लोकसभा चुनाव 2024: दूसरे चरण में बिहार की पांच लोकसभा सीटों पर मतदान है। तीन सीटों पर मुकाबला आमने-सामने का बताया जा रहा है। वहीं दो संसदीय क्षेत्र में लड़ाई त्रिकोणीय है। चुनावी मैदान में उतरे कुल 50 प्रत्याशियों का फैसला कुल 93,96,298 मतदाता करने वाले हैं। 26 अप्रैल को दूसरे चरण के लिए मतदान है।
सीट | प्रत्याशियों की संख्या | आमने-सामने की टक्कर की संभावना |
कटिहार | 9 | दुलालचंद गोस्वामी (जदयू) बनाम तारीक अनवर (कांग्रेस) |
भागलपुर | 12 | अजय कुमार मंडल (जदयू) बनाम अजीत शर्मा (कांग्रेस) |
बांका | 10 | गिरधारी यादव (जदयू) बनाम जय प्रकाश नारायण यादव (राजद) |
सीट | प्रत्याशियों की संख्या | त्रिकोणीय मुकाबला की संभावना |
किशनगंज | 12 | मो. मुजाहिद आलम (जदयू) बनाम डॉ. मोहम्मद जावेद (कांग्रेस) बनाम अख्तरुल ईमान (AIMIM) |
पूर्णिया | 7 | संतोष कुशवाहा (जदयू) बनाम बीमा भारती (राजद) पप्पू यादव (निर्दलीय) |
पप्पू यादव की उम्मीदवारी ने पूर्णिया का मुकाबला बनाया दिलचस्प
पप्पू यादव के नाम से मशहूर राजेश रंजन ने इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारा होने से पहले अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया था। वह पूर्णिया से टिकट चाह रहे थे। लेकिन सीट बंटवारे में पूर्णिया राजद के खाते में चला गया, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया।
पप्पू यादव के लिए निर्दलीय लड़ना नया नहीं है। वह पहली बार पूर्णिया से ही सांसद बने थे, वो भी निर्दलीय। लेकिन इस बार यादव को कड़ी चुनौती मिल सकती है। वर्तमान में सीट जदयू के कब्जे में है। जदयू ने अपने मौजूदा सांसद संतोष कुशवाहा को ही टिकट दिया है। राजद ने जदयू की बागी बीमा भारती को उतारा है।
मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है। पप्पू यादव को लगता है कि पूर्णिया में उनका जनाधार है। वह पांच बार सांसद रहे हैं, जिसमें से तीन बार पूर्णिया से चुने गए हैं। इस बार पप्यू यादव की एंट्री ने जहां, राजद के पहली बार सीट जीतने के प्रयासों को खतरे में डाल दिया है। वहीं जदयू की भी चिंता बढ़ा दी है। पिछले दो बार से ये सीट जदयू जीत रही है।

1990 के दशक की शुरुआत में पूर्णिया में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले पूर्व सांसद के लिए, यह उस स्थान पर अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता हासिल करने का प्रयास है जहां उन्होंने तीन दशक पहले चुनावी सफलता की ऊंचाइयों को छुआ था।
पप्पू यादव को हराने के लिए तेजस्वी ने क्या कहा?
राजद इस सीट के लिए पूरी ताकत लगा रही है। राजद के कई नेता पूर्णिया में डेरा डाले हुए हैं। तेजस्वी यादव ने धुंआधार प्रचार किया है। राजद की कोशिश है कि वह यादव-मुस्लिम समीकरण को साध ले, जो क्षेत्र में करीब छह लाख हैं। लेकिन संकट यही है। ऐसा माना जाता है कि अपने समुदाय में पप्पू यादव का भी जनाधार है।
मुस्लिम और यादव समुदाय को राजद का कोर वोट माना जाता है, लेकिन इस चुनाव में राजद ने मुसलमानों को टिकट देने में कंजूसी दिखाई है। राजद ने सिर्फ दो मुसलमानों को अपना उम्मीदवार बनाया है। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

