Bihar Elections First Phase Voting: बिहार चुनाव में पहले चरण में बंपर वोटिंग हुई है। 121 सीटों पर 64.69 फीसदी मतदान देखने को मिला है। इस बंपर वोटिंग के बाद से ही सियासी दलों के बीच हलचल तेज है। मीडिया के सामने जरूर दावे हो रहे हैं कि बढ़ी हुई वोटिंग उनके पक्ष में गई है, लेकिन असल में कोई नहीं जानता कि जनता का मूड क्या है। ज्यादा वोटिंग परिवर्तन का संकेत है, सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष प्रो इनकंबेंसी का वोट है या फिर ये जन सुराज की क्रांति का उदय है? पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न से संकेत समझने की कोशिश करते हैं।
पहले चरण की 121 सीटों पर कितनी वोटिंग हुई?
बिहार चुनाव की शुरुआत काफी जोरदार हुई है, तमाम चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि इस बार सबसे ज्यादा मतदान हुआ है। नीचे दी गई टेबल से आसानी से समझा जा सकता है कि किस सीट पर इस बार कितनी वोटिंग हुई है। टेबल को इस तरह से बनाया गया है कि सर्वाधिक वोट प्रतिशत वाली सीटें टॉप पर हैं और सबसे कम मतदान वाली सीटें नीचे।
| क्रमांक | विधानसभा क्षेत्र | मतदान प्रतिशत |
| 1 | मीना पुर (Minapur – 90) | 77.62% |
| 2 | बछाहा (Bochahan – 91) | 76.35% |
| 3 | कुढ़नी (Kurhani – 93) | 75.63% |
| 4 | सकरा (Sakra – 92) | 75.35% |
| 5 | उजियारपुर (Ujiarpur – 134) | 73.99% |
| 6 | कल्याणपुर (Kalyanpur – 131) | 73.62% |
| 7 | बरूराज (Baruraj – 96) | 73.50% |
| 8 | सरायरंजन (Sarairanjan – 136) | 73.33% |
| 9 | पारू (Paroo – 97) | 72.62% |
| 10 | समस्तीपुर (Samastipur – 133) | 72.12% |
| 11 | वारिसनगर (Warisnagar – 132) | 72.00% |
| 12 | साहेबपुर कमाल (Sahebpur Kamal – 145) | 71.39% |
| 13 | कांटी (Kanti – 95) | 71.92% |
| 14 | मोहिउद्दीननगर (Mohiuddinagar – 137) | 70.40% |
| 15 | साहेबगंज (Sahebganj – 98) | 70.26% |
| 16 | चेड़िया बरियारपुर (Cheria Bariarpur – 141) | 70.18% |
| 17 | तेघड़ा (Teghra – 143) | 70.14% |
| 18 | महिषी (Mahishi – 77) | 70.12% |
| 19 | बिभूतिपुर (Bibhutipur – 138) | 70.08% |
| 20 | बिसफी (Bishfi – 108) | 70.03% |
| 21 | सहरसा (Saharsa – 75) | 69.73% |
| 22 | लालगंज (Lalganj – 124) | 69.62% |
| 23 | खगड़िया (Khagaria – 149) | 69.60% |
| 24 | मथिहानी (Matihani – 144) | 69.47% |
| 25 | सिंघेश्वर (Singheshwar – 72) | 69.46% |
| 26 | पातेपुर (Patepur – 130) | 69.27% |
| 27 | मधेपुरा (Madhepura – 73) | 69.30% |
| 28 | बिक्रम (Bikram – 191) | 69.09% |
| 29 | मोरवा (Morwa – 135) | 68.95% |
| 30 | फतुहा (Fatuha – 185) | 68.53% |
| 31 | राघोपुर (Raghopur – 128) | 68.54% |
| 32 | महुआ (Mahua – 126) | 68.54% |
| 33 | सिमरी बख्तियारपुर (Simri Bakhtiarpur – 76) | 68.47% |
