लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को बहुमत नहीं म‍िलना क्‍या उसकी ह‍िंंदुत्‍व या ह‍िंंदू राष्‍ट्रवाद की राजनीत‍ि के अंत की शुरुआत है? यह सवाल कई व‍िश्‍लेषकों के बीच चर्चा का व‍िषय है। इस बीच यह जानना द‍िलचस्‍प होगा क‍ि इसकी शुरुआत कब, कैसे और कहां से हुई?

दक्ष‍िए एश‍िया (खास कर भारत और पाक‍िस्‍तान) को गहराई से समझने वाले पॉल‍िट‍िकल साइंट‍िस्‍ट क्र‍िस्‍टोफे जैफरलॉट ने अपनी क‍िताब ‘गुजरात अंडर मोदी-द ब्‍लूप्र‍िंंट फॉर टुडेज इंड‍िया’ के एक अंश में व‍िभ‍िन्‍न संदर्भों के हवाले से इस पर रोशनी डाली है।

क्र‍िस्‍टोफे ल‍िखते हैं ह‍िंंदू राष्‍ट्रवाद ने 1920 के दशक में आकार ल‍िया। वैसे गुजराती अस्‍म‍िता के दौर में इसकी जड़ें 19वीं शताब्‍दी में भी देख सकते हैं। गुजराती ब्राह्मण स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती द्वारा स्‍थाप‍ित‍ क‍िए गए आर्य समाज की सरपरस्‍ती में इसका व‍िकास हुआ।

Hindu Mahasabha: ह‍िंंदू महासभा की स्थापना

1915 में ह‍िंंदू महासभा की स्थापना हुई। इस संगठन ने कांग्रेस पार्टी के भीतर इसकी दक्ष‍िणपंथी ईकाई के रूप में आकर ल‍िया। लेक‍िन, 1920 तक यह सुस्‍त ही पड़ा रहा। ख‍िलाफत आंदोलन और ह‍िंंदू व‍िरोधी हमलों के बीच ह‍िंंदू राष्‍ट्रवाद का उभार हुआ और संगठन ने रफ्तार पकड़ी। इस संदर्भ में वीडी सावरकार ने ह‍िंंदू राष्‍ट्रवाद की व्‍याख्‍या की। उन्‍होंने 1923 में ‘ह‍िंंदुत्‍व: हू इज अ ह‍िंंदू?’ नाम से क‍िताब ल‍िखी।

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मोदी-शाह को बदलनी होगी अपनी रणनीति (Source- Indian Express)

Vinayak Damodar Savarkar Hindu nationalism: सावरकर का हिंदू राष्ट्रवाद

ह‍िंदू महासभा के अध्‍यक्ष बने सावरकर ने हिंदुत्‍व और ह‍िंंदू की जो अवधारणा रखी वह गांधी, नेहरू की अवधारणा से अलग थी। सावरकर ने ह‍िंंदू राष्‍ट्रवाद की अवधारणा तो दी, लेकि‍न यह नहीं बताया क‍ि मुस्‍लि‍मों से खतरों पर ह‍िंंदू क‍िस तरह प्र‍त‍िक्र‍िया करें या वे खुद को किस तरह से संगठि‍त व पर‍िष्‍कृत करें। यह काम उनके ही एक अनुयायी के.बी. हेडगेवार ने अपने हाथों में ल‍िया। वह नागपुर के थे। उन्‍होंने वहीं राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्‍थापना की। उनका यह संगठन तेजी से फैला और जल्‍द ही राष्‍ट्रवादी ह‍िंंदुओं का सबसे बड़ा संगठन बन गया।

आरएसएस ने न केवल ह‍िंंदुत्‍व के स‍िद्धांतों का प्रचार-प्रसार शुरू क‍िया, बल्‍क‍ि ह‍िंंदुओं को शारीर‍िक व सामर‍िक रूप से मजबूत बनाने पर भी काम शुरू क‍िया। इसके ल‍िए उन्‍होंने जमीनी स्‍तर पर काम करने का फैसला क‍िया और शाखा बनाकर गांव-गांव से मुह‍िम की शुरुआत की। 1947 तक आरएसएस के करीब छह लाख स्‍वयंसेवक हो गए थे।

ह‍िंंदू राष्‍ट्रवाद की मुह‍िम चलाने वाला आरएसएस सबसे बड़ा संगठन हो गया था, लेक‍िन राजनीत‍ि से बाहर होने के चलते सार्वजन‍िक जीवन में इसकी कोई पकड़ नहीं थी।

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बीजेपी नेता सुवेन्दु अधिकारी (Source- Express Photo by Partha Paul)