पप्पू यादव और लालू परिवार में तनाव नया नहीं है। इसका अपना इतिहास है। उसकी झलक इस चुनाव में भी दिख रही है। तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में एक जनसभा को संबोधित करते हुए साफ कर दिया था कि इंडिया को नहीं चुन सकते तो एनडीए को चुन लीजिए।
उन्होंने कहा था, “आप लोग किसी धोखे में नहीं आइए। यह चुनाव किसी एक व्यक्ति का चुनाव नहीं है। यह एनडीए और इंडिया गठबंधन की लड़ाई है। या तो इंडिया को चुनिए, बीमा भारती को वोट करिए और अगर इंडिया को नहीं चुन सकते, बीमा भारती को वोट नहीं दे सकते तो फिर एनडीए को चुन लीजिए। साफ बात है।”
गंगोटा समुदाय (EBC) से आने वाली रूपौली विधायक बीमा भारती को उम्मीद है कि पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद की लोकप्रियता उन्हें मुकाबले में आगे बढ़ाएगी। सोमवार को एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा, “हमारे मतदाता धर्मनिरपेक्ष भारत के विचार के प्रति प्रतिबद्ध हैं। कुछ अफवाह फैलाने वाले हैं लेकिन जीत हमारी होगी।”
भारती के लिए पप्पू यादव सबसे बड़ी चुनौती पेश करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पूर्णिया हाट के निवासी रविकांत रवि कहते हैं, “बीमा भारती की मुख्य चिंता यह है कि पप्पू यादव तेजी से राजद के मुस्लिम-यादव आधार और ईबीसी में सेंध लगाने की धमकी दे रहे हैं, उनके वो अपने गंगोटा समुदाय को छोड़कर, आगे बढ़ने की नहीं सोच रही हैं। हालांकि गंगोटा समुदाय के वोटर भी उनके साथ तालमेल नहीं बिठा रहे हैं।”
पिछले 20 साल से पूर्णिया में एनडीए
अच्छी संख्या में मुस्लिम और यादव आबादी होने के बावजूद पिछले 20 साल से पूर्णिया एनडीए के खाते में रहा है- 10 साल पप्पू सिंह और 10 साल संतोष कुशवाहा। जदयू को कुशवाह, बनिया, गैर-गंगोटा ईबीसी, दलित और गैर-यादव ओबीसी वोटों के अलावा एनडीए की वजह उच्च जातियों, खासकर राजपूतों और ब्राह्मणों का वोट मिलता रहा है।
किशनगंज में भी त्रिकोणीय मुकाबला
किशनगंज में जदयू, कांग्रेस और ओवैसी की AIMIM के बीच मुकाबला बताया जा रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में 68% मुसलमान हैं। 1967 के बाद से इस सीट पर कोई हिंंदू उम्मीदवार नहीं जीत पाया है। किशनगंज में हिंदू उम्मीदवारों को भी मुसलमानों के मुद्दे पर वोट मांगना पड़ता है। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

दूसरे चरण में बिहार की पांच सीटों पर मतदान है। पांच में से चार सीटों पर जदयू के का कब्जा है। लेकिन इस बार एनडीए के तीन सांसदों को कांटे की टक्कर मिल रही है। पांचों लोकसभा सीट का समीकरण जानने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

यूपी में मेरठ पर सबकी नजर
जिस तरह बिहार में दूसरे चरण में सबकी नजर पूर्णिया पर है। उसी तरह उत्तर प्रदेश में सबकी नजर मेरठ पर है। 26 अप्रैल को मेरठ सहित यूपी की आठ सीटों पर मतदान है। भाजपा ने ‘टीवी के राम’ अरुण गोविल को चुनाव लड़ाने के लिए अपने तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काट दिया है। गोविल खुले आम राम के नाम पर वोट मांग रहे हैं। लेकिन आरएसएस के अधिकारी सीट पर धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावना न होने से चिंता में हैं। दरअसल, पिछले 25 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी भी बड़े दल ने मुस्लिम नेता को अपना उम्मीदवार न बनाया हो। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

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