दरबार साहिब परिसर से समानांतर सरकार चला रहे कट्टरपंथी दमदमी टकसाल के 14वें प्रमुख भिंडरांवाला (Bhindranwale) और उसके हथियारबंद समर्थकों को भारतीय सेना ने मार गिराया था। हालांकि वह पहला मौका नहीं था, जब भिंडरांवाला ने दरबार साहिब परिसर में डेरा डाला हो। उससे बहुत पहले भी एक हत्या के बाद भिंडरांवाला गुरु नानक निवास में छिपा था।
भिंडरांवाला ने इंदिरा गांधी के साथ साझा किया मंच
साल 1980 में कांग्रेस आपातकाल के दाग को पोछकर सत्ता में लौटी थी। 14 जनवरी, 1980 को इंदिरा गांधी ने आखिरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। केंद्र में वापसी के बाद कांग्रेस ने कई राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार गिरा दी। पंजाब में भी ऐसा हुआ। वहां की शिरोमणि अकाली दल एवं जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।
राज्य में मध्यावधि चुनाव हुए। कारवां की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भिंडरांवाले ने पंजाब के कई कांग्रेसी उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया था। साथ ही इंदिरा गांधी के साथ मंच भी साझा किया। कांग्रेस को राज्य की भी सत्ता मिल गई।
भिंडरांवाला की धमकी और हत्या
इंदिरा गांधी ने जैल सिंह के प्रतिद्वंदी माने जाने वाले दरबारा सिंह को पंजाब का मुख्यमंत्री बना दिया। पूर्व रॉ अधिकारी जी.बी.एस. सिद्धू ने अपनी किताब ‘खालिस्तान षडयंत्र की इनसाइड स्टोरी’ में दरबारा सिंह को धर्मनिरपेक्ष और जैल सिंह को सांप्रदायिक ताकतों के प्रति सहनशील और समझौतावादी बताया है।
केंद्र और राज्य में सरकार बदलने के बाद पंजाब में हिंसा बढ़ने लगी। दरअसल, एक हिंसा का एक पूरा दौर 13 अप्रैल 1978 से ही शुरू हो गया था। उस तारीख को अमृतसर में निरंकारियों और सिखों के बीच खूनी झड़प हुई में 16 लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद निरंकारी समुदाय और सिखों में लगातार कहीं न कहीं हिंसा हो रही थी। राज्य में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद हिंसक घटनाएं अधिक होने लगीं।
अप्रैल 1980 में भिंडरांवाला ने खुलेआम निरंकारियों के प्रमुख गुरू बचन सिंह को धमकी दी। इसके बाद 24 अप्रैल, 1980 को गुरू बचन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या करने वाले का नाम रंजीत सिंह था। वह घटना को अंजाम देकर लापता हो गया।
हत्या से जुड़ा भिंडरांवाला का नाम
कारवां की रिपोर्ट के मुताबिक, ”CBI की जांच में हत्या से सात ऐसे लोगों का नाम जुड़ा था, जो या तो भिंडरांवाले समूह के सदस्य थे या उसे अनुयायी। हत्या के लिए इस्तेमाल किए गए हथियार का लाइसेंस भिंडरांवाले के एक भाई के नाम पर था। जिसने अंगरक्षक के लिए हथियार का आवेदन किया था।”
गुरु नानक निवास में छिपा भिंडरांवाला
हत्या में भिंडरांवाले की संलिप्तता को लेकर संदेह था। इसलिए गिरफ्तारी से डरकर वह दरबार साहिब परिसर के गुरु नानक निवास (स्वर्ण मंदिर परिसर के पास स्थित एस.जी.पी.सी. द्वारा प्रबंधित एक गेस्ट हाउस) में छिप गया। बाद में जब तत्कालीन गृह मंत्री जैल सिंह ने संसद में खड़े होकर कहा कि निरंकारी प्रमुख की हत्या में भिंडरांवाला का कोई हाथ नहीं है, तब जाकर वह बाहर निकला।
हत्यारे को बनाया गया अकाल तख्त का जत्थेदार
दरबार साहिब परिसर से निकलने के बाद भिंडरांवाला ने घोषणा की थी कि गुरुबचन सिंह के हत्यारे को अकाल तख्त का जत्थेदार बनाकर सम्मानित किया जाना चाहिए। साथ ही हत्यारे को सोने में तोलने की बात भी कही थी।
हत्या को अंजाम देकर लापता हुए रंजीत सिंह ने 1983 में खुद को सरेंडर कर दिया। उसे 13 साल की जेल हुई। जेल में रहते हुए ही उसे अकाल तख्त का जत्थेदार बना दिया गया था।