Nehru Banned RSS: गांधी की हत्या के बाद लगा संघ पर प्रतिबंध

1940 में हेडगेवार के बाद एम.एस. गोलवलकर आरएसएस के प्रमुख बने। उन्‍होंने यह न‍ियम बना द‍िया क‍ि संगठन राजनीत‍ि से दूर रहेगा। लेक‍िन, आजादी के बाद आरएसएस नेताओं को लगा क‍ि राजनीत‍ि से अलग रहना ठीक नहीं होगा।

1948 में गांधी की हत्‍या के बाद जब नेहरू ने आरएसएस पर बैन लगाया तो आरएसएस के राजनीत‍ि से अलग नहीं रहने के समर्थकों को लगा क‍ि राजनीत‍ि में उतरने का यह सही वक्‍त है। गोलवलकर इसके पक्ष में नहीं थे। फ‍िर भी, उन्‍होंने इस बारे में श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी से बातचीत करने पर रजामंदी दी। मुखर्जी उस समय ह‍िंंदू महासभा के अध्‍यक्ष थे। उनसे बातचीत के बाद 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई।

संघ समाज में अपनी पहुंच का व‍िस्‍तार केवल शाखाओं के जर‍िए करने की नीत‍ि पर नहीं चलना चाहता था। वह ऐसी संस्‍थाएं बनाना चाहता था ज‍िसके जर‍िए समाज के व‍िभ‍िन्‍न वर्गों के ल‍िए और व‍िभ‍िन्‍न क्षेत्रों में काम क‍िया जा सके। इस मकसद से द‍िल्‍ली में आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने 1948 में अख‍िल भारतीय व‍िद्यार्थी पर‍िषद (एबीवीपी) की स्‍थापना की। इसका मुख्‍य मकसद व‍िश्‍वव‍िद्यालयों में कम्‍युन‍िस्‍टों के बढ़ते प्रभाव पर काबू करना था।

1964 में आरएसएस ने ह‍िंंदू साधु-संतों के साथ म‍िल कर व‍िश्‍व ह‍िंंदू पर‍िषद (वीएचपी) की स्‍थापना की।

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पीएम नरेंद्र मोदी (Source- PTI)

Ram Janmabhoomi Movement Ayodhya: राम जन्‍मभूम‍ि आंदोलन की शुरुआत

1980 में संघ पर‍िवार की ओर से अयोध्‍या में राम जन्‍मभूम‍ि आंदोलन की शुरुआत की गई। 1984 में व‍िवाद‍ित ढांचे में राम-सीता की मूर्त‍ि रख दी गई। वीएचपी ने वह स्‍थान ह‍िंंदुओं को सौंपने की मांग रखी। 1989 में बीजेपी ने आंदोलन में सक्र‍िय भूम‍िका न‍िभाई और लोकसभा में अपने सांसदों की संख्‍या दो से 88 तक पहुंचाने में कामयाब रही। यह बीजेपी की पहली बड़ी चुनावी सफलता थी।

1990 में लाल कृष्‍ण आडवाणी की रथयात्रा के बाद 1991 में हुए चुनाव में बीजेपी की लोकसभा में सीटों की संख्‍या 120 हो गई।

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बाएं से- RSS सरसंघचालक मोहन भागवत और पीएम नरेंद्र मोदी (PC- PTI)

Babri Mosque Demolition: विवादित ढांचा गिरा

6 द‍िसंबर, 1992 को अयोध्‍या में व‍िवाद‍ित ढांचा ग‍िरा द‍िया गया। 1990 के दशक के मध्‍य तक बीजेपी का रुख थोड़ा नरम पड़ने लगा था। इस वजह से बीजेपी को गठबंधन करने में मदद म‍िली और उसने 15 पार्ट‍ियों के राष्‍ट्रीय जनतांत्र‍िक गठबंधन (एनडीए) का नेतृत्‍व करते हुए 1998 व 1999 में अटल ब‍िहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में सरकार भी बनाई।

2004 में जब भाजपा लोकसभा चुनाव हारी तब तक कई राज्‍यों में उसकी सरकार बन चुकी थी। इनमें गुजरात भी एक है, जहां 2001 में नरेंद्र मोदी मुख्‍यमंत्री बने।

2014 में मोदी के नेतृत्‍व में एक बार फ‍िर भाजपा अपने दम पर द‍िल्‍ली की सरकार में लौटी और यह स‍िलस‍िला 2024 तक जारी रहा। हालांक‍ि, 2024 में भाजपा को अपने दम पर बहुमत नहीं म‍िला।