सुप्रीम कोर्ट में 21 अप्रैल को एक वकील ने अर्जी लगाते हुए बताया की ऊटी (तमिलनाडु) की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में महिला टॉयलेट सील कर दिया गया है, इससे महिलाओं को खासी परेशानी हो रही है। यह जानकर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ हैरान रह गए। उन्होंने फौरन हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को फोन लगाने को कह दिया।

एडवोकेट ने अपनी याचिका में बताया कि ऊटी के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का महिला टॉयलेट सील कर दिया गया है। हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद से टॉयलेट बंद चल रहा है। जिसके चलते महिलाओं को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा- रजिस्ट्रार को फोन मिलाइये…

वकील की बात सुनकर सीजेआई चंद्रचूड़ भी दंग नजर आए। उन्होंने कहा कि मुझे डिस्ट्रिक्ट जज बात करने दीजिए…हम इस मामले को 28 अप्रैल को या 24 अप्रैल को ही सुनेंगे। इसके बाद सीजेआई अपने कोर्ट स्टाफ की तरफ मुखातिब हुए और कहा कि रजिस्ट्रार जनरल को फोन मिलाइए…वह आपको कारण बताएंगे कि महिला टॉयलेट क्यों बंद किया गया है।

26% अदालतों में नहीं है अलग महिला टॉयलेट

सुप्रीम कोर्ट लगातार न्यायालय परिसर में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट का इंतजाम करने को कहता रहा है, लेकिन आलम यह है कि देशभर के एक चौथाई से ज्यादा कोर्ट कॉम्प्लेक्स में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट है ही नहीं। केंद्र सरकार ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में बताया था कि देशभर की 26% अदालतों में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट है ही नहीं। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने राज्यसभा को यह जानकारी दी थी।

दरअसल, राज्यसभा एमपी एस. निरंजन रेड्डी ने सरकार से पूछा था कि क्या उन्हें जानकारी है कि जिला स्तर की ज्यादातर कोर्ट में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट हैं ही नहीं और इसकी वजह से कितनी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है?

रिजिजू ने इस सवाल के जवाब में बताया था कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रैंकिंग फ्रेमवर्क ने ऐसा कोई डाटा तैयार नहीं किया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने कोर्ट में सुविधाओं को लेकर एक डाटा तैयार किया है। जिसके मुताबिक 74% कोर्ट कांप्लेक्स में लेडीज टॉयलेट हैं, जबकि 26% में ऐसा नहीं है। सरकार ने दलील दी कि न्यायपालिका से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है।

9000 करोड़ का भारी-भरकम बजट

इसी दौरान रिजिजू ने यह भी बताया था कि न्यायालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट करने के लिए केंद्र सरकार 1993-94 से एक योजना संचालित कर रही है और इसके जरिए राज्य सरकारों की मदद की जा रही है। इस योजना की अवधि 2021-22 से बढ़ाकर 2025-26 तक कर दिया गया है और कुल 9000 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान है। जिसमें 5307 करोड़ रुपए केंद्र सरकार दे रही है।

क्या है देशभर के ड्रिस्ट्रिक्ट कोर्ट की हालत?

कुछ वक्त पहले ही ज्यूडिशल रिफॉर्म पर काम करने वाले थिंकटैंक ‘विधि’ (Vidhi Centre for Legal Policy) ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में टॉयलेट को लेकर एक सर्वे किया था, जिसमें चौंकाने वाली बातें सामने आई थीं। विधि की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर के 665 ड्रिस्ट्रिक्ट कोर्ट में से 100 से ज्यादा ऐसे थे, जिनमें महिला टॉयलेट था ही नहीं और जिनमें था उनमें से भी महज 40% ही संचालित थे।

ये राज्य हैं सबसे फिसड्डी

विधि की रिपोर्ट में जिन राज्यों में सबसे खराब हालत पाई गई थी- उसमें गोवा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मिजोरम शामिल थे। इन राज्यों के कोर्ट कांप्लेक्स में ज्यादातर महिला टॉयलेट संचालित ही नहीं थे।