दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में तीन दिवसीय (22-24 अगस्त) ब्रिक्स सम्मेलन (BRICS Summit 2023) की शुरुआत हो चुकी है। समूह के नेताओं की मेजबानी दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा कर रहे हैं।

2019 के बाद इस वर्ष पहली बार सम्मेलन का आयोजन फिजिकल मोड किया गया है। पिछले साल जब COVID-19 महामारी का प्रकोप कम हो गया था, तब भी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में नेताओं का राब्ता वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ही हुआ था। ब्राजील में लुइज़ इंसियो लूला दा सिल्वा लूला के सत्ता में लौटने के बाद का भी यह पहला शिखर सम्मेलन है।

गिरफ्तारी से बचने के ल‍िए ऑनलाइन श‍िरकत करेंगे पुतिन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सम्मेलन में भाग लेने के लिए जोहान्सबर्ग नहीं गए हैं। वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) के माध्यम से शामिल होंगे। दरअसल, यूक्रेन युद्ध को लेकर International Criminal Court (ICC) ने पुतिन के नाम का वारंट निकाला है। ब्रिक्स का मेजबान देश दक्षिण अफ्रीका ICC का सदस्य है। ऐसे में अगर पुतिन दौरे पर आते तो उसे उन्हें गिरफ्तार करना ही पड़ता।

बड़ी महत्वाकांक्षाओं वाले देशों का सम्मेलन है ब्रिक्स

ब्रिक्स BRICS (Brazil, Russia, India, China, South Africa) बड़ी अर्थव्यवस्था, बड़ी आबादी और बड़ी महत्वाकांक्षाओं वाले देशों का सम्मेलन है। ब्रिक्स समूह के देश दुनिया की करीब 41 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन देशों की जमीन का संयुक्त क्षेत्रफल ग्लोब की कुल भूमि का 29.3% है। दुनिया की जीडीपी का 26% और विश्व व्यापार में 16% से अधिक हिस्सेदारी BRICS देशों की है। ब्रिक्स देश वर्षों से वैश्विक आर्थिक विकास के मुख्य इंजन रहे हैं।

इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कई पश्चिमी देश शिखर सम्मेलन को करीब से देख रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने यहां तक सुझाव दिया कि ‘यदि आमंत्रित किया गया तो’ वह इसमें शामिल होंगे। हालांकि फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों को आमंत्रित नहीं किया गया है।

इस बार ब्रिक्स सम्मेलन के शीर्ष एजेंडे में समूह के विस्तार पर कोई फैसला लिया जा सकता है। अल्जीरिया से अर्जेंटीना तक, कम से कम 40 देशों ने इस ग्रुप में शामिल होने में रुचि दिखाई है। समूह के आकर्षण का केंद्र इसकी बढ़ती आर्थिक ताकत है। पांच ब्रिक्स देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अब क्रय शक्ति समानता के मामले में जी7 से अधिक है। हालांकि इन सब के बावजूद ब्रिक्स देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में केवल 15 प्रतिशत वोटिंग पावर मिला है।

क्या ऊंची होगी ग्लोबल साउथ की आवाज?

इस तरह के असंतुलन पर शिकायतों के साथ-साथ ग्लोबल साउथ में चिंताएं बढ़ रही हैं क्योकि अमेरिका प्रतिबंधों के जरिए डॉलर को उसी तरह हथियार बना सकता है जैसे उसने रूस के खिलाफ किया है। इसके लिए ब्रिक्स देशों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अपनी मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाते हुए अमेरिकी मुद्रा पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है।

यहां दो बातों को समझ लेना आवश्यक है। पहला तो यह कि इस बात पर सहमत होना कि कुछ बदलने की जरूरत है, एक बात है। लेकिन साथ मिलकर कैसे काम किया जाए इस पर सहमत होना दूसरी बात है। 

सीमा विवाद के कारण भारत और चीन के बीच मई 2020 से तनावपूर्ण रिश्ते हैं। इस बीच, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील पश्चिम के साथ उतना ही मधुर संबंध चाहते हैं जितना वे चीन और रूस के साथ चाहते हैं।

तो, क्या ब्रिक्स अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक वैकल्पिक आर्थिक और जियोपोलिटिकल पिलर बनकर उभरेगा? या क्या उनके आंतरिक मतभेद समूह की उपलब्धियों और महत्वाकांक्षाओं को सीमित कर सकते हैं?

विश्लेषकों का कहना है कि ब्रिक्स देशों का दबदबा बढ़ने की संभावना है, लेकिन यह गुट अमेरिका के नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था से खुद को अचानक अलग करने के बजाए टुकड़ों में अपनी आर्थिक और कूटनीतिक विकल्प पेश करेगा। हालांकि पश्चिम के साथ तनाव रहेगा ही क्योंकि ब्रिक्स ग्रुप के कई नेता बदलती दुनिया में एक स्वतंत्र रास्ता तलाशना चाहते हैं। ब्रिक्स का प्रभाव बना रहे इसके लिए सदस्य देशों की असमान प्राथमिकताओं को मैनेज करने की आवश्यकता होगी – यह एक ऐसी चुनौती है जिसे एड्रेस करना ग्रुप के लिए आसान नहीं होगा।

BRICS Summit का इतिहास

BRIC (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) देशों के नेता पहली बार जुलाई 2006 में G8 आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में मिले। कुछ ही समय बाद सितंबर 2006 में समूह को औपचारिक रूप दिया गया।

उच्च स्तरीय बैठकों की एक सीरीज के बाद, पहला BRIC शिखर सम्मेलन 16 जून 2009 को येकातेरिनबर्ग (रूस) में आयोजित किया गया था। सितंबर 2010 में न्यूयॉर्क में BRIC के विदेश मंत्रियों की बैठक में दक्षिण अफ्रीका को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किए जाने के बाद समूह का नाम बदलकर BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) कर दिया गया। इस तरह 14 अप्रैल 2011 को दक्षिण अफ्रीका ने तीसरे BRICS शिखर सम्मेलन में भाग लिया।