15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश राज से आजाद होने के लिए भारत को अपनी जमीन पर कुछ सियासी लकीरों को खींचना था। विभाजन की उन रेखाओं का आज की तारीख से बहुत गहरा नाता है। 15 जून, 1947 को ही अखिल भारतीय कांग्रेस ने अंग्रेजों की विभाजन वाली योजना को स्वीकार किया था। उस योजना को ‘माउंटबेटन योजना’ के नाम से जाना गया, जिसे तैयार किया था भारत के आखिरी वायसराय लुई माउंटबेटन ने।
क्या थी योजना? : अंग्रेजों ने फरवरी 1947 में ही भारत को आजाद करने का ऐलान कर दिया था। आजादी कैसी होगी इसका खाका तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई माउंटबेटन को। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उस वक्त देश दंगों से ग्रस्त था, मुस्लिम लीग अपने चरम पर थी, गांधी का असर कम हो रहा था और कांग्रेस जल्द से जल्द आजादी चाहती थी। ऐसे में माउंटबेटन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ लंबी चर्चा के बाद 3 जून 1947 को एक योजना तैयार की, जिसे 15 जून के दिल्ली अधिवेशन में कांग्रेस ने स्वीकार किया।
योजना के मुताबिक, भारत को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटकर भारत और पाकिस्तान बनाया जाना था। पाकिस्तान के संविधान निर्माण हेतु एक अलग संविधान सभा का गठन किया जाना था। पंजाब और बंगाल में हिंदू व मुसलमान बहुसंख्यक जिलों को अलग प्रांत बनाने का विकल्प दिया गया था। रियासतों को छूट दी गई थी कि वो भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकते हैं या स्वतंत्र रह सकते हैं। साथ ही भारत और पाकिस्तान को सत्ता सौंपने के लिए 15 अगस्त 1947 की तारीख तय की गई। 18 जुलाई 1947 के दिन ब्रिटिश पार्लियामेंट ने माउंटबेटन की इस योजना को पास कर दिया था।
कांग्रेस ने विभाजन क्यों स्वीकार किया? : इतिहास के ऐसे सवालों का कोई एक जवाब नहीं हो सकता। समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया की नजरों से देखे तो कांग्रेस ने विभाजन को इसलिए स्वीकार किया क्योंकि नेहरू और उनके ही जैसे कुछ बड़े कांग्रेसी नेता सत्ता के भूखे थे। ये बात लोहिया ने अपनी किताब ‘गिल्टी मेन ऑफ़ पार्टिशन’ में लिखी है। वहीं कुछ दूसरे इतिहासकारों का मानना था कि 1946 के बाद सांप्रदायिक हिंसा इतनी बढ़ गई थी कि कांग्रेस के पास विभाजन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। हालांकि गांधी के पास तब भी एक प्लान था। उन्होंने नेहरू और पटेल को माउंटबेटेन से विभाजन के मुद्दे पर दोबारा बात करने को कहा। सुझाव दिया कि पहले अंग्रेजों से आजादी लेकर देश की बागडोर जिन्ना को दे देते हैं। तुम दोनों जिन्ना से कहो कि आप प्रधानमंत्री बन जाइये, हम आपका समर्थन करेंगे। गांधी के इस सुझाव का पटेल ने यह करते हुए विरोध किया कि इससे देश में विद्रोह हो जाएगा।