बिहार में पहले चरण में लोकसभा की चार सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान हो चुका है। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं और इन सभी सीटों पर सात चरणों में मतदान होना है। बिहार में ऐसा दिखाई देता है कि यहां किसी भी एक पार्टी के पक्ष में कोई लहर जैसी बात नहीं है। कोई ऐसा भावनात्मक मुद्दा भी नहीं दिखाई देता जिसने मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा हो।

बिहार के चुनाव परिणाम का केंद्र में बनने वाली सरकार पर भी असर होगा। अगर आप बिहार के दक्षिण से झारखंड की सीमा तक लगने वाले इलाकों का दौरा करें तो मतदाताओं की बहुत कम प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। कुछ लोगों का कहना है कि राज्य में सरकार चला रहा एनडीए गठबंधन चुनाव में जीत हासिल करेगा और कुछ लोग कहते हैं कि यहां मुकाबला कड़ा है। जबकि कुछ लोग किसी उलटफेर की बात कहते हैं तो कुछ लोग अपने पत्ते नहीं खोलते।

बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों पर भी बड़े पैमाने पर चर्चा होती है। उनके समर्थक कहते हैं कि यहां पर बीजेपी का कोई विकल्प नहीं है और मोदी के नेतृत्व में बीजेपी का प्रदर्शन उनके विरोधी दलों से बेहतर होना चाहिए। हालांकि वह इस बात को स्वीकार करते हैं कि एनडीए के लिए सीटों का आंकड़ा साल 2019 में उसके प्रदर्शन से कम हो सकता है। 2019 में एनडीए को बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली थी।

Tejashwi Yadav: तेजस्वी के समर्थन में यादव मतदाता

बिहार में एक बात को लेकर भी आम सहमति दिखाई देती है। वह यह कि राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपने पिता की विरासत को खत्म होने से बचाने के लिए कड़ी मेहनत की है।

मुजफ्फरपुर के रहने वाले रवि रंजन कहते हैं, “मैं मोदी जी के साथ हूं और वह दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू प्रसाद यादव के जेल में होने या बीमार होने के दौरान पार्टी को जिंदा रखने के लिए काफी मेहनत की है। वह फ्रंट पर आकर पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं।” रवि रंजन आगे कहते हैं कि एक दिन वह (तेजस्वी यादव) मुख्यमंत्री बन के रहेंगे, इस बात को आप जान लीजिए।

बीजेपी के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी के एक समर्थक समस्तीपुर में कुछ ऐसी ही बात कहते हैं। वह कहते हैं, “तेजस्वी वह नेता पुत्र है जो राजयोग के लिए बना है। घूमता रहा राज्य भर में जब लालू यादव जेल में थे या बीमार थे, तो आगे तो जाएगा ही एक दिन।”

बिहार के पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक माहौल दिल्ली से क्यों मिलता-जुलता है। पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें। 

Lalu Prasad yadav
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (PC- File/IE)

Bihar Yadav Voter: तेजस्वी को मानते हैं उत्तराधिकारी

बिहार में यादव मतदाता तेजस्वी का समर्थन करते दिखाई देते हैं और उन्हें लालू प्रसाद यादव का उत्तराधिकारी मानते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो तेजस्वी यादव के बढ़ते कद को स्वीकार करते हैं लेकिन यह भी कहते हैं कि एनडीए बेहतर स्थिति में है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में लौट के लिए तैयार हैं।

Bihar Nitish Kumar: पलटू बाबू हैं नीतीश कुमार

एक ऐसे राजनेता जिनका ग्राफ गिरता हुआ दिखाई देता है और लोग सोचते हैं कि अब वह राजनीतिक रूप से खत्म हो रहे हैं वह राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। नीतीश लगभग दो दशक से बिहार की सत्ता में हैं। वह कुर्मी समुदाय से आते हैं और राज्य में इस समुदाय की आबादी 3% के आसपास है।

चर्चा के दौरान इंडिया और एनडीए गठबंधन को लेकर यह बात सामने आती है कि अब नीतीश कुमार का सूर्य अस्त हो रहा है और इस बार उनके द्वारा एनडीए के साथ जाने के बाद यादव मतदाता उन्हें माफ करने के मूड में नहीं हैं। यहां तक ​​कि एनडीए समर्थक भी उनका मजाक उड़ाते हैं।

