अक्सर टी-शर्ट पर दिखने वाले लातिनी अमरीकी क्रांतिकारी चे ग्वेरा का जन्म 14 जून, 1928 को हुआ था। उनका असली नाम  ‘अर्नेस्टो ग्वेरा दे ला सरना’ था। हालांकि वह चर्चित ‘चे’ से हुए। वह पेशे से डॉक्टर और लेखक थे। वह चाहते तो अपने देश अर्जेंटीना में आराम की जिंदगी बिता सकते थे। लेकिन समाज में फैली गरीबी और शोषणकारी व्यवस्था ने चे को मार्क्सवादी बना दिया।

साल 1955 में मात्र 27 साल की उम्र में उनकी मुलाकात फिदेल कास्त्रो से हुई और वह गुरिल्ला योद्धा बन गए। चे अपने साथी फिदेल कास्त्रो और अन्य के साथ मिलकर क्यूबा को अमेरिका परस्त शासक फुलगेनियो बतिस्ता से आजाद कराने निकल पड़े। जनवरी 1959 में क्यूबा क्रांति हुई और देश में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना हुई। फिदेल कास्त्रो क्यूबा के राष्ट्रपति बने और चे राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष। बाद में उन्हें उद्योग मंत्री भी बनाया गया।

क्रांति के बाद क्यूबा को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में भारत का नाम आता है। क्यूबा सरकार में मंत्री रहते हुए चे ग्वेरा साल 1959 में भारत आए थे। हालांकि इस यात्रा के विवरण पर करीब 50 सालों तक धूल जमी रही है। साल 2007 में हिंदी दैनिक अखबार ‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी के प्रयास से चे की भारत यात्रा की विस्तृत जानकारी और तस्वीरें सामने आईं।

चे की भारत यात्रा

चे ग्वेरा ने 20 साल की उम्र में ही जोला, मार्क्स, लेनिन, फ्रायड, नेहरू को पढ़ लिया था। कॉलेज के दिनों में ही वह जवाहरलाल नेहरू की लिखी ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पढ़कर, उनके मुरीद हो चुके थे। नेहरू के विशेष आमंत्रण पर चे ग्वेरा 30 जून 1959 को दिल्ली आए थे। चे और उनके सहयोगी पालम हवाई अड्डे पर उतरे थे। सभी का स्वागत विदेश मंत्रालय के डिप्टी चीफ ऑफ प्रोटोकॉल डीएस खोसला ने किया था। चे के साथ उनका एक ऐसा अंगरक्षक भी आया था, जिसे उन्होंने खुद प्रशिक्षित किया था।

चे और नेहरू की मुलाकात 1 जुलाई, 1959 को तीन मूर्ति आवासीय कार्यालय में हुई। दोनों ने साथ खाना खाया। नेहरू ने उपहार स्वरूप चे को एक विशेष तरह की खुकरी दी थी। जवाहरलाल नेहरू द्वारा भेंट की गई खुकरी के कवर पर हिंदू देवी ‘दुर्गा’ की आकृति खुदी हुई हैं। इसी रोज चे ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री नित्यानंद कानूनगो के साथ उनके कार्यालय में एक बैठक भी की थी। इसके बाद चे और उनकी टीम ने ओखला इंडस्ट्रियल एस्टेट का दौरा किया था।

चे दिल्ली में कई लोगों से मिले। जब वह दिल्ली के नजदीक स्थित पिलाना ब्लॉक में अपनी टीम के साथ घूम रहे थे, तो गांधी टोपी पहने एक वृद्ध व्यक्ति ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया था। चे ने पिलाना ब्लॉक के एक स्कूल का भी दौरा किया था। वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने चे को भारतीय चाय, कॉफी और सिगार तोहफे में दिया था।

इसके अलावा वह भारत के योजना आयोग और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की प्रयोगशाला में भी गए थे, जहां उन्होंने मेटल डिटेक्टर मशीन कैसे काम करता है, यह देखा। 3 जुलाई, 1959 को सहकारिता मंत्री एस.के. डे ने अपने नई दिल्ली स्थित कार्यालय में चे ग्वेरा का स्वागत किया। इसी रोज चे रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन से भी मिले। 4 जुलाई, 1959 को केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री एपी जैन ने चे से मुलाकात की।

चे ग्वेरा नई दिल्ली के अशोका होटल में ठहरे थे। वहीं ऑल इंडिया रेडियो के लिए केपी भानुमति ने उनका इंटरव्यू किया था। दिल्ली के अलावा चे कलकत्ता (अब कोलकाता) भी गए थे। चे ने अपनी भारत यात्रा पर एक रिपोर्ट लिखी थी जो उन्होंने फिदेल कास्त्रो को सौंपी थी।

क्यों लंबे समय तक दबा रहा ये सब?

द स्क्रॉल पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, थानवी को लगता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रूसी साम्यवाद के खिलाफ चे की टिप्पणियों के कारण भारतीय कम्युनिस्ट उनकी भारत यात्रा को भुला देना चाहते थे। 

पत्रकार ने जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से चे की भारत यात्रा से जुड़ी तस्वीर हासिल करनी चाही तो वहां के अधिकारियों ने बताया कि चे कभी भारत आए ही नहीं, क्योंकि अगर वह आए होते, तो उनकी तस्वीरें डिप्लोमैटिक गैलरी में लगी होती। जब ओम थानवी ने उन्हें इस बात का सबूत दिखाया कि चे वास्तव में भारत आया था, तब जाकर बड़ी खोजबीन के बाद 14 तस्वीरें मिलीं। जब जनसत्ता पर तस्वीरें प्रकाशित हुईं तो कई लोगों को विश्वास करने में समय लगा। बाद में पत्रकार ने इस संबंध में क्यूबा की यात्रा कर अधिक जानकारी जुटाई।