बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि जातिवार जनगणना का काम पूरा हो चुका है। शुक्रवार 18 जुलाई को NGO यूथ फॉर इक्वलिटी और ‘एक सोच एक प्रयास’ की याचिका पर सुनवाई हुई। गैर सरकारी संगठनों की याचिका जाति आधारित जनगणना के डेटा पर रोक लगाने को लेकर है।
जब पूर्व राष्ट्रपति ने नीतीश को दिया जातिवार जनगणना का सुझाव
यह सन् 1990 की बात है। तब नीतीश कुमार मंत्री बनकर दिल्ली शिफ्ट हो गए थे। नीतीश के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर कुछ अतृप्त इच्छाओं में से एक थी जाति आधारित जनगणना। नीतीश इस मुद्दे को लेकर हमेशा सजग रहे। दिल्ली में उन्हें इस मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का भी समर्थन मिल गया।
उदय कांत की लिखी किताब ‘नीतीश कुमार-अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में बिहार मुख्यमंत्री खुद इस बाते बताते हैं। नीतीश कहते हैं, “राज्यमंत्री बनने के बाद मुझे जो घर मिला, वह तीन मूर्ति भवन के पास चाणक्यपुरी में सर्कुलर रोड पर पहला घर था। उस कतार में चार-पांच ही घर थे जिनमें रहनेवालों से मैं तब तक अपरिचित था। किसी छुट्टी के दिन मुझे एक कर्मी ने आकर बताया कि 4 नम्बर की कोठी में रहनेवाले सज्जन मुझसे मिलने के लिए आना चाहते हैं और इसके लिए समय मांग रहे हैं। हमारे बिहार में पड़ोसियों के यहां जाने के लिए ऐसी औपचारिक अनुमति की आवश्यकता पड़ते मैंने कभी देखी ही नहीं थी। फिर मेरे घर के दरवाज़े तो हर आगन्तुक के लिए हमेशा खुले ही रहते थे इसलिए बिना कुछ सोचे मैंने कह दिया कि इसमें पूछने की ज़रूरत क्या है, वे जब भी आना चाहें, आ सकते हैं- उनका हमेशा हार्दिक स्वागत है!
मेरे मन में अचानक विचार आया कि पता तो कर लिया जाए कि आख़िर कौन हैं जो आना चाहते हैं और क्या वजह है? अपने सवाल का जो जवाब मुझे मिला, उसकी अपेक्षा तो मैंने सपने में भी नहीं की थी! पता चला कि 4 नम्बर की कोठी में रहने वाले अन्य कोई नहीं, भारत के पूर्व राष्ट्रपति सरदार ज्ञानी जैल सिंह जी हैं और उन्होंने ही यह विनम्र इच्छा प्रकट की है! यह सुनकर लगा कि मानो मेरे पैरों के नीचे की धरती खिसक गई है! मैंने कहा कि मैं स्वयं ही उनकी सेवा में हाज़िर होना चाहता हूं और वह भी फ़ौरन! मुझे जैसे ही अनुमति मिली, मैं उनके पास पहुंच गया। मुझे उन्होंने बहुत स्नेह से बैठाकर कहा कि वे मेरे भाषणों और विचारों को पसन्द करते हैं।
ज्ञानी जी ने मुझे देश में जाति जनगणना का कानून लागू कराने के लिए संसद में पूरा जोर लगाकर प्रयास करने के लिए कहा। मैंने लोहिया जी को छोड़कर उनसे पहले किसी राष्ट्रीय स्तर के इतने बड़े नेता से इस ज्वलन्त समस्या पर ऐसी स्पष्ट बातें नहीं सुनी थी। मैंने तुरन्त इस दिशा में काम शुरू कर दिया। उचित स्थानों पर पत्र लिखें, संसद में चर्चा की और लोगों में इस ज्वलन्त समस्या के प्रति चेतना जगाई। मुझे बेहद खुशी हुई कि मैं तो इस दिशा में सही राह पर पहले से ही चल रहा था अब ज्ञानी जी की बातों ने मुझे उत्साह के ऐसे नए पंख दे दिए जो आज भी मुझे इस समस्या का समाधान खोजने में किसी भी ऊँचाइयों तक पहुँचा रहे हैं।”
