अगर बीजेपी अपने पहले लगाए गए अनुमानों से ज्यादा कमजोर दिखाई देती है तो इसके पीछे वजह सिर्फ मतदाताओं की उदासीनता या कम वोटिंग का होना नहीं है। पार्टी ने आकलन किया है कि मतदान के पहले दो चरणों में कार्यकर्ताओं के उत्साह में काफी गिरावट आई है। बीजेपी के साथ काम कर रहे ऐसे कई कार्यकर्ता, जो आरएसएस के कैडर से आते हैं, पार्टी के चुनाव अभियान में अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये ही लोग मतदान वाले दिन मतदाता को घर से बाहर निकाल कर लाते हैं।
कई कार्यकर्ताओं के लिए बीजेपी के बदलते चेहरे के साथ तालमेल बैठा पाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है।
एक नाराज बीजेपी कार्यकर्ता ने कहा, “आप हमसे एक दिन कांग्रेस के किसी भ्रष्ट नेता के चेहरे पर कालिख पोतने और अगले दिन उसके लिए प्रचार करने के लिए नहीं कह सकते।” इस तरह बीजेपी और आरएसएस के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
एक शिकायत यह भी है कि आरएसएस की ओर से सरकार से किए गए छोटे-छोटे अनुरोध जिसमें पोस्टिंग, ट्रांसफर आदि शामिल हैं, इन्हें आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस बार बीजेपी ने टिकट बंटवारे के मामले में आरएसएस को लगभग नजरअंदाज कर दिया है। इस बात को आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने तब स्वीकार किया जब उनसे बीजेपी के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की बेटी और मुंबई नॉर्थ सेंट्रल की सांसद पूनम महाजन को टिकट न मिलने के मामले में दखल देने के लिए कहा गया।
इस सब के बाद भी आरएसएस को अपने कार्यकर्ताओं को यह सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले के राजनेताओं के मुकाबले आरएसएस के एजेंडे को पूरा करने के लिए कहीं ज्यादा काम किया है।

यह एकतरफा चुनाव नहीं है
बीजेपी के मौजूदा लोकप्रिय सांसदों की जगह कम प्रभावशाली या दल बदलू नेताओं को टिकट देने की वजह से कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। जैसे- पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मेरठ सीट पर अभिनेता अरुण गोविल को पैराशूट उम्मीदवार के तौर पर उतार दिया गया। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद गोविल ने अंदरुनी भीतरघात का संकेत दिया था।
उत्तर प्रदेश के बरेली और कर्नाटक के मैसूर में क्रमशः मौजूदा सांसद संतोष गंगवार और प्रताप सिंह ऐसे नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें इस बार टिकट नहीं मिला जबकि सर्वे में भी यह कहा गया था कि वह बड़ी जीत दर्ज करेंगे।
महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली में एक तिहाई बीजेपी कार्यकर्ता नहीं पहुंचे। नांदेड़ से ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण आते हैं। चव्हाण कुछ वक्त पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे।

पार्टी के अनुशासन को दरकिनार करते हुए कर्नाटक के एक भाजपा नेता ने मीडिया के सामने आकर स्वीकार किया कि उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना की खराब इमेज के बारे में बताया था। पार्टी में कुछ लोगों को यह भी शक है कि केंद्रीय मंत्री और गुजरात से आने वाले पुरुषोत्तम रुपाला के विवादित बयान को लेकर राजपूत समाज के द्वारा किए जा रहे विरोध को पार्टी के भीतर से ही समर्थन मिल रहा था।
दूसरे दौर के मतदान के बाद सट्टा बाजार में नया अनुमान लगाया गया कि बीजेपी इस चुनाव में 290 सीटों तक ही सीमित रह सकती है। इससे पता चलता है कि 2024 का लोकसभा चुनाव एक तरफा चुनाव नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया गया था।
BJP 2024 Election Campaign: मोदी तक सिमटा बीजेपी का चुनाव अभियान
2024 में बीजेपी का चुनाव प्रचार अभियान पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही था लेकिन तब राज्यों में पार्टी के क्षत्रप और यहां तक कि राष्ट्रीय नेताओं को भी चुनाव प्रचार के दौरान आगे रखा गया था। लेकिन इस बार पार्टी के वरिष्ठ नेता जैसे- राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, सुशील मोदी और देवेंद्र फडणवीस अपने-अपने राज्यों में चुनावी पोस्टर से बाहर दिखाई दे रहे हैं।
यह सिर्फ संयोग नहीं है कि पहले चरण के मतदान के बाद से ही मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीखे भाषण सामने आने शुरू हुए। प्रधानमंत्री के इस तरह के भाषणों को लिखने वाली उनकी कोर टीम की यह कहकर आलोचना की गई कि ऐसे भाषण दो कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहे और वैश्विक मंच पर बड़ी भूमिका रखने वाले राजनेता के लिए अच्छे नहीं है।

BJP Hindu Politcs: हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश
यह माना गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए हैं और शायद वे इन भाषणों के बाद संतुष्ट हुए होंगे। कई लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण सीधे तौर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए थे। वह कहना चाहते थे कि कुछ ऐसे सहयोगियों के साथ गठबंधन बनाने जिन पर सवाल हैं और संदिग्ध लोगों को पार्टी में शामिल करने के बावजूद भी, वह आरएसएस की मूल विचारधारा से दूर नहीं गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के सभी उम्मीदवारों को व्यक्तिगत रूप से जो पत्र लिखा है, उसमें उन्होंने उन्हें साथी कार्यकर्ता कहा है। यह माना जा रहा है कि ऐसा करके उन्होंने कार्यकर्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की है। पिछले महीने विदर्भ में चुनाव प्रचार के दौरान वह रात भर आरएसएस के मुख्यालय में भी रुके थे।
