जिस दिन से योगी आदित्यनाथ ने राजनीति में कदम रखा, उसी दिन से सुर्खियां खुद ब खुद उनका पीछा करने लगीं। मगर आज के सीएम योगी जब अजय सिंह बिष्ट हुआ करते थे, तब भी उनकी ज़िंदगी किसी दिलचस्प नॉवेल से कम नहीं थी…जिसका हर चैप्टर एक अलग रोमांच समेटे हुए था।

बहन को याद नहीं कब बांधी थी राखी: अपनी बड़ी बहन के साथ योगी आदित्यनाथ के रिश्ते बड़े गहरे थे…जब वो पहली बार यूपी के सीएम बनें, तब एक इंटरव्यू में उनकी बड़ी बहन शशि ने बताया था कि “करीब 31 साल पहले जब मेरी शादी होने वाली थी तब महाराज जी यानि योगी आदित्यनाथ ही मेरे लिए डोली लाए थे। मगर अब मुझे याद भी नहीं है कि आखिरी बार महाराज को राखी बांधी थी। हालांकि, हर बार राखी जरूर भेजती जरूर हूं।”

जीजाजी को क्यों डांट देते थे योगी?: वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी अपनी किताब- यदा यदा ही योगी में लिखते हैं कि “अजय सिंह बिष्ट के जीजाजी ने छात्र जीवन में उन्हें बहुत सहयोग दिया। जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने योगी को छात्रसंघ का टिकट देने से मना कर दिया था, तब जीजाजी ने ही उन्हें एसएफआई के टिकट का ऑफर दिलवाया था। ये बात और है कि योगी ने ऑफर ठुकरा कर एबीवीपी के साथ रहना ही बेहतर समझा। मगर दीदी-जीजाजी के साथ दो-ढाई साल रहने वाले अजय सिंह बिष्ट गलती होने पर उन्हें डांटने से भी गुरेज नहीं करते थे।”

कभी जनसेवा भी कर लिया कीजिए पापा: शांतनु गुप्ता अपनी किताब योगी गाथा में लिखते हैं कि शशि बताती हैं कि “जब योगी 15-16 साल के थे तब उन्होंने पिता जी से कहा था, ‘क्या पिता जी आप तो अपना ही परिवार पालते हो। कभी जनता की सेवा भी कर लिया करो।’ तब पिता जी ने उनसे कहा था कि बेटा मेरी तो 85 रुपये की तनख्वाह है। मैं तो तुमको पाल लूं वही बहुत है। फिर आगे पिता जी ने बोला कि देखता हूं तू क्या करता है।” शांतनु आगे लिखते हैं कि उस वक्त किसे पता था कि आगे चलकर योगी पूरे प्रदेश की सेवा करते नजर आएंगे।

महंत अवैद्यनाथ ने कहा पापा से पूछकर आओ: योगी आदित्यनाथ की बड़ी बहन शशि ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि “जब भाई कॉलेज में पढ़ रहा था तब एक कार्यक्रम में गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ आए थे। यहीं भाई ने उनसे मुलाकात की थी। उस कार्यक्रम में भाई ने भाषण दिया था, जिसे सुनकर महंत जी खुश हो गए थे और उन्होंने गोरखपुर बुलाया था। योगी से उन्होंने कहा था कि तुम मेरे उत्तराधिकारी बन जाओ। लेकिन पहले परिवार से पूछकर आओ। तब वो घर आए। अपनी मां से उन्होंने गोरखपुर जाने के लिए कहा। तब मां ने सोचा कि नौकरी करने के लिए जा रहे होंगे। लेकिन किसी को नहीं मालूम था कि वो संत बन जाएंगे।”