करना चाहिए।
महिलाओं के मामलों में लोहिया अपने वक्त से बहुत आगे की सोचते थे। समान अधिकार की वकालत करते हुए उन्होंने कहा था, देश की महिलाओं को सीता की नहीं है बल्कि द्रौपदी की जरूरत है, जो संघर्ष कर सके, सवाल पूछ सके।