72 साल के सीताराम येचुरी ने गुरूवार को जीवन की अंतिम सांस ली। येचुरी ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्र नेता के तौर पर अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया और धीरे-धीरे राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हुए वह सीपीएम में सर्वोच्च पद पर पहुंचे। सीताराम येचुरी को एक सौम्य नेता के रूप में जाना जाता था। येचुरी कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने वाले शख्स थे। सिर्फ 32 साल में उन्हें सीपीएम की केंद्रीय कमेटी का सदस्य बनाया गया और वह उस वक्त के सबसे युवा नेता थे जिन्हें इस महत्वपूर्ण कमेटी में जगह मिली थी।

सीताराम येचुरी 1990 के दशक से गठबंधन की राजनीति का प्रमुख चेहरा बने जब जनता दल के अलग-अलग धड़े कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए साथ आए। येचुरी 1996 में ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खड़े हो गए। बाद में ज्योति बसु ने भी कहा था कि यह एक बड़ी गलती थी।

येचुरी 2005 से 2017 तक राज्यसभा के सांसद रहे। वह एक मिलनसार और हंसमुख शख्स थे जिनके राजनीति में अच्छे दोस्त थे। यहां तक कि बीजेपी नेताओं से भी उनकी बातचीत होती थी।

सीताराम येचुरी सीपीएम के लगातार खराब हो रहे प्रदर्शन को सुधार नहीं सके। सीपीएम के पास वर्तमान में केवल चार लोकसभा सीटें हैं और उसका वोट शेयर 1.76% है।

सेंट स्टीफन, जेएनयू से पढ़े थे येचुरी

येचुरी का जन्म संयुक्त आंध्र प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूलिंग हैदराबाद से की थी लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए वह 1969 में दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफन कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वह जेएनयू पहुंचे जहां से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया।

आपातकाल का किया था विरोध

सीताराम येचुरी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1974 में जेएनयू में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया से की। इसके बाद वह सीपीएम में शामिल हुए और इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा लगाए गए आपातकाल का विरोध किया।

येचुरी ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव भी जीता था। 1984 में उन्हें प्रकाश करात के साथ केंद्रीय कमेटी में शामिल किया गया और 1992 में वह सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य बने।

वामपंथी दिग्गजों के साथ रहते हुए सीखे राजनीति के गुर

केंद्रीय कमेटी में रहते हुए येचुरी ने वामपंथी राजनीति के दिग्गजों ईएमएस नम्बूदरीपाद, एम बसवपुन्नय्या और हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ काम किया। इन तीनों बड़े नेताओं को येचुरी में नेतृत्व क्षमता दिखी और उन्होंने उन्हें भविष्य की राजनीति के लिए तैयार किया।

येचुरी ने हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ मिलकर 1996 में एचडी देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने के लिए गठबंधन तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। क्योंकि 1996 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था।

सीताराम येचुरी ने युनाइटेड फ्रंट की सरकार के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को तैयार करने में पी. चिदंबरम के साथ काम किया था। जब देवेगौड़ा की सरकार गिर गई तो सीताराम येचुरी ने आईके गुजराल को प्रधानमंत्री बनाने में भी मदद की।

कांग्रेस के साथ अच्छे संबंधों का किया समर्थन

पिछले कुछ सालों में येचुरी ने सीपीएम और कांग्रेस के बीच अच्छे राजनीतिक संबंध होने का समर्थन किया। सीपीएम ने 2004 में यूपीए की पहली सरकार का समर्थन किया था लेकिन 2008 में भारत-अमेरिका के बीच जब न्यूक्लियर डील का मामला सामने आया था तो समर्थन वापस ले लिया था।

इसके बाद भी येचुरी को पार्टी के भीतर एक ऐसे नेता के रूप में पहचाना जाता था जो बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस के साथ सहयोग करने की वकालत करते थे। हालांकि इस वजह से पार्टी के भीतर थोड़ा दिक्कतें भी पैदा हुईं क्योंकि येचुरी को ‘व्यावहारिक’ माना जाता था और प्रकाश करात की पहचान पहचान एक ‘सख्त’ नेता के रूप में थी। येचुरी के पास बंगाल इकाई का समर्थन था जबकि प्रकाश करात के पास केरल के सीपीएम नेताओं का।

प्रकाश करात जब 2005 से 2015 तक पार्टी के महासचिव रहे तब सीताराम येचुरी ने खुद को पार्टी में एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। येचुरी 2015 में पार्टी के महासचिव बने लेकिन पार्टी के प्रदर्शन में लगातार गिरावट आती जा रही थी।

2004 में 43 सीटें जीतने वाली सीपीएम 2009 में 16 सीटों पर आ गई थी। 2014 में सीपीएम को 9 सीटों पर जीत मिली थी और 2019 में उसने सिर्फ तीन सीटें (एक निर्दलीय भी साथ) और 2024 में चार सीटें जीती थी। 2022 में सीताराम येचुरी को तीसरी बार सीपीएम का महासचिव चुना गया था।

येचुरी को कहा जाता था टू इन वन जनरल सेक्रेटरी

येचुरी के बारे में यह भी कहा जाता था कि पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी से उनकी नजदीकियां बढ़ रही हैं। 2022 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने चुटकी लेते हुए कहा था कि सीताराम येचुरी टू इन वन जनरल सेक्रेटरी हैं। वह कांग्रेस और सीपीएम दोनों के महासचिव हैं और कभी-कभी उनका प्रभाव सीपीएम से ज्यादा कांग्रेस में ज्यादा होता है।