गौरतलब है कि जाति आधारित जनगणना आख़िरी बार अंग्रेज़ी शासन काल में 1931 में हुई थी। इसी के आधार पर पूरे देश में आज तक आरक्षण मिलता आया है। किताब के मुताबिक, नीतीश ऐसा मानते हैं कि पिछले 90 वर्षों में जातिगत संख्या बल के समीकरण में भारी उलट-फेर हुआ है। पहले समाज के पिछड़े लोगों में मृत्यु दर बहुत अधिक थी। उनकी संख्या के सही आकलन का कोई ठोस आधार भी नहीं था। धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य में गुणात्मक परिवर्तन आने से उनकी प्रतिशत संख्या में अवश्य ही फ़र्क़ पड़ा होगा। देश में आख़िरी जनगणना 2011 में हुई थी जिसमें सूचनाएं तो बहुत सारी इकट्ठी की गईं पर जातियों का आकलन नहीं हुआ।”
जातिवार जनगणना को लेकर नीतीश के प्रयास
नीतीश के शासन काल में ही बिहार सरकार ने क्रमशः 18 फ़रवरी, 2019 और 27 फ़रवरी, 2020 को बिहार विधानसभा की सर्वसम्मति से जाति जनगणना कराने के लिए केन्द्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजा था। नीतीश की अध्यक्षता में 1 जून, 2022 को इस विषय पर हुई सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बिहार में सभी धर्मों, जातियों और उपजातियों की गणना होगी। निर्णय के तुरन्त बाद ही, 6 जून को राज्य के संसाधनों से ही जाति जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी गई। इसकी जिम्मेवारी बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपी गई।
7 जनवरी, 2023 को जाति जनगणना का पहला चरण शुरू हुआ। उस दिन अपनी ‘समाधान यात्रा’ के दौरान नीतीश ने वैशाली जिले के गोरौल के हरशेर गाँव में जाकर शिवशरण पासवान और मनोज पासवान के घर के पास के खम्भे पर 01 नम्बर लिखवाकर इस अभियान की शुरुआत की। जिस तेज़ी से इस अभियान पर अभी काम चल रहा था, उससे मई 2023 तक इसके पूरा हो जाने का अनुमान था। इस बीच पटना हाईकोर्ट ने 4 मई, 2023 को एक अन्तरिम आदेश से इस सर्वे पर रोक लगा दी। तब तक, बिहार सरकार के हलफ़नामे के अनुसार, सर्वे का 80 प्रतिशत काम हो चुका था।
अब सर्वे पर से रोक हट गया है और काम पूरा भी हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 जुलाई, 2023) को कहा कि वह बिहार सरकार को जातिवार जनगणना का डेटा जुटाने या सार्वजनिक करने से तब तक नहीं रोक सकता, जब तक कि किसी संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन का मामला न हो। बिहार सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने जातिवार जनगणना का काम पूरा कर लिया है।
अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने अदालत से डेटा के प्रकाशन पर रोक लगाने का आग्रह किया। उन्होंने इसे निजता के अधिकार के उल्लंघन से जोड़ा। निजता के अधिकार के उल्लंघन की आशंका पर दीवान ने आश्वासन दिया कि जाति संबंधी डेटा प्रकाशित नहीं किया जाएगा।
इसके बाद न्यायमूर्ति खन्ना ने व्यक्तिगत और समग्र डेटा के बीच अंतर बताया। आमतौर पर सर्वे में समग्र, पहचान रहित और अनाम डेटा के उपयोग के माध्यम से गोपनीयता की रक्षा की जाती है। इसके बावजूद निजता के अधिकार को लेकर चिंताएं हो सकती हैं। इस मामले में अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी।