भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले NDA ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। क्या यह कारनामा 2024 में भी दोहराया जा सकता है? राज्य की 25 विधानसभा सीटों में से 12 पर पहले चरण का मतदान हो चुका है और बाकी 13 सीटों पर 26 अप्रैल को मतदान होगा। आइए जानते हैं क्या है राजस्थान का चुनावी परिदृश्य और क्या बीजेपी के लिए आसान है यहां की राह?
2019 में बीजेपी की जीत का अंतर कितना बड़ा था?
भाजपा ने 2019 में राजस्थान की 25 में से 24 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक सीट अपनी सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलटीपी) को दी। एनडीए ने सभी सीटों पर जीत हासिल की। 2019 में इन सीटों पर बीजेपी की जीत का अंतर कितना बड़ा था? यह सवाल मायने रखता है।
2019 में राजस्थान में एनडीए की जीत के अंतर का औसत वोट शेयर का 25.2% था, जो 2014 में इसके औसत जीत के अंतर से दो प्रतिशत अधिक है।
जीत के अंतर की लोकसभा क्षेत्रवार तुलना से यह भी पता चलता है कि 2014 और 2019 के बीच बीजेपी के लिए लोकसभा क्षेत्रों में यह संख्या 25 में से 15 में बढ़ी है।
राजस्थान की किसी भी लोकसभा सीट पर 2019 के चुनावों में एनडीए की जीत का अंतर 7% से कम नहीं था। इसका मतलब यह है कि राजस्थान में भाजपा की सीटों में मामूली सेंध लगाने के लिए भी दूसरी पार्टियों को भारी बढ़त की जरूरत होगी। यह असंभव नहीं, लेकिन आसान भी नहीं है।

2014 के मुकाबले कांग्रेस के वोट शेयर में सुधार के बावजूद 2019 में पार्टी का सूपड़ा साफ
2019 के राजस्थान चुनाव को लेकर एक दिलचस्प आंकड़ा है। दरअसल, राज्य में 2014 और 2019 के चुनावों के बीच भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि इसलिए नहीं हुई क्योंकि मतदाताओं ने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का समर्थन किया। 2014 और 2019 के चुनावों के बीच कांग्रेस और भाजपा दोनों ने वास्तव में अपने वोट शेयर में लगभग चार प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की। हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर में 26 प्रतिशत का भारी अंतर था।
राजस्थान लोकसभा चुनाव में पार्टीवार वोट शेयर

राजस्थान लोकसभा चुनाव में मीडियन ENOP
2019 के चुनावों में भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि अन्य सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के पूरी तरह सूपड़ा साफ होने का परिणाम था। यह राज्य में प्रतिभागियों की औसत प्रभावी संख्या (ENOP) के रुझान से भी पता चलता है, जो 1977 के बाद से 2019 में सबसे कम था जब यह घटकर सिर्फ 1.92 रह गया था।
गौरतलब है कि ईएनओपी एक निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक उम्मीदवार के वोट शेयरों के वर्गों के योग का व्युत्क्रम है और उसकी अधिक संख्या बहुकोणीय मुकाबले को दर्शाती है।
| चुनावी वर्ष | ENOP |
| 1962 | 2.82 |
| 1967 | 2.50 |
| 1971 | 2.13 |
| 1977 | 1.92 |
| 1980 | 2.94 |
| 1984-85 | 2.56 |
| 1989 | 2.13 |
| 1991-92 | 2.50 |
| 1996 | 2.50 |
| 1998 | 2.22 |
| 1999 | 2.13 |
| 2004 | 2.33 |
| 2009 | 2.38 |
| 2014 | 2.22 |
| 2019 | 2.04 |
क्या मतदान प्रतिशत में गिरावट से भाजपा को नुकसान होगा?
पहले चरण के मतदान के मतदान प्रतिशत के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में जिन 12 सीटों पर मतदान हुआ उनमें से सभी में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखी गई है। पहले चरण में मतदान में औसत गिरावट 2019 की तुलना में 5.71 प्रतिशत है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या मतदान प्रतिशत में गिरावट से भाजपा को नुकसान हो सकता है? इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं हो सकता, क्योंकि पहले भी ऐसा कई बार देखा गया है कि मतदान कम होने पर बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा है और इसका उल्टा भी हुआ है।
राजस्थान लोकसभा चुनाव में पार्टीवार सीट शेयर

क्या तीन सीटों पर गठबंधन से कांग्रेस को मदद मिल सकती है?
कांग्रेस ने इन चुनावों में तीन सीटों पर गठबंधन किया है- सीकर में सीपीआई (एम) के साथ, बांसवाड़ा में भारत आदिवासी पार्टी के साथ, और नागौर में आरएलटीपी के साथ। सवाल यह उठता है कि क्या इससे कांग्रेस को वोटों के एकीकरण से ये सीटें जीतने में मदद मिलेगी? सीकर में, कांग्रेस और सीपीआई (एम) के वोटों के साधारण जोड़ से उसे मदद मिलने की संभावना नहीं है क्योंकि 2019 में भाजपा ने 58% वोट शेयर हासिल किया था।
बांसवाड़ा में, बीजेपी ने 49% वोट शेयर हासिल किया, जिसका मतलब है कि कांग्रेस के पास है एक मौका अगर सभी भाजपा विरोधी वोट उसके साथ एकजुट हो जाएं। हालांकि, बांसवाड़ा में कांग्रेस उम्मीदवार ने अपना नामांकन वापस लेने से इनकार कर दिया (उनके नाम की घोषणा के बाद गठबंधन टूट गया) ऐसे में संभावना है कि BAP उम्मीदवार के लिए खेल बिगड़ सकता है। कांग्रेस के लिए सबसे बेहतर गठबंधन नागौर में प्रतीत होता है, जहां 2019 में जीतने वाला भाजपा सहयोगी कांग्रेस के साथ चला गया है।
तीन चार-सीटों का हो सकता है नुकसान
बीकानेर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष उस्मान गनी ने न्यूज-24 के रिपोर्ट्स से बातचीत में कहा था कि भाजपा इस बार चूरू, बाड़मेर समेत तीन-चार सीटें हार रही है। बारमेर के लिए उन्होंने रविंद्र भाटी फैक्टर को जिम्मेदार माना था। उन्होंने कहा था कि वो नया चेहरा है, लोग उसके साथ जा रहे हैं।
चूरू के लिए उस्मान ने कहा था कि जाट हमसे नाराज हैं। हमने राहुल कास्वा का टिकट काट दिया है, इसलिए जाट, मुस्लिम और एससी एकजुट हो गए हैं। इससे हमें नुकसान होगा। हालांकि इन सब बातों को कहने के बाद भाजपा ने उस्मान गनी को पार्टी से निकाल दिया है।
