बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इन आंकड़ों में अत्यंत पिछड़ा वर्ग या EBC (Extremely Backward Classes) सबसे बड़ी आबादी के रूप में सामने आया है। बिहार की कुल 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 की आबादी में से 36.01% EBC हैं। अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कुल 130 जातियां और उपजातियां हैं, जिसमें नाई, मछुआरे, लोहार, तेली और नोनिया आदि शामिल हैं।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने सबसे पहले अपने सामाजिक अंकगणित में ईबीसी के महत्व को समझा था। ईबीसी अपने आप में यादवों (14.27% ) और मुस्लिमों (17.7%) से कहीं ज्यादा बड़ा सामाजिक समूह है।
लालू यादव ने अपने पहले कार्यकाल में बहुत सावधानी से अतिपिछड़ों को लुभाया और उन्हें पचफोरना (पांच मसालों का मिश्रण) कहा। तर्क यह था कि जैसे पचफोरना किसी भी व्यंजन का स्वाद बढ़ा देता है, वैसे ही ईबीसी का मिश्रण किसी भी गठबंधन को मजबूत बना देता है।
जब नीतीश कुमार के पास किसी बड़े सामाजिक समूह का समर्थन नहीं था, तो उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ईबीसी को आरक्षण, शिक्षा और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया।
भाजपा भी इस वर्ग को लुभाने में लगी है, इसी वजह से 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री तेली समुदाय से आते हैं।) के पीछे खड़े हो गई और अब भी उनके नेतृत्व में ही आगे बढ़ रही है।
वर्ग | संख्या | संख्या (प्रतिशत में) |
अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) | 4,70,80,514 | 36.01% |
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) | 3,54,63,936 | 27.12% |
अनुसूचित जाति (SC) | 2,56,89,820 | 19.65% |
अनुसूचित जनजाति (ST) | 21,99,361 | 1.68% |
सवर्ण जातियां | 2,02,91,679 | 15.52% |
पिछले चुनाव में ईबीसी
पिछले विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण पर नजर डालने से पता चलता है कि सभी पार्टियों की प्राथमिकता सूची में ईबीसी रहे हैं। राजद और जद (यू) की सूची में लगभग एक चौथाई उम्मीदवार, क्रमशः 24% और 26%, ईबीसी के थे।
ये स्थिति तब थी, जब जनगणना के अभाव में राज्य में उनकी संख्या लगभग 25% मानी जा रही थी। ईबीसी को फ्लोटिंग वोटर माना जाता है और इन्हें हमेशा सभी पार्टियां लुभाती रही हैं।
किसने किस पर जताया था भरोसा?
बिहार के जातिगत जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में ओबीसी 27.12% हैं। यानी ओबीसी और ईबीसी मिलाकर 63.13 प्रतिशत हैं। 2020 में राजद ने महागठबंधन के हिस्से के रूप में जिन 144 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, उनमें से 40% (58) यादव और 12% (17) मुस्लिम थे। ये दोनों समूह राजद के कोर वोटर माने जाते हैं।
सोमवार को जारी किए गए जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार यादवों की संख्या कुल आबादी 14.27% है। 2020 का विधानसभा चुनाव भाजपा और जेडी (यू) ने साथ मिलकर लड़ा था। यानी तब जेडी (यू) एनडीए का हिस्सा थी। एनडीए ने 23 यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। इसमें भाजपा ने 16 और जेडी (यू) के 17 यादवों को टिकट दिया था।
2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जद (यू) ने अपने-अपने कोर वोट बैंक पर दाव लगाया था। भाजपा का कोर वोट बैंक सवर्ण, बनिया और ओबीसी है। वहीं जेडी (यू) ने अपने लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) पर भरोसा जाता था। (जाति जनगणना में कोइरी (कुशवाहा) की आबादी 4.21% और कुर्मी की आबादी 2.88% बताई गई है।)
गठबंधन में भाजपा के हिस्से कुल 110 सीटें थीं। इसमें से 50 (45%) सीटों पर भाजपा ने सवर्ण उम्मीदवारों और 17 सीटों पर ओबीसी वैश्य उम्मीदवार को उतारा था। वहीं जेडीयू ने अपने हिस्से की 115 सीटों में 18 पर सवर्णों को टिकट दिया था।
राजद ने भी अलग-अलग पार्टियों से गठबंधन किया था। राजद को 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारना था। उसने मात्र 8.33% सर्वण यानी 12 अपर कास्ट उम्मीदवारों को टिकट दिया।
जद (यू) ने 12 कुर्मी और 15 कुशवाह उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। भाजपा ने ओबीसी समूहों से 4-4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा।
ईबीसी के मामले में अधिकांश पार्टियों ने सहनी और धानुक जातियों को प्राथमिकता दी। जेडीयू के 26 ईबीसी उम्मीदवारों में से 7 धानुक थे। भाजपा ने 5 ईबीसी को मैदान में उतारा और गठबंधन सहयोगी मुकेश सहनी की मल्लाह समुदाय से आने वाली विकासशील इंसान पार्टी के लिए 11 सीटें छोड़ीं।
राजद ने 24 ईबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 7 नोनिया थे। राज्य भर में ईबीसी आबादी बिखरी हुई और किसी एक सर्वव्यापी नेता की कमी के कारण ईबीसी वोटों को फ्लोटिंग वोट के रूप में देखा जाता है। राज्य में वोट जाति के आधार पर बंटे होने के कारण, ईबीसी मतदाता अक्सर निर्णायक होते हैं।