| 34 | मसौढ़ी (MasaURhi – 189) | 68.42% |
| 35 | सोनबरसा (Sonbarsha – 74) | 68.30% |
| 36 | सोनपुर (Sonepur – 122) | 68.20% |
| 37 | बेलदौर (Beldaur – 150) | 67.09% |
| 38 | कुचायकोट (Kuchaikote – 102) | 67.08% |
| 39 | रोसड़ा (Rosera – 139) | 67.17% |
| 40 | परबत्ता (Parbatta – 151) | 67.84% |
| 41 | मनेर (Maner – 187) | 67.76% |
| 42 | बिहारिगंज (Bihariganj – 71) | 67.46% |
| 43 | वैशाली (Vaishali – 125) | 67.43% |
| 44 | सर्वगढ़ा (Survagarha – 167) | 66.80% |
| 45 | हथुआ (Hathua – 104) | 66.86% |
| 46 | परसा (Parsa – 121) | 66.44% |
| 47 | बेगूसराय (Begusarai – 146) | 66.44% |
| 48 | हाजीपुर (Hajipur – 123) | 66.84% |
| 49 | गोपालगंज (Gopalganj – 101) | 66.10% |
| 50 | महनार (Mahnar – 129) | 66.12% |
| 51 | मढ़ौरा (Marhaura – 117) | 65.51% |
| 52 | हायाघाट (Hayaghat – 84) | 65.40% |
| 53 | बक्सर (Buxar – 200) | 65.40% |
| 54 | फुलवारी (Phulwari – 188) | 65.01% |
| 55 | गरखा (Garkha – 119) | 64.97% |
| 56 | तरैया (Taraiya – 116) | 64.88% |
| 57 | राजापाकर (Raja Pakar – 127) | 64.59% |
| 58 | केओटी (Keoti – 86) | 64.40% |
| 59 | पालीगंज (Paliganj – 190) | 64.32% |
| 60 | गोरियाकोठी (Goriakothi – 111) | 64.06% |
| 61 | लखीसराय (Lakhisarai – 168) | 63.46% |
| 62 | जाले (Jale – 87) | 63.42% |
| 63 | गौरा बौराम (Gaura Bauram – 79) | 63.06% |
| 64 | तरारी (Tarari – 196) | 63.61% |
| 65 | बरहरिया (Barharia – 110) | 63.56% |
| 66 | राजगीर (Rajgir – 173) | 62.03% |
| 67 | राजपुर (Rajpur – 202) | 62.36% |
| 68 | बेनीपुर (Benipur – 80) | 62.28% |
| 69 | भोरे (Bhorey – 103) | 62.54% |
| 70 | दरभंगा ग्रामीण (Darbhanga Rural – 82) | 62.86% |
| 71 | दरभंगा (Darbhanga – 83) | 59.03% |
| 72 | दुर्माओन (Dumraon – 201) | 60.30% |
| 73 | मांझी (Manjhi – 114) | 60.33% |
| 74 | नालंदा (Nalanda – 176) | 60.84% |
| 75 | जमालपुर (Jamalpur – 166) | 60.89% |
| 76 | कुशेश्वर स्थान (Kusheshwar Asthan – 78) | 61.82% |
| 77 | हिलसा (Hilsa – 175) | 61.82% |
| 78 | महाराजगंज (Maharajganj – 112) | 61.99% |
| 79 | शेखपुरा (Sheikhpura – 169) | 61.98% |
| 80 | सन्देश (Sandesh – 192) | 61.76% |
| 81 | इसलामपुर (Islampur – 174) | 61.51% |
| 82 | रघुनाथपुर (Raghunathpur – 108) | 61.45% |
| 83 | सीवान (Siwan – 105) | 59.70% |
| 84 | मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur – 94) | 59.26% |
| 85 | हरनौत (Harnaut – 177) | 59.12% |
| 86 | पटना साहिब (Patna Sahib – 184) | 59.93% |
| 87 | ब्रह्मपुर (Brahampur – 199) | 59.76% |
| 88 | दरौंदा (Daraunda – 109) | 58.90% |
| 89 | छपरा (Chapra – 118) | 58.61% |
| 90 | दानापुर (Danapur – 186) | 58.52% |
| 91 | एकमा (Ekma – 113) | 58.35% |
| 92 | शाहपुर (Shahpur – 198) | 57.11% |
| 93 | ज़िरादेई (Ziradei – 106) | 57.17% |
| 94 | दरौली (Darauli – 107) | 57.00% |
| 95 | बिहारशरीफ (Biharsharif – 172) | 55.09% |
| 96 | दीघा (Digha – 181) | 41.40% |
| 97 | कुम्हरार (Kumhrar – 183) | 39.57% |
टॉप 10 सीटें जहां सबसे ज्यादा वोटिंग
इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा वोटिंग मीना पुर में देखने को मिली है जहां पर मतदान प्रतिशत 77.62 फीसदी रहा है। इसके अलावा बोचहां (Bochahan – 91) में 76.35%, कुढ़नी (Kurhani – 93) में 75.63%, सकरा (Sakra – 92) में 75.35%, और उजियारपुर (Ujiarpur – 134) में 73.99% मतदान दर्ज किया गया। वहीं कल्याणपुर (Kalyanpur – 131) में 73.62% मतदान हुआ, बरूराज (Baruraj – 96) में 73.50%, सरायरंजन (Sarairanjan – 136) में 73.33%, पारू (Paroo – 97) में 72.62%, और समस्तीपुर (Samastipur – 133) में 72.12% मतदान दर्ज किया गया। ये टॉप 10 सीटें हैं जहां पर इस बार पहले चरण में सबसे ज्यादा मतदान हुआ है।
| क्रमांक | विधानसभा क्षेत्र | मतदान प्रतिशत |
| 1 | मीनापुर (Minapur – 90) | 77.62% |
| 2 | बोचहां (Bochahan – 91) | 76.35% |
| 3 | कुढ़नी (Kurhani – 93) | 75.63% |
| 4 | सकरा (Sakra – 92) | 75.35% |
| 5 | उजियारपुर (Ujiarpur – 134) | 73.99% |
| 6 | कल्याणपुर (Kalyanpur – 131) | 73.62% |
| 7 | बरूराज (Baruraj – 96) | 73.50% |
| 8 | सरायरंजन (Sarairanjan – 136) | 73.33% |
| 9 | पारू (Paroo – 97) | 72.62% |
| 10 | समस्तीपुर (Samastipur – 133) | 72.12% |
टॉप 10 सीटें जहां सबसे कम वोटिंग
इसी तरह दरौंदा (Daraunda – 109) में 58.90% मतदान हुआ, छपरा (Chapra – 118) में 58.61%, दानापुर (Danapur – 186) में 58.52%, एकमा (Ekma – 113) में 58.35%, शाहपुर (Shahpur – 198) में 57.11%, ज़िरादेई (Ziradei – 106) में 57.17%, दरौली (Darauli – 107) में 57.00%, बिहारशरीफ (Biharsharif – 172) में 55.09%, दीघा (Digha – 181) में 41.40%, और कुम्हरार (Kumhrar – 183) में 39.57% मतदान हुआ है। ये वो 10 सीटें हैं जहां सबसे कम वोटिंग देखने को मिली। यहां भी सबसे खराब हाल कुम्हरार सीट का रहा जहां सिर्फ 39.57% वोटिंग दर्ज की गई।
| विधानसभा क्षेत्र | वोटिंग प्रतिशत |
| दरौंदा (Daraunda – 109) | 58.90% |
| छपरा (Chapra – 118) | 58.61% |
| दानापुर (Danapur – 186) | 58.52% |
| एकमा (Ekma – 113) | 58.35% |
| शाहपुर (Shahpur – 198) | 57.11% |
| ज़िरादेई (Ziradei – 106) | 57.17% |
| दरौली (Darauli – 107) | 57.00% |
| बिहारशरीफ (Biharsharif – 172) | 55.09% |
| दीघा (Digha – 181) | 41.40% |
| कुम्हरार (Kumhrar – 183) | 39.57% |
ज्यादा और कम वोट प्रतिशत का क्या मतलब होता है?
किसी भी चुनाव में ज्यादा या कम वोट प्रतिशत के कई मतलब निकाले जाते हैं। चुनावी नतीजे भी इतने अनिश्चित रहते हैं कि ज्यादा और कम वोट प्रतिशत के मायने बदल जाते हैं, लेकिन आमतौर पर देखा गया है कि अगर बंपर वोटिंग देखने को मिले, इसे ‘बदलाव की संभावना’ या फिर किसी एक के पक्ष में ‘लहर’ से जोड़कर देखा जाता है। इसी तरह अगर वोटिंग कम रह जाए तो इसे ‘जनता में उदासीनता’ और कुछ मौकों पर वर्तमान सरकार के प्रति ‘संतोष’ से जोड़कर देखा जाता है।
सबसे ज्यादा वोटिंग, उन 3 सीटों का रिकॉर्ड
मीनापुर सीट
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में मीनापुर में सबसे ज्यादा 77.62 फीसदी मतदान देखने को मिला है। इस सीट पर यादव और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी के राजीव कुमार ने यहां से बड़ी जीत दर्ज की थी, उन्हें 33.51 प्रतिशत वोट मिला था। दूसरे नंबर पर तब जेडीयू के मनोज कुमार रहे थे जिन्हें 24.85 फीसदी वोट मिला। 2015 के चुनाव की बात करें तो तब भी आरजेडी ने ही यहां बाजी मारी थी। राजीव कुमार ने ही 49.60 वोट हासिल कर आसान जीत दर्ज की थी। दूसरे पायदान पर बीजेपी के अजय कुमार रहे थे। अगर 2010 चला जाए तो तब जेडीयू के दिनेश प्रसाद का इस सीट पर कब्जा था, उन्हें 34.06 फीसदी वोट मिले थे। दूसरे पायदान पर आरजेडी के राजीव कुमार रहे थे जिन्हें 29.71 फीसदी वोट हासिल हुए। 2005 के चुनाव में भी जेडीयू का इस सीट पर कब्जा रहा था, दिनेश प्रसाद ने जीत दर्ज की थी। दूसरे स्थान पर आरजेडी के हिंद केसरी यादव रहे थे। यानी कि इस सीट पर पिछले चार चुनावों में दो बार आरजेडी और दो बार जेडीयू ने जीत दर्ज की है।
इस बार मीनापुर सीट पर जेडीयू के अजय कुमार का मुकाबला आरजेडी के राजीव कुमार से है। जन सुराज की तरफ से तेज नारायण भी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं।
बोचहां सीट
इस चुनाव में बोचहां सीट पर भी अच्छी वोटिंग हुई है, ईसी के आंकड़े बताते हैं कि 76.35% लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है। इस सीट पर सवर्ण और पासवान वोटों की निर्णायक उपस्थिति मानी जाती है। पिछले विधनसभा चुनाव में इस सीट से VSIP के मुसाफिर पासवान ने जीत दर्ज की थी, उन्हें 42.62 फीसदी वोट मिला था, दूसरे स्थान पर आरजेडी के रमई राम रहे थे जिनके खाते में 36.45 फीसदी वोट रहे। अगर 2015 के चुनाव पर चला जाए तो तब निर्दलीय बेबी कुमारी ने सीट अपने नाम की थी, उन्हें 40.67 फीसदी वोट मिला था। तब दूसरे पायदान पर जेडीयू की तरफ से रमई राम रहे थे जिन्हें 26.18 फीसदी वोट मिला। 2010 के चुनाव की बात करें तो तब जेडीयू के रमई राम ने इस सीट को अपने नाम किया था, उन्हें 50.58 फीसदी वोट हासिल हुए थे, दूसरे स्थान पर आरजेडी की टिकट पर मुसाफिर पासवान रहे थे। अगर और पीछे चला जाए तो 2015 के चुनाव में आरजेडी के रमई राम ने जीत दर्ज की थी और दूसरे स्थान पर जेडीयू के शिवनाथ चौधरी रहे थे।
इस बार बोचहां सीट से चिराग की पार्टी ने बेबी कुमारी को उतारा है और उनका मुकाबला आरजेडी के अमर कुमार पासवान से होना है। जन सुराज ने यहां से उमेश कुमार रजक को टिकट दिया है।
कुढ़नी सीट
कुढ़नी सीट की बात करें तो यहां पर इस बार 75.63% मतदान हुआ है। इस सीट पर भूमिहार, कोइरी, मल्लाह, यादव वोटरों की संख्या अच्छी खासी मानी जाती है। पिछले चुनाव में यहां से आरजेडी के अनिल कुमार सहनी ने जीत दर्ज की थी, उनके खाते में 40.23 फीसदी वोट गए थे, दूसरे स्थान पर तब बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता थे जिन्हें 39.86 फीसदी वोट हासिल हुए। अगर 2015 के चुनाव की बात करें तो तब बीजेपी के केदार गुप्ता ने जीत हासिल की थी और उन्हें 42.33 प्रतिशत वोट मिले थे, उस चुनाव में दूसरे पायदान पर जेडीयू के मनोज कुमार सिंह रहे थे और उन्हें 35.64 फीसदी वोट मिले। 2010 के चुनाव पर चलें तो तब जेडीयू के मनोज कुमार सिंह ने यहां जीत हासिल की थी, उनके खाते में 28.28 फीसदी वोट गए थे। दूसरे नंबर पर एलजेपी के बिजेंद्र चौधरी थे जिन्हें 27.07 फीसदी वोट मिले थे। 2005 के चुनाव पर चला जाए तो तब जेडीयू के मनोज कुमार ने बाजी मारी थी और दूसरे स्थान पर आरजेडी के अजय निषाद रहे थे। यानी कि इस सीट पर दो बार जेडीयू, एक-एक बार बीजेपी और आरजेडी की जीत हुई है।
इस बार बीजेपी ने यहां से केदार गुप्ता को उतारा है और उनका मुकाबला आरजेडी के सुनील कुमार सुमन से होना है। पीके की पार्टी ने मोहम्मद इरफान को उतारा है।
