लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के लिए बेरोजगारी और भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहा। चुनाव के बाद भी एक के बाद एक आ रही रिपोर्ट बेरोजगारी और आर्थिक विकास को लेकर नाउम्मीद करने वाली तस्वीर दिखा रही है। कांग्रेस ने इसे आधार बना कर मोदी सरकार पर हमला तेज कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट एजेंसी मूडीज ने कहा कि जल संकट के चलते भारत की आर्थिक विकास दर उम्मीद से कम रह सकती है। इसके कुछ ही दिन बाद सिटी ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को जितनी संख्या में रोजगार पैदा करने की जरूरत है, उतनी नौकरियां पैदा होने की स्थिति दिख नहीं रही है। इससे पहले सरकार की ही एक रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया कि बीते सात साल में करीब 54 लाख लोगों की रोजी-रोटी छिनी है।
क्या भारत में आने वाले दशक में युवाओं को नौकरियों के लिए संघर्ष करना होगा? सिटी ग्रुप की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था अगर 7% की दर से भी आगे बढ़ती रही तो भी देश में अगले एक दशक में जितनी नौकरियों की जरूरत है, उतनी नौकरियां नहीं पैदा होंगी।

अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती और बाकर जैदी लिखते हैं कि 7% की विकास दर के आधार पर भी भारत प्रति वर्ष केवल 80-90 लाख नौकरियां पैदा कर सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अगले दशक तक 1.2 करोड़ नौकरियां हर साल पैदा करनी होंगी। सिटी ग्रुप ने सुझाव दिया है कि इस तरह के हालात को संभालने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा 10 लाख सरकारी नौकरियों को भरे जाने की जरूरत है।
कांग्रेस ने सिटी ग्रुप की इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा है कि नोटबंदी, जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी और चीन के द्वारा लगातार बढ़ रहे आयात की वजह से एमएसएमई उद्योग बंद हो गए हैं और यही भारत में बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार देते हैं।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सिटी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां बड़े औद्योगिक घरानों का पक्ष ले रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही पिछले 45 साल में सबसे बड़ी बेरोजगारी दर देखी गई है जिसमें स्नातक युवाओं की बेरोजगारी दर 42% है।
जयराम रमेश ने कहा कि 7% की विकास दर भी युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं पैदा कर सकती जबकि मोदी सरकार के शासन में विकास दर 5.8 प्रतिशत रही है।
आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि लगभग 46% लोग अभी भी खेती कर रहे हैं जबकि इस सेक्टर का जीडीपी में योगदान 20% से भी कम है।
कांग्रेस 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद से ही बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनती रही है। भारत सरकार ने बेरोजगारी से निपटने के लिए मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे कार्यक्रम चलाए हैं।

इस साल अप्रैल में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है। 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2 प्रतिशत थी, जो 2022 में बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गई।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कुछ दिन पहले ‘द हिंदू’ में लिखे गए एक लेख में कहा था कि भारत में बेरोजगार सभी लोगों को रोजगार देने के लिए अगले पांच सालों में ढाई करोड़ से अधिक रोजगार दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा था कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार पर्याप्त नौकरियां देने में नाकामयाब रही है।
हाल ही में आई अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 20 हजार से ज्यादा आय वाले कामगार 15 फीसदी से भी कम हैं।
| मासिक सैलरी | कर्मचारियों का प्रतिशत (%) |
| 2000 रुपये तक | 3.8 |
| 2001-5000 रुपये | 23.1 |
| 5000-10000 रुपये | 38.9 |
| 10000-20000 रुपये | 19.2 |
| 20000 से ज्यादा | 14.9 |
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस ने बेरोजगारी के मुद्दे को जोर-शोर से उछाला था जबकि भाजपा का कहना था कि 10 साल के उसके शासन में 25 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर निकल आए हैं।
