OBC Politics Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में फरवरी, 2027 में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन राज्य के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी चुनावी तैयारी के केंद्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को रखना शुरू किया है। बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा राज्य के इस सबसे बड़े वोट बैंक के अधिकतर हिस्से को अपने साथ लाना चाहते हैं।

विधानसभा चुनाव 2027 में ओबीसी को साथ लाने के लिए ये राजनीतिक दल क्या तैयारी कर रहे हैं, राज्य की आबादी में ओबीसी की कितनी हिस्सेदारी है, ऐसे ही कुछ जरूरी सवालों के जवाब हम तलाशने की कोशिश करेंगे।

उत्तर प्रदेश में ओबीसी की आबादी लगभग 50% है। ओबीसी समुदाय में आने वाले मतदाता पूर्वी, पश्चिमी, सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड में फैले हुए हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटें हैं और इसमें से कम से कम 300 सीटों पर ओबीसी समुदाय के मतदाताओं को निर्णायक माना जाता है।

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कोलकाता में वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करते SDPI के कार्यकर्ता। (Source- PTI)

ओबीसी को अपने साथ लाने के लिए राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं, इसके लिए सबसे पहले बीजेपी के बारे में बात करते हैं। बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले सभी राज्यों में संगठन के स्तर पर बड़े बदलाव हो रहे हैं। यूपी की 98 जिला/शहर इकाइयों में से पार्टी 70 में अपने अध्यक्षों को नियुक्त कर चुकी है। इससे पहले पार्टी ने मंडल और ग्रामीण स्तर पर 2 महीने की चुनाव प्रक्रिया को पूरा किया था।

बीजेपी ने बनाए 26 ओबीसी जिला अध्यक्ष

बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि यह पूरी कसरत इसलिए की गई थी क्योंकि राज्य की इकाइयों के पदाधिकारियों में से 50% ओबीसी, एससी और महिला समुदाय से हों। बीजेपी के कुल 26 जिला अध्यक्ष ओबीसी से हैं जबकि 20 ब्राह्मण समुदाय से। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि अभी 28 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति और होनी है। इसके बाद ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व और बढ़ जाएगा।

बीजेपी के साथ ओबीसी वोटों की राजनीति करने वाले कई सहयोगी दल भी हैं। जैसे- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल।

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समाजवादी पार्टी का PDA गणित

समाजवादी पार्टी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव में पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (PDA) की हक और हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया था और इसके बलबूते पार्टी ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद पार्टी पूरे राज्य में ‘PDA चर्चा’ कर रही है। सपा प्रवक्ता अशोक यादव कहते हैं कि पार्टी के विधायकों, सांसदों को ‘PDA चर्चा’ वाले कार्यक्रमों में भाग लेने का निर्देश दिया गया है। उनके मुताबिक इन कार्यक्रमों में हम वंचित समुदाय को बताएंगे कि कैसे बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में ओबीसी, दलितों और मुसलमानों का उत्पीड़न किया जा रहा है।

सपा ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने पर ‘स्त्री सम्मान समृद्धि योजना’ शुरू करने का वादा किया है। इस योजना में स्किल डेवलपमेंट के लिए मोबाइल, फोन, लैपटॉप और PDA स्कूल स्थापित करने का वादा किया गया है।

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क्या कर रही है बीएसपी?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगातार पिछड़ती जा रही बीएसपी भी ओबीसी वोटों को साथ लाने की कोशिश कर रही है। खराब दौर से गुजर रही बीएसपी ने हाल ही में पार्टी को संगठित किया है और ओबीसी समुदाय में आने वाली जातियों के साथ संपर्क बढ़ाया है। इसके लिए पार्टी ने अपनी पुरानी ‘भाईचारा कमेटियों’ को एक्टिव करने का फैसला किया है।

बीएसपी के सूत्रों के मुताबिक, भाईचारा कमेटियां पहले ओबीसी के अलावा एससी और अपर कास्ट के मतदाताओं तक पहुंचने पर ध्यान केंद्रित करती थीं लेकिन इस बार वह सिर्फ ओबीसी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करेंगी।

बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का दावा है कि बीएसपी अकेली ऐसी पार्टी है जो ओबीसी समुदाय के लिए काम करती है। ओबीसी समुदाय के बीच अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए बसपा ने हाल ही में जिला इकाइयों का भी पुनर्गठन किया है और ओबीसी के कई नेताओं को अहम पद सौंपे हैं।

ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय को दी 65% हिस्सेदारी

इंडिया गठबंधन की सदस्य कांग्रेस ने भी हाल ही में 131 जिला/शहर अध्यक्षों की नियुक्ति की है। इसमें से 34 नेता ओबीसी समुदाय से हैं। इन नेताओं में से भी 11 पसमांदा (पिछड़ा) मुस्लिम समुदाय के नेता हैं। बीजेपी भी पसमांदा मुसलमानों को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रही है।

कांग्रेस ने ब्राह्मण समुदाय के 26 और दलित समुदाय के 19 नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाया है। पार्टी ने मुस्लिम समुदाय के 31 नेताओं को भी इस पद पर बिठाया है। कांग्रेस ने दावा किया है कि उसने ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय को 65% की हिस्सेदारी दी है और यह लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के विचार का असर है।

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