मुजफ्फरपुर में एनडीए के एक समर्थक कहते हैं, “नीतीश के पास दिमाग है वह हर बार तीसरे नंबर पर होते हैं और इसके बाद भी वह मुख्यमंत्री बन जाते हैं।” दरभंगा एयरपोर्ट पर चाय बेचने वाले संतोष यादव कहते हैं कि सुशासन बाबू सुशासन में ही मिल गए, वह पलटू बाबू हैं।

Nitish Kumar Politics : नीतीश से है नाराजगी

औरंगाबाद के कुटुंबा ब्लॉक के एक कुशवाहा बहुल गांव में ऐसे लोग ज्यादा मिलते हैं जो नीतीश कुमार को माफ करने के लिए तैयार नहीं दिखते। एक बुजुर्ग कहते हैं कि वह बिहार पर धब्बा हैं और उनकी कोई विचारधारा नहीं है। यह बुजुर्ग मतदाता मुजफ्फरपुर से राजद के उम्मीदवार अभय कुशवाहा का समर्थन कर रहे हैं।

एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता अजीत कुमार कहते हैं, “नीतीश बाबू कमजोर जरूर पड़े हैं लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव खत्म होने में समय लगेगा। बार-बार पाला बदलने से उनकी छवि पर असर पड़ा है और उनकी पुरानी सुशासन बाबू वाली छवि अब नहीं रह गई है। लेकिन अभी भी एक निश्चित सीमा तक कुर्मी मतदाता और अदृश्य रूप से महिला मतदाता उनके साथ हैं।”

वह बताते हैं कि इसके पीछे वजह यह है कि नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी को लागू किया और लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल दी। अजीत कुमार कहते हैं, “मोदी जी ने नीतीश को साथ क्यों आने दिया। हर चुनाव में उनका वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है लेकिन इसके बाद भी वह 14% के आसपास वोट हासिल कर रहे हैं और इसी से दोनों गठबंधनों के बीच जीत और हार का अंतर तय होता है। जहां तक जीत की बात है तो अगर किसी एक गठबंधन की ओर से इसे हटा दिया जाए तो खेल खत्म हो जाएगा।”

अजीत कुमार के बगल में बैठे एक शख्स कहते हैं, “हां, जब तक जेडीयू पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती और बीजेपी और राजद बिहार की राजनीति के दो ध्रुव नहीं बन जाते।”

एक बार फिर जीतन राम मांझी गया से चुनाव मैदान में हैं। क्या इस बार वह जीत हासिल कर पाएंगे? पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें।

Jitan Ram Manjhi
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी। (PC- Express)

 

Free ration Politics: 5 किलो मुफ्त चावल पर देंगे वोट

मुजफ्फरपुर और वैशाली लोकसभा सीट के जंक्शन पर स्थित एक गांव भीकनपुर में रहने वाले रामस्वरूप सहनी कहते हैं कि हम तो उसी को वोट देंगे जो हमको 5 किलो मुफ्त चावल दे रहा है और किसे देंगे। रामस्वरूप सहनी निषाद समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वह गांव के बाहर सड़क पर मछली बेचते हैं। जब उनसे विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी के बारे में पूछा गया तो रामस्वरूप सहनी पलट कर कहते हैं कि क्या बीजेपी का उम्मीदवार यहां निषाद नहीं है।

BJP Muzaffarpur election 2024:राजभूषण चौधरी को दिया टिकट

बीजेपी ने मुजफ्फरपुर से वर्तमान सांसद अजय निषाद का टिकट काटकर राजभूषण चौधरी को टिकट दिया है। अजय निषाद टिकट कटने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पिछली बार राजभूषण चौधरी अजय निषाद से हार गए थे। कांग्रेस ने अभी यहां अपने उम्मीदवार के नाम को लेकर फैसला नहीं किया है लेकिन भीकनपुर गांव के निषाद बड़े पैमाने पर बीजेपी के साथ दिखाई देते हैं।

Bihar Congress: वर्तमान नेतृत्व से आगे सोचे कांग्रेस

देर शाम को मुजफ्फरनगर में एक चाय की दुकान पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का भी जिक्र आता है। एक युवा अमित कुमार कहते हैं, “मैंने सुना है कि राहुल गांधी पढ़े-लिखे हैं लेकिन वह राजनीति के लिए नहीं बने हैं। वह एक राजनेता की तरह अपनी बात को नहीं रख पाते।”

चाय की दुकान पर ही मौजूद एक और शख्स कहते हैं कि कांग्रेस को अगर सत्ता में आना है या मुकाबले में बने रहना है तो अपने वर्तमान नेतृत्व से आगे बढ़कर सोचना होगा। वरना कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए कोई चेहरा नहीं होगा।