BJP Dalit Candidates Delhi Polls 2025: दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए बीजेपी पूरी ताकत लगा रही है। पार्टी का फोकस दिल्ली में सवर्ण, पंजाबी, वैश्य मतदाताओं को साधने के साथ ही दलित मतदाताओं पर भी है। इसलिए बीजेपी ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से ज्यादा दलित नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी ने न सिर्फ आरक्षित सीटों पर बल्कि सामान्य सीटों पर भी दलित नेताओं को प्रत्याशी बनाकर विशेष रूप से आम आदमी पार्टी के लिए कड़ी चुनौती पेश की है।
दिल्ली में 5 फरवरी को वोटिंग होनी है और चुनाव के नतीजों का ऐलान 8 फरवरी को होगा। राजधानी की कुल 70 सीटों में से 12 सीटें दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं। दिल्ली में दलित समुदाय की आबादी 16% के आसपास है।
हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की एक टिप्पणी को विपक्षी दलों ने बड़े पैमाने पर मुद्दा बनाया था। आम आदमी पार्टी ने भी इस मामले में आगे जाकर अमित शाह का विरोध किया था और कहा था कि यह बयान संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान है। केजरीवाल की हमेशा से कोशिश राजधानी के दलित मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने की रही है। इसके लिए उन्होंने हाल ही में दलित छात्रों को विदेश में फ्री पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप दिए जाने की घोषणा की थी।

बीजेपी ने 14 दलित नेताओं को दिया टिकट
दिल्ली में 12 आरक्षित सीटों पर आम आदमी पार्टी ने इतने ही उम्मीदवार उतारे हैं जबकि बीजेपी ने दो सामान्य सीटों पर इस समुदाय के नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने एक सीट पर ऐसा किया है। बीजेपी ने दलित समुदाय के जिन नेताओं को सामान्य सीटों पर उम्मीदवार बनाया है उनमें दीप्ति इंदौरा को मटिया महल सीट से और कमल बागड़ी को बल्लीमारान सीट से टिकट दिया गया है। कांग्रेस की ओर से अरुणा कुमारी को नरेला की सीट से चुनाव में प्रत्याशी घोषित किया गया है।
दीप्ति इंदौरा साल 2022 में हुए एमसीडी के चुनाव में दिल्ली गेट वार्ड से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। लेकिन तब उन्हें आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार किरण बाला से 1700 से ज्यादा वोटों से हार मिली थी। कमल बागड़ी बल्लीमारान विधानसभा सीट के रामनगर वार्ड से पार्षद हैं। वह एमसीडी के चुनाव में 2300 से ज्यादा वोटों से जीते थे।
‘आरक्षण और संविधान खतरे में है’ को बनाया था मुद्दा
बताना होगा कि लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान विपक्षी दलों ने ‘आरक्षण और संविधान खतरे में है’ को मुद्दा बनाया था। इससे उत्तर प्रदेश में विपक्षी इंडिया गठबंधन की अगुवाई कर रहे सपा-कांग्रेस को काफी फायदा हुआ था और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था।
लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी लगातार संविधान और आरक्षण को खतरे में बताने के साथ ही बीजेपी के शासन में दलित समुदाय को उसका हक न मिलने की बात को मुद्दा बनाते रहे हैं।

सपा-कांग्रेस गठबंधन को मिली थी बड़ी जीत
मोदी सरकार और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने दलित समुदाय को अपने साथ बनाए रखने की काफी कोशिश की है लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि पार्टी को इसमें कामयाबी नहीं मिली। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने मिलकर 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि एनडीए सिर्फ 36 सीटें ही जीत सका। 2019 के चुनाव के मुकाबले उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था और पार्टी लोकसभा में अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी।
लोकसभा चुनाव के बाद भी विपक्षी दलों कांग्रेस-सपा ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा नहीं छोड़ा है और बीजेपी इस बात को बेहतर ढंग से जानती है। शायद इसीलिए उसने दिल्ली में दलित समुदाय पर फोकस करने के लिए सामान्य सीटों से भी दलित नेताओं को उम्मीदवार बनाया है।
यूपी में सपा ने किया था ऐसा
याद दिलाना होगा कि लोकसभा चुनाव में सपा ने सोशल इंजीनियरिंग के दम पर बड़ी जीत दर्ज की थी। सपा ने उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में मेरठ और अयोध्या की सामान्य सीट से दलित नेताओं को उम्मीदवार बनाया था। अयोध्या की सीट पर तो पार्टी जीत गई थी जबकि मेरठ की सीट पर मुकाबला बेहद नजदीकी रहा था। यहां पर बीजेपी के उम्मीदवार और टीवी सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल सिर्फ 10585 वोटों से चुनाव जीते थे।

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि दीप्ति इंदौरा और कमल बागड़ी उन निर्वाचन क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हैं, जहां से उन्हें उम्मीदवार बनाया गया है। कांग्रेस का कहना है कि उसने सामान्य सीट से दलित नेता को उम्मीदवार बनाने का फैसला अनुभव और लोकप्रियता के आधार पर लिया है।
मायावती और चंद्रेशखर भी दलित वोटों के हकदार
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में दलित समुदाय के वोटों पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की भी दावेदारी है। बसपा दिल्ली की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने 16 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। चंद्रशेखर की पार्टी ने यह भी ऐलान किया है कि अगर वह दिल्ली के चुनाव में किंग मेकर बनी तो दिल्ली के सभी स्कूलों में संविधान को पढ़ाने की पहल करेगी।
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