झारखंड के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर राज्य की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 में से 10 विधानसभा सीटों पर है और इसके लिए वह पार्टी के बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है।
इसके अलावा पार्टी राज्य की 52 ऐसी विधानसभा सीटों पर भी फोकस कर रही है, जहां पर उसे हालिया लोकसभा चुनाव में बढ़त मिली थी। भाजपा संथाल परगना के इलाके में ‘घुसपैठ’ और ‘डेमोग्राफिक चेंज’ को मुद्दा बना रही है।
बीजेपी की कोशिश यहां पर सवर्ण मतदाताओं के अलावा ओबीसी और दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट करने की है। सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी ने अपने नेताओं के लिए यह लक्ष्य तय किया है।
असम के मुख्यमंत्री और पार्टी के सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा इस संबंध में रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं। राज्य में बीजेपी के प्रभारी और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘सलाहकार’ की भूमिका में हैं।
झारखंड में 4 महीने के अंदर विधानसभा के चुनाव होने हैं।
झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं। इसके अलावा एक मनोनीत विधायक भी है।
साल | बीजेपी को मिली सीटें | झामुमो को मिली सीटें | कांग्रेस को मिली सीटें | झाविमो (प्रजातांत्रिक) को मिली सीटें | आजसू को मिली सीटें |
2014 विधानसभा चुनाव | 37 | 19 | 6 | 8 | 5 |
2019 विधानसभा चुनाव | 25 | 30 | 16 | 3 | 2 |
लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को 14 सीटों में से आठ पर जीत मिली है लेकिन वह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पांच लोकसभा सीटों में से किसी पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जेल से बाहर आने के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं और आदिवासियों के बीच जाकर पार्टी के लिए समर्थन जुटा रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, हिमंता बिस्वा सरमा ने पार्टी को बताया है कि अगर वह इस बार चुनाव जीतने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाती है तो अगले 15 सालों तक झारखंड की सत्ता में नहीं आ पाएगी। हिमंता ने कहा है कि आने वाले चार महीने पार्टी और चुनाव के लिए समर्पित कर दिए जाएं। पार्टी के नेताओं को बताया गया है कि हमें लोगों की समस्याओं को सुनना होगा क्योंकि इससे मतदाताओं में हमारे प्रति भरोसा बढ़ेगा।
बड़े चेहरों को चुनाव लड़ाएगी बीजेपी
चुनाव की रणनीति बनाने के लिए होने वाली बीजेपी की बैठकों में मौजूद रहने वाले भाजपा के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी इस बात पर मंथन कर रही है कि पार्टी के सभी बड़े नेताओं को विशेषकर जिसमें आदिवासी चेहरे भी शामिल हैं, उन्हें चुनाव लड़ाया जाए।
लोकसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाया था। झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटें बीजेपी के पास हैं।

बीजेपी के एक नेता ने बताया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा, सुनील सोरेन और सुदर्शन भगत के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को भी भाजपा विधानसभा का चुनाव लड़ा सकती है। रांची की पूर्व मेयर आशा लाकड़ा और झारखंड में बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को भी पार्टी चुनाव मैदान में उतार सकती है क्योंकि आदिवासी सीटों पर भाजपा के खिलाफ लहर है इसलिए पार्टी की कोशिश है कि अपने बड़े चेहरों के साथ चुनाव मैदान में उतरा जाए और कम से कम 10 सीटें जीती जाएं।
पार्टी का मानना है कि बड़े चेहरों को टिकट देने से उसके आसपास के विधानसभा क्षेत्रों पर असर हो सकता है और इससे बीजेपी को फायदा होगा।
आदिवासियों के लिए चलाई योजनाएं
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को आदिवासी मतदाताओं पर भरोसा है और उसने आदिवासियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं। मोदी सरकार ने आदिवासी गौरव के प्रतीक बिरसा मुंडा के जन्मदिन समारोह को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाना भी शुरू किया है।
मुंडा नहीं लड़ना चाहते चुनाव
बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं। पार्टी ने उन्हें कोल्हान इलाके में एक सीट से चुनाव लड़ाने की पेशकश की थी। लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को 1.49 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
बीजेपी आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के लिए इस बात का प्रचार कर रही है कि आदिवासी बहुल इलाके संथाल परगना में ‘मुस्लिम घुसपैठ’ के कारण उनकी जान को खतरा है और झारखंड की गठबंधन सरकार घुसपैठियों को बढ़ावा दे रही है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक जनसभा में कहा कि झारखंड में आए घुसपैठिए नौकरियां और जमीन हड़पने के लिए आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं। इसके बाद झारखंड के गोड्डा से बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने मांग की कि संथाल परगना और बंगाल के कुछ इलाकों को मिलाकर एक अलग केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया जाए।
दुबे ने कहा कि अगर झारखंड में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार सत्ता में आती है तो वह राज्य की डेमोग्राफी को लेकर श्वेत पत्र जारी करेगी।