अब इन तीन सीटों पर सबसे ज्यादा वोटिंग पहले चरण में हुई है और पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने ही इन पर जीत दर्ज की थी। अब देखने वाली बात रहेगी कि ज्यादा मतदान इस बार इन सीटों परिवर्तन का संकेत है या फिर संतोष का।
सबसे कम वोटिंग, उन 3 सीटों का रिकॉर्ड
कुम्हरार सीट
कुम्हरार सीट पर इस बार मात्र 39.57% मतदान हुआ है। कायस्थ या लाला वोटरों की यहां निर्णायक भूमिका मानी जाती है। कुम्हरार सीट पर 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अरुण कुमार सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 54 प्रतिशत वोट मिले थे। अगर 2015 के चुनाव पर नज़र डालें तो तब भी बीजेपी के अरुण कुमार सिन्हा ने ही जीत हासिल की थी। उन्हें 56.25 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर कांग्रेस के अकिल हैदर रहे थे, जिन्हें 32.37 प्रतिशत वोट मिले। 2010 के चुनावी नतीजों में भी अरुण कुमार सिन्हा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। उस समय उन्हें 72.00 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर मोहम्मद कमाल रहे, जिन्हें 13.49 प्रतिशत वोट हासिल हुए। 2005 के विधानसभा चुनाव में भी अरुण कुमार सिन्हा ने बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। उन्हें 69.29 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं दूसरे स्थान पर एनसीपी के अकिल हैदर रहे, जिन्हें 22.86 प्रतिशत वोट मिले थे।
इस बार सीट पर मुकाबला कांग्रेस के इंद्रदीप कुमार और बीजेपी के संजय कुमार के बीच होने वाला है।
दीघा सीट
दीघा सीट पर इस बार मतदान काफी कम हुआ है। इस सीट पर यादव, कोइरी, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कुर्मी की ठीक-ठाक संख्या मानी जाती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी के संजीव चौरसिया ने जीत हासिल की थी। उन्हें 57.09 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर लेफ्ट की शशि यादव रहीं, जिन्हें 29.97 प्रतिशत वोट मिले। 2015 के चुनाव में भी भाजपा के संजीव चौरसिया ने जीत दर्ज की थी। तब उन्हें 50.74 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर जदयू के राजीव रंजन प्रसाद रहे थे, जिन्हें 37.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। अगर 2010 के चुनावी नतीजों पर नज़र डालें तो उस समय जदयू की पूनम देवी यादव ने जीत हासिल की थी। उन्हें 62.02 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर लोजपा के सत्यानंद शर्मा रहे थे, जिन्हें 15.87 प्रतिशत वोट मिले थे।
इस बार दीघा सीट पर फिर बीजेपी के संजीव चौरसिया खड़े हुए हैं, उनका मुकाबला लेफ्ट की दिव्या गौतम से हो रहा है।
बिहारशरीफ सीट
इस बार के चुनाव में बिहार शरीफ सीट पर मतदान काफी कम देखने को मिला है। बिहार शरीफ सीट पर कुर्मी,यादव,पासवान और मुस्लिम वोटरों की अच्छी संख्या है। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सुनील कुमार ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 44.55 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर राजद के सुनील कुमार प्रसाद रहे, जिन्हें 36.34 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। 2015 के चुनाव में भी बीजेपी के सुनील कुमार ने जीत हासिल की थी। उस समय उनके खाते में 42.73 प्रतिशत वोट गए थे। दूसरे स्थान पर जदयू के असगर शमीम रहे थे, जिन्हें 41.42 प्रतिशत वोट मिले थे। 2010 के चुनाव में जदयू के टिकट पर सुनील कुमार ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 41.85 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर राजद की आफरीन सुल्तान रहीं, जिन्हें 36.07 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। 2005 के चुनाव में भी सुनील कुमार ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की थी। उस वक्त उन्हें 54.80 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर राजद के सैयद नौशादनु नवी रहे, जिन्हें 34.32 प्रतिशत वोट मिले थे।
बिहार-शरीफ सीट पर इस बार कांग्रेस के ओमेर खान का मुकाबला बीजेपी के डॉक्टर सुनील कुमार से होना है।
अब इस बार की जिन तीन सीटों पर सबसे कम वोटिंग हुई है, पिछली बार तीनों पर ही बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, ऐसे में इस बार कम वोटिंग प्रतिशत किसे फायदा देता है, ये देखने वाली बात होगी।
पांच फीसदी का खेल और पलट जाती है सत्ता?
