लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद से बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चलने की भी खबरें सामने आ रही हैं। एक तरफ जहां आरएसएस और भाजपा के बीच की दरार अब खुलकर सामने आ रही है, वहीं उत्तर प्रदेश में भी सीएम योगी और डिप्टी सीएम के बीच टकराव की खबरें आ रही हैं। कई राज्यों में भाजपा नेता अपने असंतोष और विद्रोह भी खुलकर जाहिर कर रहे हैं। इन सबके बीच उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा विधायक ने सभी को हैरानी में डालते हुए अपनी ही सरकार की ओर से लाए गए विधेयक के विरोध में बात की।
प्रयागराज से भाजपा विधायक हर्षवर्द्धन बाजपेयी ने बुधवार को नजूल लैंड को निजी फ्रीहोल्ड में बदलने से रोकने वाले अपनी सरकार के विधेयक के खिलाफ बात की। अपने ही दल के विधायक की आपत्तियों से सत्ता पक्ष हैरान हो गया और हर्षवर्द्धन के बोलने के दौरान ही संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने हस्तक्षेप किया और बाजपेयी से कहा, “आपको यह समझ में नहीं आ रहा है। पहले, इसे पढ़ो।”
विधानसभा में बोलते हुए हर्षवर्धन बाजपेयी ने कहा, “अगर सरकार एक या दो संपत्तियां लेती है तो कुछ भी नहीं बदलेगा लेकिन मैं उनकी बात कर रहा हूं जो झुग्गी-झोपड़ियों में एक या दो कमरों में रहते हैं। प्रयागराज में इन्हें ‘सागर पेशा’ कहा जाता है। ‘सागर पेशा’ शब्द ब्रिटिश काल से आया है। अंग्रेजों ने अपने काम करने वाले कर्मचारियों को अपने बंगलों के पास रहने के लिए जगह दी और उन्हें ‘शागिर्द पेशा” कहा।
बाजपेयी ने आगे कहा,
“ये परिवार ब्रिटिश शासन के समय से वहां रह रहे हैं। 100 साल से भी पहले से। एक तरफ हम गरीबों को पीएम आवास योजना के तहत घर दे रहे हैं और दूसरी तरफ हम हजारों परिवारों को बाहर निकलने के लिए कह रहे हैं । हम जमीन ले रहे हैं। ये न्यायसंगत नहीं है।”

सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक ने कहा, “मैं एक गृहिणी से मिला जिसका घर मुश्किल से सौ गज क्षेत्र पर स्थित है। उन्होंने कहा कि इस सौ गज जमीन से सरकार को क्या मिलेगा। हमारा शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि लोगों की संपत्ति का अधिकार स्पष्ट हो। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कई बार संपत्ति अधिकारों और बौद्धिक संपदा अधिकारों में स्पष्टता लाने के लिए एक कानून लाने की बात कही है।”
भाजपा के मंत्री ने हर्षवर्धन से बिल पढ़ने को कहा
बाजपेयी ने जब गरीबों पर नजूल संपत्ति विधेयक के प्रतिकूल प्रभाव पर बोलना जारी रखा तो संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना खड़े हुए और बाजपेयी से कहा, “आप समझ नहीं रहे हो। पहले पढ़ तो लो।”
सत्ता पक्ष और विपक्ष के हंगामे के बीच हर्षवर्धन बाजपेयी ने आखिर में कहा, “कानून में एक प्रावधान होना चाहिए कि जिनके पास नजूल भूमि है और जहां गरीब रहते हैं, उन्हें इन जमीनों को फ्रीहोल्ड में परिवर्तित करने का मौका मिलना चाहिए।”
प्रयागराज जिले के एक अन्य भाजपा विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह ने भी कहा कि उनके सुझावों पर विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, सिंंह ने विधेयक का विरोध नहीं किया। उन्होंने कहा कि जिनके पास नजूल भूमि का वास्तविक स्वामित्व है, उन्हें अपने पट्टे का नवीनीकरण करा लेना चाहिए।

