Jharkhand Elections 2024 NDA vs INDIA Alliance: बहुत जल्द साफ हो जाएगा कि झारखंड में किसकी सरकार बनेगी। एग्जिट पोल से ऐसा लगता है कि झारखंड में बड़ी और कड़ी चुनावी लड़ाई एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच है। विधानसभा चुनाव में एक ओर बीजेपी, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने तो दूसरी ओर झामुमो, कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों ने चुनाव लड़ा।

आइए आपको झारखंड के चुनाव नतीजों को लेकर पांच बड़ी बातें बताते हैं।

1- ध्रुवीकरण वाला कार्ड काम करेगा?

बीजेपी ने राज्य में कथित रूप से हो रही बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं की घुसपैठ को मुद्दा बनाया और धर्मांतरण का आरोप लगाया। बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री और राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को जिम्मेदारी दी थी।

सरमा और बीजेपी के तमाम नेताओं ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया। बीजेपी नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि झारखंड की आदिवासी महिलाएं “बांग्लादेशी घुसपैठियों” के अत्याचार का शिकार हो रही हैं क्योंकि ये लोग आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं, जमीन खरीद रहे हैं और नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं। बीजेपी ने यह भी कहा कि घुसपैठ झारखंड की पहचान और डेमोग्राफी के लिए खतरा है।

देखना होगा कि संथाल परगना के इलाके में बीजेपी और एनडीए को इससे कितना फायदा होगा?

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महायुति और MVA ने किया अपनी-अपनी जीत का दावा। (Source-ANI और PTI)

2- आदिवासी सीटों पर किसे मिलेगी जीत?

लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी। ये सीटें- खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, दुमका और राजमहल हैं। बीजेपी के लिए चिंता की बात यह भी है कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इन पांच लोकसभा सीटों में से चार सीटों पर उसकी हार का अंतर 1.2 लाख वोटों से ज्यादा का रहा है। केवल दुमका सीट पर वह 23 हजार वोटों से हारी थी। इसके बाद बीजेपी ने आदिवासी बहुल इलाकों में विशेष रणनीति के तहत चुनाव लड़ा।

झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं और इसमें से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। झारखंड में एसटी मतदाताओं की आबादी 26% और राज्य के 24 जिलों में से 21 में आदिवासियों की संख्या कम से कम एक लाख है।

मोदी सरकार, बीजेपी ने उठाए बड़े कदम

बीजेपी ने आदिवासी मतों को अपने पाले में करने के लिए आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिरसा मुंडा के जन्म स्थान खूंटी में स्थित उलिहातू पहुंचे थे। उन्होंने विकसित भारत यात्रा को भी यहीं से शुरू किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 नवंबर को झारखंड में 24,000 करोड़ रुपये के विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTGs) विकास मिशन की शुरुआत की थी।

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चुनाव में होगा नारे का असर?(Source-AP)

3- क्या हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से मिलेगी INDIA को सहानुभूति?

झारखंड की राजनीति में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन को सबसे बड़ा नेता माना जाता है। शिबू सोरेन आठ बार लोकसभा के सांसद रहे हैं। वर्तमान में झामुमो की कमान उनके बेटे और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथों में है लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जब सोरेन को भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी ने गिरफ्तार कर लिया तो झामुमो ने इसे आदिवासियों का अपमान बताया और चुनाव प्रचार के दौरान इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया। लोेक

लोकसभा चुनाव के नतीजों में और विशेषकर आदिवासी बेल्ट वाली सीटों पर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का असर दिखाई दिया था क्योंकि बीजेपी सभी आरक्षित सीटों पर हार गई थी। क्या विधानसभा चुनाव में भी इंडिया गठबंधन को इसका फायदा मिलेगा?

4- कल्पना सोरेन को कितनी कामयाबी मिलेगी?

हेमंत सोरेन के जेल में होने और शिबू सोरेन के राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय न होने की वजह से लोकसभा चुनाव में प्रचार की कमान हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने संभाली थी और इससे झामुमो के साथ ही इंडिया गठबंधन को भी इसका फायदा हुआ था। कल्पना सोरेन ने खुद गांडेय विधानसभा सीट से 27000 वोटों के अंतर से चुनाव जीता था। इस बार भी वह इस सीट से चुनाव लड़ रही हैं।

झामुमो और इंडिया गठबंधन ने चुनाव में “मैया सम्मान योजना” का खूब प्रचार किया और इसका चेहरा कल्पना सोरेन को बनाया। सोरेन सरकार ने वंचित समुदायों की 18 से 50 वर्ष की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये देने की योजना शुरू की। चुनाव में फिर से सरकार बनाने के बाद इसे बढ़ाकर 2,500 रुपये दिए जाने का प्रस्ताव है। विधानसभा चुनाव के दौरान स्टार प्रचारक के रूप में कल्पना की लोकप्रियता बढ़ी।

दूसरी ओर, बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान में महिला मतदाताओं पर विशेष फोकस किया। राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या 1.26 करोड़ है। बीजेपी ने कहा कि वह सत्ता में आने पर पात्र महिलाओं को 2,100 रुपये प्रति माह देगी।

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नागपुर साउथ-वेस्ट में कैसा है चुनावी माहौल। (Source-FB)

5- कमाल कर पाएंगे ‘टाइगर’ जयराम महतो?

29 साल के “टाइगर” जयराम महतो की पार्टी का चुनाव चिन्ह कैंची है। वह झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) के संस्थापक और प्रमुख हैं। JLKM का यह पहला चुनाव है और वह 71 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। “टाइगर” जयराम महतो “झारखंड का लड़का” के रूप में मशहूर हैं। महतो इस साल की शुरुआत में ही तेजी से उभरे और लोगों ने उन्हें युवा नेता के तौर पर काफी पसंद किया।

जयराम महतो कुड़मी ओबीसी समुदाय से आते हैं। कुड़मी ओबीसी समुदाय की आबादी राज्य में 15% है। झारखंड के कोयला क्षेत्र में इस समुदाय की बड़ी आबादी है। इस इलाके में रामगढ़, धनबाद, गिरिडीह, बोकारो, हजारीबाग जिले शामिल हैं।

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अजित पवार के बयान से होगा BJP को नुकसान ?(Source-FB)

इन वोटों के ध्रुवीकरण से बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को नुकसान हो सकता है क्योंकि इस गठबंधन को इस समुदाय के वोट मिलते रहे हैं। हालांकि, JLKM जितनी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसे देखते हुए इससे जेएमएम को भी नुकसान हो सकता है।

इन बड़े नेताओं की सीटों पर रहेगी नजर

इस चुनाव में इंडिया गठबंधन की ओर से बड़े चेहरों के रूप में हेमंत सोरेन (बरहेट), उनकी पत्नी कल्पना सोरेन (गांडेय) चुनाव मैदान में हैं। जबकि बीजेपी की ओर से चार पूर्व मुख्यमंत्री और उनके परिजन चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें मधु कोड़ा की पत्नी और पूर्व सांसद गीता कोड़ा (जगन्नाथपुर), अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा (पोटका), पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व झामुमो नेता चंपई सोरेन (सरायकेला), उनके बेटे बाबूलाल (घाटशिला) और ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास की बहू पूर्णिमा साहू (जमशेदपुर पूर्व), जामताड़ा से शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन और धनवार से पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी चुनाव लड़ रहे हैं। सिल्ली से आजसू प्रमुख सुदेश महतो सियासी भाग्य आजमा रहे हैं।