बिहार चुनाव में अभी तो सिर्फ पहले चरण की वोटिंग हुई है, लेकिन इस राज्य का एक ऐसा ट्रेंड भी है जो काफी कुछ बताता है। ऐसा कई बार हुआ है कि राज्य में जब वोटिंग प्रतिशत में पांच फीसदी से अधिक का इजाफा दिखता है तो सत्ता बदल जाती है। इसकी शुरुआत 1967 के विधानसभा चुनाव से हो गई थी जब 66.51 फीसदी मतदान हुआ था। उससे पिछले चुनाव यानी कि 1962 में वहीं आंकड़ा 44.47 प्रतिशत था, यानी कि 1967 में सीधे-सीधे 22.04 प्रतिशत का इजाफा हो गया। ये पहली बार था जब राज्य में गैर-कांग्रेसी दलों ने मिलकर बिहार में सरकार बनाई।
इसका एक और प्रमाण 1980 में देखने को मिला था जब कांग्रेस ने बिहार में अपनी वापसी की थी। असल में जब 1977 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब राज्य में वोटिंग प्रतिशत 50.5 फीसदी रहा था, लेकिन तीन साल बाद ही वो आंकड़ा 57.3% तक चला गया, यानी कि फिर पांच फीसदी से ज्यादा का इजाफा। इस इजाफे ने बिहार में सत्ता परिवर्तन किया। इसी तरह राज्य में जब पहली बार लालू की सरकार बनी, तब भी पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में वोटिंग ज्यादा हुई थी। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 1985 में बिहार में वोटिंग प्रतिशत 56.3% थी, लेकिन 1990 में ये बढ़कर 62.0% पर पहुंच गई। यानी कि 5.8 फीसदी ज्यादा वोटिंग ने बिहर में सत्ता बदली थी।
वैसे 1990 के बाद 1995 में जब चुनाव हुए थे, वोटिंग में गिरावट दर्ज की गई, आंकड़ा 61.8% रहा और लालू ने सत्ता में वापसी की। इसके अगले चुनाव यानी कि 2000 में वोटिंग प्रतिशत 62.6 रही, यानी कि पिछले चुनाव की तुलना में सिर्फ 0.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ और आरजेडी की सरकार बनी रही। वैसे 2005 का बिहार विधानसभा चुनाव एक अपवाद है जब वोटिंग टर्नआउट में भारी गिरावट देखने को मिली थी और सत्ता परिवर्तन हो गया। उस चुनाव में 45.85% वोटिंग रही और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। एक अपवाद 2015 में भी देखने को मिला जब महागठबंधन ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई। उस चुनाव में पिछली बार की तुलना में वोटिंग तो अधिक हुई, लेकिन अंतर 4.18 प्रतिशत का रहा।
क्या बढ़ा हुआ वोट जन सुराज की क्रांति का संकेत?
बिहार के इस चुनाव में एक फैक्टर जन सुराज पार्टी भी है। कहने को प्रशांत किशोर की पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतरी है, लेकिन युवाओं के बीच बढ़ती लोकप्रियता ने दूसरे दलों की टेंशन जरूर बढ़ा दी है। खुद पीके या तो सीधे अर्श पर पहुंचने की बात कर रहे हैं या फिर फर्श पर रहने का अनुमान लगा रहे हैं। पॉलिटिकल पंडित प्रशांत किशोर की तुलना दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से करते हैं। इसका कारण यह है कि दोनों ही नेताओं की पार्टी एक अलग विचारधारा के साथ आई हैं। दिल्ली के 2015 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत सभी अनुमान गलत साबित किए थे। उस चुनाव में 67.12% मतदान हुआ था, दिल्ली के इतिहास में यह सबसे ज्यादा रहा। उस सबसे ज्यादा मतदान ने ही अप्रत्याशित नतीजे दिए और कांग्रेस-बीजेपी को छोड़ जनता ने नए विकल्प आम आदमी पार्टी को चुना।
अब अगर बिहार में भी इस बार अप्रत्याशित वोटिंग होती है, अगर दूसरे चरण में भी रिकॉर्ड टूटते हैं, प्रशांत किशोर जरूर इसे अपने पक्ष में दिखाने की कोशिश कर सकते हैं।
