न्यायपालिका पर जातिवाद और जजों की नियुक्ति में समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का ध्यान न रखने का आरोप लगता रहा है। आमतौर पर अदालत के किसी फैसले को न्यायाधीशों की जाति, वर्ग, उनकी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से जोड़कर नहीं देखा जाता है। लेकिन साल 1980 में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मणों के वर्चस्व पर सवाल उठाते हुए कहा था कि न्यायाधीशों की पृष्ठभूमि उनके निर्णयों को प्रभावित करती है।
अय्यर की बात आगे बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति मैडन ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश पी.बी. गजेंद्रगडकर के समय से ही सर्वोच्च न्यायालय में बंबई के ब्राह्मण न्यायाधीशों को प्राथमिकता दी जा रही है।
ये सारी जानकारी बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील और भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ की किताब Supreme Whispers में मिलती है। अभिनव ने किताब में अपने दादा और भारत के 16वें चीफ जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ पर लगे जातिवाद के आरोप का भी जिक्र किया है।
ब्राह्मणों को प्राथमिकता देते थे वाईवी चंद्रचूड़?
अभिनव चंद्रचूड़ ने किताब में लिखा है कि न्यायमूर्ति मैडन मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ से विशेष रूप से खफा थे क्योंकि उन्होंने बॉम्बे से सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण न्यायाधीशों की नियुक्ति की मांग की थी। न्यायमूर्ति मैडन ने कहा था कि केवल सरकार ही नहीं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों ने भी जातिगत आधार पर न्यायिक नियुक्तियों के लिए सिफारिशें की हैं।
एक अन्य जज ने भी वाईवी चंद्रचूड़ पर संगीन आरोप लगाए थे। Supreme Whispers में अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि 1979 में एक न्यायाधीश ने ऐसा महसूस किया था कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति इसलिए रोक दी गई क्योंकि चंद्रचूड़ बॉम्बे के एक ब्राह्मण, वी.एस. देशपांडे को नियुक्त करना चाहते थे। तब देशपांडे दिल्ली हाईकोर्ट के जज और मुख्य न्यायाधीश थे।
साल 1988 में न्यायमूर्ति खालिद ने ब्राह्मणों के प्रभुत्व वाले सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना करते हुए कहा था कि मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और पाठक दोनों ही ब्राह्मण न्यायाधीशों को प्राथमिकता देते हैं।
नेहरू पर भी कश्मीरी ब्राह्मणों को फेवर करने का आरोप
जस्टिस हिदायतुल्ला ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर जजों की नियुक्ति में कश्मीरी ब्राह्मण को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया था। जस्टिस हिदायतुल्ला मानते थे कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए उनका नाम जस्टिस के. सुब्बाराव और जस्टिस के.एन. वांचू से पहले था। लेकिन नेहरू ने कश्मीरी ब्राह्मण वांचू को आगे करने के लिए उन्हें पीछे कर दिया।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में के.एन. वांचू की नियुक्ति 24 अप्रैल, 1967 को हुई थी। जबकि जस्टिस हिदायतुल्ला की नियुक्ति 25 फरवरी, 1968 को हुई थी।
न्यायपालिका पर जातिवाद के अन्य आरोप
अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब में लिखा है न्यायमूर्ति पी. जगनमोहन रेड्डी का ऐसा मानना था कि ब्राह्मण न्यायाधीश दूसरों की तुलना में अधिक रूढ़िवादी थे, क्योंकि संपूर्ण ब्राह्मण लोकाचार रूढ़िवादी था। न्यायमूर्ति डी.ए. देसाई, जो स्वयं एक ब्राह्मण थे, उन्हें यह हास्यास्पद लगा कि कर्नाटक आरक्षण मामले (के.सी. वसंत कुमार बनाम कर्नाटक राज्य) का फैसला जिन पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा किया गया था, उनमें से कोई भी पिछड़ी जाति से नहीं था। उन्होंने पांच ब्राह्मणों द्वारा अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों के बारे में निर्णय लेने का मजाक उड़ाया।
मुख्य न्यायाधीश पाठक ने Gadbois (अभिनव चंद्रचूड़ के प्रोफेसर) को बताया था कि इंदिरा गांधी हत्या मामले से जुड़े केहर सिंह बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक मामले का फैसला करने वाले सभी पांच न्यायाधीश ब्राह्मण थे।
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय में दक्षिण भारत के पहले गैर-ब्राह्मण न्यायाधीश पी. गोविंद मेनन की नियुक्ति सितंबर 1956 में हुई थी। यानी भारत की आज़ादी के नौ साल बाद।
मुख्य न्यायाधीश सिन्हा पर भी अपनी जाति (राजपूत) के न्यायाधीशों को नियुक्त करने का आरोप लगाया गया था, लेकिन वह प्रधानमंत्री नेहरू को यह समझाने में सफल रहे थे कि उन पर लगे आरोप फर्जी हैं।
जस्टिस ए.एन. सेन ने दिया था सुझाव
28 जनवरी, 1981 को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले जस्टिस ए.एन. सेन (Justice Amarendra Nath Sen) का न्यायिक नियुक्तियों में जातिगत मानदंड से मोहभंग हो गया था। उनका मानना था कि यदि अनुसूचित जाति का न्यायाधीश 40 प्रतिशत सक्षम है, और अगड़ी जाति का न्यायाधीश 60 प्रतिशत सक्षम है, तो अनुसूचित जाति के न्यायाधीश की नियुक्ति करना ठीक होगा। बता दें न्यायमूर्ति अमरेंद्र नाथ सेन का जन्म 1 अक्टूबर, 1920 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। सुप्रीम कोर्ट में उनका कार्यकाल 30 सितंबर, 1985 तक था।
दूसरी तरफ न्यायमूर्ति ए.पी. सेन जैसे जज थे जिनका मानना था कि कलकत्ता, बंबई और मद्रास में न्यायपालिका पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व तो था, लेकिन अदालतों के निर्णय लेने में जाति कोई कारक नहीं थी। न्यायमूर्ति एम.एच. कानिया ने कहा था कि बॉम्बे हाई कोर्ट में जाति कोई कारक नहीं थी, लेकिन आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर इसे ध्यान में रखा गया होगा।
पूर्व कानून मंत्री ने इस बारे में क्या कहा
पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार हाल में जनसत्ता.कॉम के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में मेहमान थे। कार्यक्रम का संचालन जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा कर रहे थे। इस कार्यक्रम में उनके सामने एक सवाल (सुनीत कुमार सिंह की ओर से) आया कि सुप्रीम कोर्ट में दलित जज क्यों नहीं दिखाई देते? कुमार ने कहा- मुझे नहीं लगता कि जजों को चुनने का आधार जाति होता है। उन्हें काबिलियत, वरिष्ठता और रिकॉर्ड के आधार पर ही चुना जाता है। देखिए, महिलाएं भी आ रही हैं। लेकिन, अगर यह सवाल उठे कि दो ही महिलाएं क्यों आ रही हैं, 15 क्यों नहीं हैं? तो ऐसे सवाल को कोई जवाब नहीं दिया जा सकता।