जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) के लिए मुसीबत खड़ी होती जा रही है। पार्टी के सांसदों का मानना है कि यूपी में किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होने के पार्टी के फैसले से आने वाले चुनावों में उन्हें नुकसान होगा। वे अपनी सीट दोबारा नहीं जीत पाएंगे।
रविवार (25 फरवरी) को बसपा के अंबेडकरनगर से सांसद रितेश पांडे ने उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। त्यागपत्र की घोषणा के तुरंत बाद पांडे दिल्ली में मीडिया के सामने भाजपा में शामिल हो गए।
पांडे ने अपने त्याग पत्र में लिखा है, “लंबे समय से मुझे न तो पार्टी की बैठकों में बुलाया जा रहा है और न ही नेतृत्व के स्तर पर संवाद किया जा रहा है। मैंने आपसे तथा शीर्ष पदाधिकारियों से संपर्क के लिए, भेंट के लिए अनगिनत प्रयास किये, लेकिन उनका कोई परिणाम नहीं निकला। इस अंतराल में मैं अपने क्षेत्र में एवं अन्यत्र पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों से निरंतर मिलता-जुलता रहा तथा क्षेत्र के कार्यों में जुटा रहा। ऐसे में में इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पार्टी को मेरी सेवा और उपस्थिति की अब आवश्यकता नहीं रही।”
बसपा की मुश्किलें सिर्फ पांडे तक ही सीमित नहीं हैं। इसके जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव आगरा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में भाग लेने के लिए तैयार हैं। 2022 में भी यादव भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे। यादव ने पिछले साल अन्य पार्टियों से भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी। बसपा से निलंबित सांसद दानिश अली भी पिछले दिनों अमरोहा में राहुल की यात्रा में शामिल हुए थे।
बसपा सांसद अन्य विकल्पों पर क्यों विचार कर रहे हैं?
सूत्रों ने बताया कि चुनाव तैयारियों में शामिल होने के लिए बसपा नेतृत्व ने अभी तक सांसदों से संपर्क नहीं किया है। मायावती तक पहुंच नहीं होने से सांसद अनिश्चित हैं कि इस बार उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं। 2019 में बसपा के 10 सांसद चुने गए थे। गाजीपुर से बसपा के अफजाल अंसारी सांसद बने थे। लेकिन इस बार अंसारी को सपा गाजीपुर से टिकट दे दिया है। माना जा रहा है कि दानिश अली भी कांग्रेस में शामिल होने के करीब हैं।
राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के एनडीए में शामिल होने से पहले बसपा के एक सांसद जयंत चौधरी की पार्टी के संपर्क में थे। वहीं पूर्वी यूपी से एक अन्य सांसद को भाजपा के संपर्क में माना जाता है। माना जाता है कि सांसद ने पिछले साल घोसी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की मदद की थी, हालांकि पार्टी अंततः सपा से हार गई थी।
भाजपा से हरी झंडी मिलने से पहले, रितेश पांडे ने बसपा से संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन वह विफल रहे थे। इसके बाद उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में बूथ स्तर तक एक जनाधार तैयार करना शुरू कर दिया था और निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। अब उन्हें अंबेडकरनगर से बीजेपी का टिकट मिलने की उम्मीद है।
मायावती ने क्या प्रतिक्रिया दी है?
मायावती एनडीए और विपक्षी गठबंधन दोनों से दूर रहने की नीति पर कायम हैं। रविवार को, जैसे ही पांडे ने पार्टी से अपने इस्तीफे की घोषणा की, उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया। मायावती ने लिखा, “बसपा के सांसदों को इस कसौटी पर खरा उतरने के साथ ही स्वंय जांचना है कि क्या उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता का सही ध्यान रखा? क्या अपने क्षेत्र में पूरा समय दिया? साथ ही, क्या उन्होंने पार्टी व मूवमेन्ट के हित में समय-समय पर दिये गये दिशा-निर्देशों का सही से पालन किया है?”
उन्होंने आगे लिखा, ऐसी स्थिति में अधिकतर लोकसभा सांसदों का टिकट दिया जाना क्या संभव, खासकर तब जब वे स्वयं अपने स्वार्थ में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे हैं व निगेटिव चर्चा में हैं। मीडिया द्वारा यह सब कुछ जानने के बावजूद इसे पार्टी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना अनुचित। बसपा का पार्टी हित सर्वोपरि।”
क्या गठबंधन से बसपा को मदद मिलती?
पिछले उदाहरणों को सही मानें तो इसका जवाब ‘हां’ होगा। बसपा अक्सर दूसरी पार्टियों – भाजपा, सपा और कुछ अन्य दलों के साथ गठबंधन करके सत्ता तक पहुंची है। सिर्फ 2007 में ही बसपा अपने दम पर जीत हासिल की थी, तब पार्टी ने “सर्वजन हिताय (सभी का कल्याण)” का नारा दिया था।
पार्टी तभी जीत सकती है जब वह अपने पारंपरिक आधार के बाहर मतदाताओं से जुड़ेगी और यह तभी संभव होगा जब वह गठबंधन में प्रवेश करेगी। 2012 के बाद से बसपा का चुनावी प्रदर्शन खराब हुआ है। 2019 में जब बसपा 10 सीटें जीती, तो लगा पार्टी वापसी करेगी। लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव के ठीक बाद बसपा ने सपा से नाता तोड़ लिया और 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा। उसे केवल एक सीट और 12% से अधिक वोट शेयर हासिल हुआ।
लेकिन आंकड़ों इस बात की ओर इशारा करने के बावजूद कि बसपा गठबंधन को तैयार नहीं है। मायावती अकेले चुनाव लड़ने की नीति पर अड़ी हुई हैं। बसपा प्रमुख ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन दोनों से समान दूरी बनाए रखने की नीति को प्राथमिकता दी है। हाल के दिनों में बसपा ने यह कहते हुए पंजाब में अकाली दल से नाता तोड़ लिया है कि वह भाजपा और क्षेत्रीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ बातचीत कर रही है, जिसके साथ उसने पिछले साल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन किया था।