यह हैरान करने वाली बात है कि भाजपा मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए ऐसे दिग्गजों को मैदान में उतार रही है, जो चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते। भाजपा ऐसा क्यों कर रही है, इसे लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। पुराने अनुभवों के आधार पर यह कहा जा रहा है कि जमीन पर स्थिति खराब होने के कारण भाजपा अपने सभी बड़े नेताओं को मोर्चे पर भेज रही है।
हालांकि कई लोगों को संदेह है कि इस कदम से फायदा होने के बजाय नुकसान ही होगा। कुछ लोगों का मानना है कि यह मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को कमजोर करने का एक प्रयास है। लेकिन लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को कमतर आंकना पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। चौहान को अभी भी काफी लोकप्रिय समर्थन हासिल है।
कौन-कौन नहीं लड़ना चाहता चुनाव?
बीजेपी के चुनावी पोस्टरों में इतने सारे उम्मीदवारों के चेहरे दिखते हैं कि वे रावण के सिर जैसे लगते हैं। चुनाव न लड़ने की इच्छा रखने वालों में सात सांसद (इनमें से तीन केंद्रीय मंत्री हैं) और एक पार्टी महासचिव शामिल हैं। स्वाभाविक रूप से ये सभी अपने डिमोशन से नाराज हैं। हालांकि, महासचिव कैलाश विजयवर्गीय एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने यह स्वीकार किया कि “एक प्रतिशत भी चुनाव लड़ने की इच्छा” नहीं है, खासकर तब जब उनका बेटा विधानसभा के लिए खड़े होने की उम्मीद कर रहा था।
इसका मतलब यह हुआ कि उन लोगों में तो नाराजगी है ही जिनके पास टिकट है। वे लोग भी नाराज हैं, जो टिकट पाना चाहते थे लेकिन केंद्र के नेताओं के आने से, वे वंचित हो गए।
मध्य प्रदेश, गुजरात नहीं है
शायद इस कदम का असली कारण यह है कि भाजपा के आलाकमान का मानना है कि वे मध्य प्रदेश में गुजरात मॉडल को दोहरा सकते हैं। गुजरात में पार्टी आलाकमान ने बिना किसी हिचकिचाहट के पुराने चेहरों की जगह युवा पीढ़ी को टिकट दिया और उन्होंने सफलता भी हासिल की। पार्टी सरकार बचाने में भी कामयाब रही।
लेकिन मध्य प्रदेश गुजरात नहीं है। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भाजपा के दिग्गजों का राजनीतिक करियर खत्म होने की पूरी संभावना है। चाहे वे विधानसभा चुनाव जीतें या हारें। राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की जड़ें गहरी हैं। पुराने राजनीतिक नेतृत्व को युवा पीढ़ी के राजनेताओं से बदलने का प्रयास पार्टी आलाकमान के गृह राज्य (गुजरात) की तरह सहज नहीं होने वाला है।
पांच राज्यों के चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन मजबूत हो सकता है लेकिन…
संभावना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना के आगामी विधानसभा चुनाव कांग्रेस के पक्ष जा सकते हैं। हालांकि, आश्चर्य की बात यह है कि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के सहयोगियों को यह अच्छा नहीं लगेगा। अब ऐसा क्यों होगा? ऐसा इसलिए होगा क्योंकि कांग्रेस की जीत पार्टी को मजबूत करेगी। इससे गठबंधन के भीतर कांग्रेस की निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी और यह सहयोगी दलों को पसंद नहीं आएगा।
संयोग से इंडिया गठबंधन में एक नई दोस्ती विकसित हुई है। एनसीपी नेता शरद पवार, AAP (आम आदमी पार्टी) सांसद संजय सिंह के साथ अपनी दोस्ती की वजह से AAP के अरविंद केजरीवाल के करीब आ गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की गई गिरफ्तारी के बाद से पवार अपने साथी राज्यसभा सदस्य का बहुत समर्थन करते रहे हैं।
पवार को आप का साथ मिलने से, नीतीश की इंडिया गठबंधन की अध्यक्षता करने की संभावना अपने आप ही कम हो जाती है। इस बीच, अखिलेश यादव संसदीय चुनाव में यूपी की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की धमकी दे रहे हैं क्योंकि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में कोई विधानसभा सीट शेयर नहीं किया है।