साल 1957 में जब दूसरी लोकसभा के चुनाव हुए और पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार बनी तो अशोक कुमार सेन (Ashoke Kumar Sen) कानून मंत्री बने। कलकत्ता हाईकोर्ट से वकालत की शुरुआत करने वाले अशोक कुमार सेन देखते ही देखते देश के दिग्गज वकीलों में शुमार हो गए थे और पंडित नेहरू के करीब आ गए थे। कानून मंत्री बनने के करीब 3 साल बाद मार्च 1960 में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीपी सिन्हा (Former CJI BP Sinha) ने कानून मंत्री अशोक कुमार सेन को सुप्रीम कोर्ट का जज बनने का ऑफर दे दिया। सेन ने सीजेआई से कहा कि उन्हें सोचने की मोहलत दें।

नेहरू के पास लेकर गए ऑफर

दिग्गज एडवोकेट और मौजूदा CJI डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब ‘Supreme Whispers’ में लिखते हैं कि अशोक सेन ने चीफ जस्टिस के ऑफर के बारे में पंडित नेहरू को बताया और उनकी राय मांगी। पंडित नेहरू ने तत्कालीन गृह मंत्री जीबी पंत से इस पर सलाह मांगी, हालांकि बात बन नहीं बन पाई। आखिरकार अशोक सेन ने ऑफर ठुकरा दिया।

तो 20 साल तक होते जज…

सीजेआई सिन्हा ने जिस वक्त अशोक कुमार सेन को ऑफर दिया था, उस समय उनकी उम्र महज 45 साल थी। यदि वे सुप्रीम कोर्ट के जज का ऑफर स्वीकार कर लेते तो करीब 20 साल तक इस पद पर रहते। जिसमें से 10 साल तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होते।

नानी पालखीवाला ने भी ठुकरा दिया था ऑफर

साठ के दशक में ही दिग्गज एडवोकेट नानी पालखीवाला को भी सुप्रीम कोर्ट का जज बनने का ऑफर मिला था। 1963-64 के बीच नानी पालखीवाला को चीफ जस्टिस ने उच्चतम न्यायालय में जज का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया था। यदि पालखीवाला सुप्रीम कोर्ट का जज बनते तो 1971 से 1985 के बीच चीफ जस्टिस होते, जो आज तक किसी चीफ जस्टिस का सबसे लंबा कार्यकाल होता।

क्या थी जजशिप ठुकराने की वजह?

अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि 60-70 के दशक में तमाम वकीलों से लेकर जजों ने हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति का ऑफर ठुकरा दिया था। इसके पीछे कई वजह थी। सबसे बड़ी वजह ट्रांसफर पॉलिसी और सैलरी थी। उन दिनों वकील जितना कमा लेते थे, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की तनख्वाह उसके आगे कुछ भी नहीं थी। उदाहरण के तौर पर 1965-66 के आसपास हाई कोर्ट के जज की सैलरी 3500 हुआ करती थी। जबकि वकील इससे कहीं ज्यादा कमा लेते थे।

इसके अलावा, उन दिनों सुप्रीम कोर्ट के जज के मुकाबले हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का पद कहीं ज्यादा प्रतिष्ठित माना जाता था। कई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट आने से इसी वजह से इंकार कर दिया था।