विपक्षी दलों ने भी की विधेयक की आलोचना
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के कमाल अख्तर, कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा और जनसत्ता दल के नेता रघुराज प्रताप सिंह ने भी विधेयक की आलोचना की और मांग की कि इसे प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए। इलाहाबाद (उत्तर) से पहली बार विधायक बने 40 वर्षीय हर्षवर्धन को अपने इस बयान के लिए विपक्षी दलों से जबरदस्त सराहना मिली।
क्या है उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024?
उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 के तहत राज्य में नजूल लैंड (जिसे सरकार के स्वामित्व वाली जमीन कहा जाता है लेकिन अक्सर वह सीधे राज्य संपत्ति के रूप में नहीं रखी जाती) को अब निजी स्वामित्व में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। मतलब, सरकार यह जमीन किसी व्यक्ति या संस्था को इस्तेमाल करने के लिए देती है।
विधेयक के मुताबिक, नजूल भूमि के पूर्ण स्वामित्व को निजी व्यक्तियों या संस्थानों को हस्तांतरित करने का अनुरोध करने वाला कोई भी आवेदन खारिज कर दिया जाएगा।
विधेयक के मुताबिक, अगर ऐसे स्वामित्व परिवर्तन की प्रत्याशा में भुगतान किया गया है तो राशि जमा की तारीख से एसबीआई द्वारा निर्धारित फंड आधारित उधार दर (MCLR) की सीमांत लागत पर गणना की गई ब्याज के साथ वापस कर दी जाएगी।
विधेयक में कहा गया है कि सरकार नजूल भूमि के मौजूदा पट्टाधारकों के पट्टे बढ़ाने का विकल्प चुन सकती है, बशर्ते वे अच्छी स्थिति में हों, नियमित रूप से किराया दे रहे हों और पट्टे की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया हो।

जेडीएस ने खुद को किया सिद्दारमैया के खिलाफ मार्च से अलग
वहीं, दूसरी ओर दक्षिण भारत में भाजपा के एक साथी ने ही उसके लिए शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर दी। उसकी सहयोगी पार्टी जेडीएस ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बेंगलुरु से मैसूर तक प्रस्तावित मार्च से खुद को अलग कर लिया।
पिछले कुछ दिनों से दोनों पार्टियों के बीच इस मार्च को लेकर मतभेद स्पष्ट हो गए थे। कुछ नेताओं ने 3 से 10 अगस्त तक होने वाली 140 किलोमीटर की पदयात्रा के उद्देश्य पर सवाल उठाया था। बुधवार को, जेडीएस के एच.डी. कुमारस्वामी ने घोषणा की कि उनकी पार्टी इस मार्च का हिस्सा नहीं होगी। उन्होंने कहा कि कई जेडीएस नेता इस समय जब लोग बारिश से संबंधित मुद्दों का सामना कर रहे हैं, इस मार्च के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा जेडीएस को साइडलाइन कर रही है।
अपमान की एक सीमा होती है- कुमारस्वामी
दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए कुमारस्वामी ने कहा, “बेंगलुरु और मैसूर के बीच के क्षेत्र में हम मजबूत हैं। इस स्थिति में अगर वे हमें विश्वास में नहीं लेते हैं तो हम इस मार्च का समर्थन क्यों करें?”
कुमारस्वामी ने कहा कि राजनीति चुनावों के दौरान किए गए गठबंधन से अलग होती है। उन्होंने कहा कि जेडीएस को भाजपा की हर बात नहीं माननी चाहिए। उन्होंने आगे कहा, “इस मामले ने मुझे भावनात्मक रूप से भी चोट पहुंचाई है। विरोध कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए जिस व्यक्ति को नियुक्त किया गया है। वह प्रीतम गौड़ा कौन है? वह वही व्यक्ति है जिसने देवेगौड़ा (पूर्व पीएम और कुमारस्वामी के पिता) के परिवार को नष्ट करने की कोशिश की थी। उसे उसी बैठक में बुलाया गया है जिसमें मैं बैठा हूँ। मेरे अपमान सहन करने की भी एक सीमा है।”

मार्च से हटने के पीछे बारिश का दिया हवाला
कर्नाटक के पूर्व सीएम ने कहा कि राज्य के अधिकांश हिस्सों में भारी बारिश की स्थिति में वैसे भी मार्च करना ठीक नहीं रहेगा। उन्होंने कहा, “जब ऐसी स्थिति हो तो क्या हम विरोध मार्च कर सकते हैं? हमें इस बात पर विचार करना होगा कि लोग क्या सोचेंगे। हमें उनकी भावनाओं और दर्द के प्रति संवेदनशील होना होगा। राजनीति को केंद्र में नहीं रखना चाहिए, सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं।” कुमारस्वामी ने कहा कि उत्तरी कर्नाटक के कई हिस्सों में दर्जनों गांव जलमग्न हो गए हैं।
कुमारस्वामी का बयान बेंगलुरु में जेडीएस की कोर कमेटी की बैठक के एक दिन बाद आया, जिसका नेतृत्व मैसूर क्षेत्र के विधायक जीटी देवेगौड़ा ने किया। मीटिंग में निष्कर्ष निकाला गया कि बारिश से हुई तबाही को देखते हुए मार्च गलत संकेत भेजेगा।