मरांडी ने लिखा सोरेन को पत्र
19 जुलाई को बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर संथाल परगना के इलाके में आदिवासियों की घटती आबादी को लेकर एसआईटी से जांच कराने की मांग की थी। मरांडी ने पत्र में लिखा था कि वह दिन दूर नहीं है जब संथाल परगना के इलाके में संथाली अल्पसंख्यक बन जाएंगे और संथाल परगना अपनी पहचान खो देगा।
बीजेपी में एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा कि मुस्लिम और आदिवासी हमें बहुत ज्यादा वोट नहीं देते जबकि जमीनों का अवैध ट्रांसफर और शादियों के मुद्दे से हमें मदद मिल सकती है।
बीजेपी के नेता के मुताबिक, विधानसभा चुनाव में पार्टी ऐसी शादियों को और घुसपैठियों व आदिवासियों के बीच जमीन के ट्रांसफर को रोकने के लिए कानून बनाने को मुद्दा बना सकती है।
‘संविधान खतरे में है’ का जवाब देगी बीजेपी
विपक्ष के द्वारा लोकसभा चुनाव में संविधान बचाओ के नारे का इस्तेमाल किए जाने को लेकर भाजपा के नेता ने कहा कि कांग्रेस के द्वारा ‘संविधान खतरे में है’ के बदले हम लोगों को बताएंगे कि ‘आदिवासी और उनकी जमीन, औरतें खतरे’ में हैं।
बीजेपी का ऐसा मानना है कि लोकसभा चुनाव में जिन 52 विधानसभा सीटों पर वह आगे रही थी, वहां पर फोकस करना उसके लिए ज्यादा आसान है।
बीजेपी के सूत्र ने कहा कि अगर पार्टी लोकसभा चुनाव में किए गए अपने प्रदर्शन को दोहराने में नाकामयाब रहती है तो उस स्थिति में कम से कम जिन 10 आदिवासी सीटों को जीतने का उसका टारगेट है, यह उसके लिए फायदेमंद होगा। इसके अलावा हमें अपने कोर वोट बैंक जैसे- अपर कास्ट और ओबीसी के साथ ही दलितों पर भी काम करने की जरूरत है और इसके लिए हम अभियान चलाएंगे कि हेमंत सोरेन की सरकार पिछड़ा और दलित विरोधी है।

बीजेपी से नाराज है कुड़मी महतो समुदाय
बीजेपी को ओबीसी मतदाताओं के मामले में एक दिक्कत आ सकती है क्योंकि ओबीसी मतदाताओं का एक वर्ग विशेषकर कुड़मी महतो जिनकी आबादी झारखंड में 15% से ज्यादा है, वह बीजेपी से इस बात के लिए नाराज है कि लंबे समय से उनकी आदिवासी दर्जा दिए जाने की मांग को बीजेपी ने पूरा नहीं किया है। कुड़मी महतो मतदाताओं का असर झारखंड में 32 से 35 विधानसभा सीटों पर है और इनमें से कुछ विधानसभा सीटों जैसे- सिल्ली, रामगढ़, मांडू, गोमिया, डुमरी और ईचागढ़ में उनकी आबादी 75% तक है।
अब तक बीजेपी कुड़मी महतो वोटों के लिए अपने सहयोगी दल आजसू पर निर्भर है और इस बीच में जयराम महतो जैसे बड़े नेता का उभार होना भी बीजेपी के लिए चिंतित करने वाला है। बीजेपी के एक नेता का कहना है कि इस बार पिछली बार की तरह हालात नहीं हैं और आजसू के पास इतना आधार नहीं है कि वह ज्यादा सीटों के लिए मोलभाव कर सके और अकेले दम पर चुनाव लड़ सके।