साल 2012 के अगस्त-सितम्बर माह में पाकिस्तान से 18 लोगों का ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री डेलिगेशन बिहार आया था। इनमें से कई लोगों के पुरखों की जड़ें बिहार में थीं। भारत विभाजन के समय बिहार से कई धनाढ्य मुसलमान कराची जा बसे थे। वहां आज भी बिहारी कॉलोनी नाम का मोहल्ला मौज़ूद है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पाकिस्तानी डेलिगेशन की बेजोड़ मेहमाननवाज़ी की थी। इसके बाद सिंध सरकार ने नीतीश कुमार को अपने यहां आमंत्रित किया था। मुख्यमंत्री को वहां बिहार की प्रगति के रहस्य (सीक्रेट्स ऑफ़ बिहार्स ग्रोथ) के बारे में बात करनी थी। पाकिस्तान सरकार के राज्य निमंत्रण पर 9 नवम्बर, 2012 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में 11 लोगों का प्रतिनिधिमंडल आठ दिनों की सरकारी यात्रा पर दुबई के रास्ते कराची पहुंचा था।
CM के स्वागत में पूरा मंत्रिमंडल पहुंचा था एयरपोर्ट
प्रतिनिधिमंडल में नीतीश कुमार के अलावा बिहार विधानसभा के स्पीकर उदय नारायण चौधरी, बिहार की उद्योग मंत्री रेणु कुशवाहा, कला एवं संस्कृति मंत्री सुखदा पांडेय, बिहार विधान परिषद के डिप्टी स्पीकर सलीम परवेज़, ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी के डायरेक्टर इम्तियाज़ अहमद, राज्य अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन मोहम्मद नौशाद, राज्य सवर्ण आयोग के सदस्य मोहम्मद अब्बास, जेडीयू से राज्यसभा के सांसद एन के सिंह, बिहार राज्य के मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा, गृह सचिव अमीर सुबहानी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के सचिव अतीश चन्द्रा तथा वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर थे।
हाल ही में राजकमल प्रकाशन से आई किताब ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में लेखक उदय कांत ने एक उच्च अधिकारी के हवाले से बताया है कि नीतीश कुमार के स्वागत के लिए सिंध सरकार का पूरा मंत्रिमंडल ही कराची हवाई अड्डे पर पहुंच गया था।
कौन लोग मिलकर रोने लगे थे?
कराची में मुख्यमंत्री से मिलने एमक्यूएम (मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट) के कई पदाधिकारी भी पहुंचे थे। इस मुलाक़ात के बाद इनमें से कई लोगों की आँखें डबडबाई गई थी। सवाल उठता है कि मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के लोगों नीतीश कुमार को देखकर क्यों रो पड़े?
दरअसल, देश के विभाजन के समय भारत से पश्चिम पाकिस्तान में जाकर बसे मुसलमानों का बड़ा हिस्सा बिहार और यूपी से गया हुआ है। इन्हें अब भी कहीं-कहीं मुहाजिर (शरणार्थी) कहकर बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता है। अपने हक की लड़ाई के लिए उनका एक बड़ा आंदोलन एमक्यूएम (मुहाजिर कौमी मूवमेंट) शुरू हुआ था। आज उसका नाम बदलकर एमक्यूएम (मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट) हो गया है।
पाकिस्तान में रहने वाले मुहाजिरों के उन रिश्तेदारों को, जो भारत-खासतौर से बिहार में रह गए हैं, देश के किसी भी दूसरे नागरिक के बराबर हक और सम्मान मिला हुआ है। लेकिन पाकिस्तान चले गए लोगों के साथ अब भी भेदभाव होता है।
इमरान खान ने दी दावत
इस्लामाबाद में नीतीश कुमार समेत पूरे प्रतिनिधिमंडल को पूर्व क्रिकेटर और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के नेता इमरान ख़ान ने दावत दी थी। तब पीटीआई को बने ज्यादा समय नहीं हुआ था। हालांकि इमरान खान को उम्मीद थी कि आगामी चुनावों में उनकी पार्टी जीतेगी और उन्हें पाकिस्तान संभालने का अवसर ज़रूर मिलेगा।
उदय कांत लिखते हैं, इमरान ख़ान साहब की मेज़बानी और बातचीत के अलावा उनकी सलवार और कॉलर वाली कमीज हमारे मुख्यमंत्री को बेहद पसंद आई थी।
सिंध के गांव और नीतीश कुमार
कई सेमिनार और बैठक में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री और उनकी टीम को पिंगल (सिंध देहात) में मोहनजोदड़ो ले जाया गया। वहां सभी ने दुनिया की सबसे पुरानी शहरी सभ्यता के अवशेष देखे। बकौल उदय कांत वहां मुख्यमंत्री सब कुछ जानने और समझने के लिए बहुत उत्सुक थे।
किताब में लिखा है कि सिंध और पंजाब के दूर-दराज़ के गांवों की दीवारों पर मुख्यमंत्री के स्वागत में उर्दू में लिखे नारे चकित करने वाले थे। वो नारे थे ‘पाकिस्तान का होनेवाला प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ज़िन्दाबाद’ और ‘हिन्दुस्तान का होनेवाला प्रधानमंत्री नीतीश कुमार जिन्दाबाद !’
किताब के मुताबिक, नीतीश कुमार और उनकी टीम ने मोहम्मद अली जिन्ना की क़ब्र और महाराजा रंजीत सिंह की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया था।
इस बात का अफसोस लेकर लौटे
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भारत लौटने पर पता चला कि सिंध के ही सहवान कस्बे में महान सूफ़ी संत लाल शाहबाज़ कलन्दर की दरगाह थी। सीएम को पता था कि बुल्ले शाह ने इन्हें ही झूलेलाल कलन्दर कहा था जो हिन्दुओं और मुसलमानों में समान रूप से सम्मानित थे।
उदय कांत बताते हैं, अमीर खुसरो ने इस सूफी संत की शान में जो ‘दमादम मस्त कलन्दर’ कव्वाली लिखी थी वह हमारे मुख्यमंत्री को बेहद शान्ति देती है। वह कव्वाली आज तक पूरे सूफियाना संगीत के दिल की धड़कन है। सिंध जाकर भी जानकारी के अभाव में हम महान सूफी संत लाल शाहबाज़ कलन्दर की दरगाह में अपना सिर नहीं झुका सके, इसका अफ़सोस मुख्यमंत्री जी को अब तक कचोटता है।